
भारत शास्त्री
कई देशों की यात्रा, वहां की सुंदरता, वहां का मौसम, वहां के पर्यटन स्थल जिसमें वहां के जंगल और कई मनोरम सुंदर ऐसे बीच जो मैंने वहां देखे थे- कम से कम उन जैसे दृश्यों की कल्पना मैंने भारत में तो नहीं की थी. पर इस मिथक को मेरी अंडमान की यात्रा ने तोड़ दिया. वनों की चादर ओढ़े कई आईलैंड जो प्लेन से ही दिखना शुरू हो जाते हैं. आईलैंड का काफी हिस्सा आज भी वन संपदा से भरा पड़ा है. जिसमें मेंग्रोज, नारियल के पेड़ दिखाई देते हैं. साथ ही साफ सुथरे ऐसे सुंदर बीच जो उपर से ही बहुत खुबसूरत लग रहे थे मानों जैसे ईश्वर ने कई रंगों से मिलाकर कोई ऐसी पेंटिग बना रखी है जिसे आपका मन देखने का तो बहुत होगा पर इसकी सुंदरता से छेड़छाड़ करने का तो बिल्कुल नहीं होगा। जब हम अंडमान की धरती पर उतरे तो मौसम में कुछ ह्यूमडिटी थी पर कुछ देर बाद ही मौसम ने करवट ली और हल्की बारिश शुरू हो गई जिसने जन्नत जैसी जगह में मौसम को सुहावना कर ना केवल हमारा स्वागत किया बल्कि उसमें चार चॉंद भी लगा दिये।
ये वो अंडमान नहीं था जिसकी कल्पना मेरे दिमाग में थी। स्केच अंडमान का जो था उसमें काला पानी, अंग्रेजों व्दारा दी गई यातना, सुनामी से बरबाद हुआ आईलैंड ये सब था, पर जिस अंडमान को अभी तक मैं इन कारणों से जानता था अब ये उससे बिल्कुल अलग है। ये अब वो अंडमान है जहां हनीमून कपल विदेश ना जाकर अपनी जीवन भर की यादों को यहां संजोने आते हैं, जो सपने देखे थे उन्हें साकार करने आते हैं। ऐसा नहीं है कि यहां केवल ये ही आते हों सभी उम्र के पर्यटक हमें यहां देखने को मिले जो यहां इतिहास से रूबरू होने में भी उतनी ही रूचि लेते हैं जितनी बीच और उससे जुड़ी जगहों पर मस्ती करने में।
चूंकि विधानसभा की पत्रकार समिति का ये दौरा था तो इसकी शुरूआत यहां के लेफ्टिनेंट गवर्नर श्री जगदीश मुखी की मुलाकात से शुरू हुई जिन्होंने एक मंजे हुए राजनेता की तरह हमसे बात की, अपनी प्राथमिकता भी गिनाई, अंडमान की विशेषता भी बताई। जिसमें सेक्यूलर, साफ सुथरा, संपदा को बचाए रखने के साथ ही पर्यटन को बढ़ावा देने जैसी बातें शामिल थी पर चूंकि वो एक प्रोफेसर भी रहे हैं तो हम सभी पत्रकारों को काफी सीख के साथ साथ हमारे पेशे से जुड़ी कमियां भी गिना गए। लेकिन मेरे लिए ये मुलाकात केवल एक सौजन्य थी क्योंकि मुझे तो इंतज़ार था उस पल का जिसको जीने मैं यहां आया था लेकिन उसमें एक दिन का और इंतज़ार था। हमें अंग्रेजों की बनाई सेल्यूलर जेल जाना था भले मेरी इच्छा वहां जाने की नहीं थी लेकिन वहां की जेल, अंग्रेजों के स्वतंत्रता के आंदोलन को दबाने के तौर तरीके, फांसी पर चढ़ाने की कहानी और वहां का साऊंड एंड लाईट शो उसने मुझे कुछ देर के लिए पूरी तरह स्तब्ध कर दिया। मैं ये भूल ही गया कि मैं यहां मौज मस्ती के लिए आया था। पूरी रात मैं सो ना सका लेकिन कहते हैं न हर रात की सुबह होती है, सुबह ऐसी जैसे सूरज समुद्र के बीच से केवल मेरे लिए खड़ा हो, उन पर लहरों और पेड़ के पत्तों की हवाओं के बीच से आ रही सरसराती आवाजों ने बता दिया कि मेरे अंदर क्या क्या प्रकृति व्दारा दिये नज़राने छुपे हैं ये केवल उसकी बानगी है।
