ऑपरेशन पोलो : कैसे हैदराबाद को निजाम के शासन से मिली थी आजादी?

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नई दिल्ली, 12 सितंबर (आईएएनएस)। देश के बाहर दुश्मनों का सामना करने के लिए हमारी फौज काफी है, लेकिन परेशानी तब होती है जब दुश्मन अपने घर में बैठा हो। दीमक की तरह अपने देश को अंदर से खोखला कर रहा हो। ऐसे घर में बैठे छलावा करने वालों के लिए ही सरदार वल्लभ भाई पटेल ‘काल’ थे। 13 सितंबर 1948। ये वो तारीख है जब भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन पोलो’ की शुरुआत की और रजाकारों को उनकी औकात दिखाई।

अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद संयुक्त और मजबूत भारत का सपना पूरा करना आसान नहीं था। भारत की स्वतंत्रता के समय , ब्रिटिश भारत स्वतंत्र राज्य और प्रांतों से मिलकर बना था, जिन्हें भारत, पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने के विकल्प दिए गए थे। जिन लोगों ने निर्णय लेने में काफी समय लगाया उनमें से एक हैदराबाद के निजाम भी थे।

हालांकि, सरदार वल्लभ भाई पटेल पर जिम्मेदारी थी, देश को एकजुट करने की। उन्होंने 500 से अधिक रियासतों को एकजुट करना शुरू किया। अधिकतर रियासतें तो विलय के लिए राजी हो गई, लेकिन हैदराबाद में उन रियासतों में से एक थी, जिसने विलय से इनकार कर दिया।

यहीं से होती है ऑपरेशन पोलो की शुरुआत। दरअसल, 11 सितंबर को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मौत हुई और उसके एक दिन बाद यानि 12 सितंबर को भारतीय सेना ने हैदराबाद में सैन्य अभियान शुरू किया। सेना के लिए हैदराबाद को फतह करना इसलिए भी बड़ी चुनौती थी, क्योंकि सत्ता तो निजामों के पास थी लेकिन कमान रजाकारों के हाथों में थी। निजाम ने रजाकार सेना बनाई थी। मुस्लिम सैनिकों की ख्वाहिश हैदराबाद को अलग मुल्क बनाने की थी।

निजाम के पास अपना तेज दिमाग और अंग्रेजों से दोस्ती के अलावा जो सबसे बड़ी ताकत थी, वो थे रजाकार। अब आपके मन में सवाल ये होगा कि आखिर ‘रजाकार’ थे कौन?

रजाकार एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब है ‘स्वयंसेवक’। ये आम लोगों से बनी एक फोर्स थी, जिसके पास हथियार चलाने का थोड़ा-बहुत अनुभव होता था।

उस समय हैदराबाद में 85 प्रतिशत आबादी हिंदू की थी, जबकि शेष मुस्लिम थे। लेकिन एक सोची समझी साजिश के तहत सभी ऊंचे पदों पर मुसलमानों का कब्जा था। यहां तक कि रियासत में ज्यादातर टैक्स हिंदुओं से ही वसूले जाते। बहुसंख्यकों पर लादे इन्हीं करों से शाही खजाना बढ़ता चला गया। हिंदुओं का आर्थिक तौर पर शोषण तो हो ही रहा था साथ ही उनको शारीरिक ज्यादतियों का भी शिकार होना पड़ा रहा था। निजाम की सरपरस्ती में रजाकार आपे से बाहर हो रहे थे। खुलेआम कत्लेआम मचा रखा था। जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था। ये अत्याचार बढ़ता चला गया और एक दिन ऐसा आया जब हिंदुओं ने इसके खिलाफ आवाज उठाई।

13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना ‘ऑपरेशन पोलो’ के तहत हैदराबाद में प्रवेश किया। भारतीय सेना और रजाकारों के बीच करीब चार दिनों तक संघर्ष चला और फिर निजाम ने हथियार डाल दिए। हैदराबाद का भारत में विलय हो पाया। रिपोर्ट के मुताबिक, इस अभियान में 27 से 40 हजार जानें गई थी। हालांकि, जानकार ये आंकड़ा दो लाख से भी ज्यादा बताते हैं।