वैसे इस सबके बाद जॉली ब्वाय आईलैंड पर जो हमने कोरल रीफ की संपदा को देखा वो वाकई एक दम अनूठा और आंखों से विश्वास करने वाला नहीं था। कोरल का ऐसा बड़ा संसार जो भारत में तो छोड़िए केवल विश्व में एक ही जगह है आस्ट्रेलिया जहां इससे बडा कोरल का संसार है लेकिन फिलहाल तो हमारी आंखो के सामने वो मोती मूंगा आने लगे जो इनसे निकलते हैं। तरह तरह के कोरल की ऐसी संपदा तो हम पहली बार ही देख रहे थे। मैंने इसके पहले भी समुद्र के कोरल देखे हैं लेकिन इतने बड़े बड़े कोरल और उनकी गुफाएं तो वाकई हमारी आंखों में ही नहीं समा रही थी। और उनके साथ तैरती छोटी छोटी रंगीन मछलियां, जो बता रही थी कि ये सब लाइव है। दरअसल ये कोरल समुद्र में 5-10 मीटर तक ही बनती हैं इसलिए जहां ये होती हैं वहां बड़े जहाज या बोट नहीं जाते हैं वरना इनको नुकसान पहुंच सकता है। छोटी छोटी नाव जिसमें बीच में पहले से ही मैग्नीफाईंग ग्लास की शीट लगी थी उससे हमने जब इनको देखा तो बस देखते ही रह गए..शायद ये बात शब्दों में कम ही बयां की जा सकती है। इसके बाद था सफर का पड़ाव रॉस आईलैंड जो आजादी के लड़ाई के दौरान अंग्रेजों के काफी काम आया। यहां अंग्रेजों ने अपने ऐशो आराम के सारे साधान रखे थे साथ ही ये अंग्रेजो की बनाई जाने वाली रणनीति के साथ जापानियों के इस व्दीप को कब्जा करने और सुनामी से अंडमान को बचाने का भी गवाह था।
अब सफ़र था यहां की आईलैंड की सुंदरता के साथ साथ ट्राइब को भी जानने समझने का। उसके लिए 100 किमी के जंगल को पारकर हमें बारटांग आईलैंड पहुंचना था लेकिन सफर के बीच में यहां की ट्राईब जारवा जनजाति भी हमें देखने को मिली। जो दिखने में नीग्रो और मंगोलियन का कुछ मिलाजुला रूप है। तीरकमान लिए जारवा हमें दिखाई भी दिए तो कहीं उनके बच्चे हमें नहाते और सारी गाड़ियों को बड़ी उत्सुकता से निहारते मिले पर अफसोस हम इनका एक भी फोटो क्लिक नहीं कर पाए क्योंकि सुरक्षा कारणों से हम अपनी बस रूकवा नही सकते थे। हमारी सारी बसों को केनबाई करके भेजा गया था जिसमें जगह जगह पर हमें पुलिस का दल और इनके केयरटेकर मिले। इसके बाद हम बाराटांग आईलैंड पहुंचे जहां से बडे जहाज़ से कार बस के साथ हम भी सवार होकर दूसरे कोने पर पहुंचे जहां से फिर स्पीड बोट से हम समुद्र के बैक वाटर के पानी को चीरते हुए तेजी से लाईम स्टोन केव्स की तरफ बढ़ रहे थे। ऐसा लग रहा था मानों घनी वन संपदा ने समुद्र के पानी के ऊपर ही अपना आशियाना बना लिया हो।
विधानसभा प्रेस दीर्घा सलाहकार समिति का दौरा अंडमान निकोबार की यात्रा पर गया था जिसमें 10 पत्रकार और 3 विधानसभा के लोग शामिल थे। पत्रकारों के दल ने यहां के आज के हालात, प्रशासकीय व्यवस्था, पर्यटन, ऐतिहासिक स्थलों और अंग्रेजों के दमन की कहानियों के साथ साथ सुनामी की मार का भी अध्ययन किया। जिसमें सुनील शुक्ला और प्रशांत जैन ने तो पूरे सफर में नैर्सगिक सौंदर्य का आनंद तो लिया ही उसे ऐसा अपनी आंखों में बसा लिया है जो किसी के लिए कभी भी जीवंत दृश्य के रूप में सामने आ सकता है। वहीं हमारे साथ गए राकेश अग्निहोत्री का पूरा ध्यान केवल ग्रुप फोटो और अपनी शाम को लिखने वाली ख़बर के संकलन का मसाला ढुंढने के लिए होता था जिसके लिए उनका साथ प्रवाल सक्सैना, रवि अवस्थी और भारत शास्त्री देते थे। हालांकि प्रवाल चूंकि मेरे रूम पार्टनर भी थे तो वो हमारे बीच की सारी ख़बरें भी मुझको सुनाते थे लेकिन सुबह उठकर वो भी कमरे की गैलरी से काफी देर तक वहां की सुंदरता को निहारते रहते और कहते मैं यहां पहले क्यों नहीं आया। एक और हमारे सीनियर रवि अवस्थी ने भी वहां खूब मौज मस्ती की बस कभी कभी वो गायब हो जाते थे जिनको ढूंढने पूरी टीम अपने अपने अंदाज मे निकलती थी। एक हमारे और अज़ीज मित्र सुनील शर्मा जो एक दिन बाद पहुंचे थे लेकिन अगर आप उनकी फोटो देखेंगे तो ऐसा लगेगा जैसे सारी मस्ती की हदें इन्होंने ही पार की हो। एक अंदाज और इनका फेमस था वो इनका बात करने के स्टाइल जो इनको जानते थे वो तो गंभीर नहीं होते थे अलबत्ता बाकियों को जरूर कुछ देर के लिए ये गंभीर कर देते थे। अब बात करते हैं गिरिश शर्मा की जो बड़े मान मुनव्वल के बाद इस दौरे पर गए लेकिन जब गए तो ऐसा लगा मानों वहीं के हो गए हों। तैरना भले ना आता हो लेकिन जज्बे और हिम्मत की इनकी दाद देनी होगी वो हमारे साथ स्कूबा डाईविंग के लिए ऐसे तैयार हुए जैसे मन में वो भोपाल से ही इसके लिए तैयार होकर आएं हों यहां राकेश अग्निहोत्री का जिक्र भी जरूरी है जो पहले शख्स है जिसने स्कूबा डाईविंग के लिए हामी भरी थी। बस अफसोस मुझे व्यक्तिगत रहा तो दीपेश अवस्थी के स्कूबा डाईविंग में नहीं जाने का जिन्होंने पूरे सफर के दौरान मुझसे इसके बारे में जानकारी ली लेकिन बाद में वो हिम्मत नहीं बना पाए। पर एक अंदाज जो इनका सबसे जुदा था वो अपने से ज्यादा यहां की प्राकृतिक सुंदरता को अपने मोबाईल में फोटो और वीडियो से कैद करना। अब बात उस शख्स की जो हमारे बीच सबसे बड़े थे जिनको ऐसी कई यात्राओं का बहुत गहरा अनुभव था जी हां मैं बात कर रहा हूं प्रमोद पगारे का जिनके पास अंडमान में वहां के लोगो की कई छोटी बड़ी स्टोरी का पूरा रिकार्ड मौजूद है। इतना ही नहीं सबसे जल्दी उठने और देर से सोने वाले पगारे साहब के पास सारे पत्रकारों का भी मिनट टु मिनट रिकार्ड है। अब अगर उनकी बात जिनके अथक प्रयासों के कारण ये दौरा बन पाया वो हैं इस फिल्म के करण अर्जुन जी मैं बात कर रहा हूं नरेन्द्र मिश्रा और रविन्द्र दुबे की जिनकी जोड़ी की हम जितनी तारीफ करें उतना कम है। समिति के लिए नरेन्द्र मिश्रा ने तो अपने व्यक्तिगत संबंधो का भी इस्तेमाल किया पर किसी बात में कमी नहीं आने दी। हम सब की स्थिति वहां फिल्म करण अर्जुन में राखी जैसी थी जो आपको किसी भी परेशानी के लिए कहते मिल जाते कि मेरे करण अर्जुन आएंगे, जरूर आएंगे (नरेन्द्र-रविन्द्र) । यहां सबसे महत्वपूर्ण आदमी हमारे साथ गए विधानसभा के मार्शल वीरेन्द्र कुमार मिश्रा का भी जिक्र करे बगैर दौरा पूरा नहीं होता है ये वो शख्स हैं जिन्होंने हमारी सुरक्षा में तो कोई कोर कसर नहीं छोड़ी साथ ही हर जगह हमारी जरूरत के लिए सारथी बने नज़र आए। इस दौरे को इतना यादगार और महत्वपूर्ण बनाने के लिए जिनकी अनुमति से ये सब संभव हुआ हम सभी पत्रकार माननीय विधानसभा अध्यक्ष श्री सीताशरण शर्मा, विधानसभा उपाध्यक्ष श्री राजेन्द्र सिंह और विधानसभा के प्रमुख सचिव श्री ए पी सिंह के बहुत शुक्रगुजार और आभारी हैं।
अदभुत् रोमांच से भरे इस सफ़र में हम कई जगह मेंग्रोज के पेड़ों और उनके झुंडों से ऐसे निकले मानों हम किसी फिल्म की शूटिंग का हिस्सा हों। इतने रोमांच के बाद पूरा शरीर उर्जा से लबरेज़ था लेकिन जैसे ही सबको मालूम हुआ कि लाईम स्टोन केव्स के लिए डेढ़ किलोमीटर का सफ़र अब आपको पैदल चलना है बस क्या था सबके होश फाख़्ता हो गए। और जब चलना शुरू किया तो मालूम हुआ कि भले सारे पत्रकार कलम से मजबूत हों लेकिन चलने के मामले में तो एकदम अनफिट हैं। एक साथ तो प्रमोद पगारे के चलने के पहले ही छूट गया और दूसरा साथ प्रवाल सक्सैना का लाईम स्टोन के बाहर छूट गया जो केव्स के अंदर के अंधेरे को देखकर डर गए। खैर बाकियों ने इसके अंदर प्रवेश किया और चूने के पत्थर पर पानी और सूरज की रोशनी के कारण बनी कई आकृति देखी जहां पुरी गुफा में एक दो होल नजर आए जहां से रोशनी और पानी आता था। टार्च की मदद से हमने यहां कई स्वतह देवताओं की बनी आकृति भी देखी। सफेद संगमरमर की तरह दिखने वाली इस गुफा में अगर आप इसे हाथ लगा लेते हैं तो ये पीली और काली पड़ जाती थी जिसके कारण हमने केवल इसको आंखों से ही निहारा।
अगला दिन हैवलॉक आईलैंड और राधानगर बीच जाने का जिसका इंतज़ार आंखे पहले दिन से कर रही थी पर कहते हैं ना हर अच्छी चीज़ बाद में ही दिखाई जाती है उसी तरह अंडमान में हैवलॉक आईलैंड जो स्कूबा डाईविंग के लिए फेमस है तो राधानगर बीच को सुंदरता और क्रिस्टल क्लीयर वाटर के लिए एशिया में नंबर वन का एवार्ड मिल चुका है। ये जगह थी जिसे अंडमान का वाकई स्वर्ग कहते हैं जहां हम खड़े थे वहां रोमांच से भरा समुद्र के अंदर जलीय जीव जंतुओं का संसार था जिसे देखने के लिए हम जाने वाले थे। हालांकि स्कूबा डाईविंग मैं पहले भी कई बार विदेशों में कर चुका हूं पर भारत में पहली बार कर रहा था वो भी इतनी सुंदर जगह। एक एक पल मुझ पर इतना भारी पड़ रहा था मानों जैसे करवा चौथ का चांद हो जिसका इंतजार सुबह से हो रहा था लेकिन अब चांद को देखने की घड़ी आ गई थी। इस सफर में हमारे सारे साथी छूट गए थे रह गए थे केवल अमर अकबर और एंथोनी- राकेश अग्निहोत्री, गिरीश शर्मा और मैं ही बचे थे। हमारे हौसला अफ़जाई के लिए सब कुछ छोड़कर आए जय और वीरू यानि सुनील शर्मा और प्रवाल सक्सैना। जो वाकई हमारी जान को लेकर काफी फिक्रमंद थे। हम तीनों समुद्र के ऊपर तो सारी बातें इनस्ट्रक्टर की समझ रहे थे लेकिन जब हम समुद्र के अंदर पहले 15 मीटर और बाद में 30 मीटर पहुंचे तो एकदम समुद्र के ऐसे रंगीन संसार में थे जो केवल डिस्कवरी पर ही देखा करते थे। रंगीन मछलियों का संसार, केकड़े, ऑक्टोपस, रंग बदलने वाली मछलियां उनके ऊपर से गुजरते हुए हम, ना भूलने वाला अनुभव ऐसी दुनिया से रूबरू करा रहा था जहां कभी पैर जम सकते हैं ये सोचा भी नहीं था लेकिन उड़ती हुई रेत के बीच हम समुद्र की धरती पर खड़े थे और उस साथ में हमारे साथ थे बाहर की तरह समुद्र के अंदर भी पूरी उर्जा से भरे हुए राकेश तो वहीं जीवन संगिनी की तरह हाथ थामे अपने गाईड का गिरीश भी। वहां हम लोगों व्दारा दिखाया जा रहा विक्टरी का साईन, वाकई हम लोगों को एक जीत खुशी रोमांच और एडवेंचर का ऐसा जर्बदस्त एहसास करा रहा था मानों ये पल यहीं रूक जाए ठहर जाए और हम इन्हीं के बीच रह जाएँ। समुद्र के ऐसे स्वर्णिम संसार को देखकर अपनी आंखो में कैद कर हम पहुंचे राधानगर बीच जो वाकई प्रकृति की देन है जहां ऊंचे ऊंचे नारियल के पेड़ और वहां की वन संपदा के बीचों बीच ये नज़ारा। उफ्फ एक ही शब्द मुंह से निकलता है जन्नत है ये, जहां आकर बस कोई आपसे जाने को ना कहें। इतना साफ उपर से नीचे दिखने वाला समुद्र का पानी, सफेद रेत को लाता और ले जाता ये लम्हा भी यादगार था। इतना सुंदर बीच जो एशिया का नंबर वन बीच है वहां आकर अगर मैंने किसी को सबसे ज़्यादा मिस किया तो वो मेरी पत्नि और बिटिया थी जिनको पानी और इस प्राकृतिक नज़ारों से बहुत प्यार है। लगभग सभी देश विदेश के दौरे पर साथ रहने वाली ये हमारी टीम इस दौरे पर नहीं थी जिसकी मुझे सबसे ज्यादा यहां कमी महसूस हुई, इसलिए आप कभी भी ऐसी जगह पर आएं तो हमेशा परिवार के साथ ही आएं।
उनकी याद और कमी के बीच हम अंडमान से वो यादें लेकर जा रहें हैं जो शायद जिंदगी में किसी पर्यटन स्थल से ना मिली हों। ये वो जगह है जहां इतनी प्रचुर वन संपदा, प्राकृतिक संपदा, ऐसे तमाम आईलैंड जिनमें से हर एक आईलैंड की अपनी कहानी है जो आपको ना केवल उसके ऐतिहासिक महत्व, सीमा सुरक्षा, प्रकृति प्रदत्त इन आईलैड को कैसे आज भी उसी रूप में सहेज और संभाल कर रखा है जिसे इस तरह देखना वाकई एक सपना ही लगता है। तो हम भी इन यादों को अपनी आंखों में समेटे इस उम्मीद से जा रहे हैं कि शायद फिर कभी अगली सुबह यहां की हो।
अलविदा अंडमान-तुमको ना भूल पाएंगे, चाहेंगे तुमको उम्र भर, तुमको ना भूल पाएंगे।