नई दिल्ली, 1 अक्टूबर (आईएएनएस)। 155 साल पहले एक ऐसी शख्सियत का जन्म हुआ, जो पूरे विश्व के लिए प्रेरणा स्रोत बने। जिसने अंग्रेजों के पसीने छुड़वाए और भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई। खास बात यह है कि इन्होंने दुश्मनों के सामने कभी हथियार नहीं उठाया। दांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन के जरिए ही अंग्रेजी हुकूमत को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। हम बात कर रहे हैं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की।
जिन्हें ‘बापू’ के नाम से भी जाना जाता है। एक वकील, स्वतंत्रता सेनानी होने के अलावा बापू समाज सुधारक भी थे। दुबली काया, साधारण कपड़े और हाथ में लाठी, बापू की यही पहचान थी। लेकिन, इस आम इंसान के अंदर एक महामानव निवास करता था, जिसने दुनिया को सत्य और अहिंसा की सीख दी।
महात्मा गांधी के बारे में सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों में भी ‘गांधी स्टडीज’ विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। उन्होंने ऐसे कई काम किए, जिससे वो हमेशा के लिए अमर हो गए। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपना पूरा जीवन सत्य, अहिंसा, ग्राम स्वराज और सर्वधर्म समभाव जैसे सिद्धांतों पर जिया। ‘करो या मरो’, ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’, ‘बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो’, ‘पाप से घृणा करो, पापी से नहीं’, ‘अहिंसा परमो धर्म’ बापू के वो नारे थे, जिन्होंने भारतीयों के दिलों में ऐसा जोश भर दिया था कि अंग्रेजी हुकूमत तक हिल गई थी।
क्या आप जानते हैं कि महात्मा गांधी को पहली बार किसने ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था और किसने यह उपाधि दी। सिंगापुर में एक रेडियो संदेश देते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था। जिसके बाद भारत सरकार ने भी ‘राष्ट्रपिता’ को मान्यता दी। 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर कई कार्यक्रमों के जरिए उनके सिद्धांतों को आत्मसात करने की सीख दी जाती है।
महात्मा गांधी का वास्तविक नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और मां का नाम पुतलीबाई था। महज 13 साल की आयु में गांधी जी का कस्तूरबा गांधी के साथ विवाह कर दिया गया था। उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई पोरबंदर और राजकोट में हुई। साल 1888 में महात्मा गांधी लॉ की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए थे। वहां यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन से उन्होंने बैरिस्टर की डिग्री ली।
महात्मा गांधी की जिंदगी में उस वक्त नया मोड़ आया, जब वकालत करने के बाद साल 1893 में वह कानूनी मामले के लिए दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। यहां उन्हें नस्लभेदी टिप्पणियों और भेदभाव का सामना करना पड़ा था। इसके बाद अफ्रीका में रह रहे भारतीय लोगों को उनके रंग रूप के कारण संघर्ष करता देख, उन्होंने उनका साथ दिया और उनकी लड़ाई लड़ने का निर्णय किया। यहीं से उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया और उन्होंने सत्याग्रह का सिद्धांत विकसित किया।
अफ्रीका में महात्मा गांधी के बढ़ते प्रभाव को देख अंग्रेज उन्हें अपमानित करने की कोशिश करने लगे। यहां तक उन्हें ट्रेन से धक्के देकर गिराया गया। लेकिन, बापू इन सब बातों से निराश नहीं हुए। उन्होंने वहां लगातार संघर्ष किया। इस संघर्ष में पैसों की जरूरत पड़ी तो उन्होंने रतनजी दादाभाई टाटा को याद किया। यह बात जब आरडी टाटा को पता चली, तो उन्होंने अफ्रीका में महात्मा गांधी को 24 हजार रुपये का चेक तक भेजा।
कुछ साल अफ्रीका में रहने के बाद साल 1915 में महात्मा गांधी स्वदेश लौटे। भारत आते ही बापू आजादी की लड़ाई से जुड़े। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन (1920), दांडी यात्रा (1930), भारत छोड़ो आंदोलन (1942) का नेतृत्व किया। महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता सेनानी के अलावा स्वच्छता अभियान, छुआछूत, महिला सशक्तीकरण जैसे समाज सुधारक के रूप में भी काफी काम किया।
दुर्भाग्य से देश को आजादी मिलने के 5 महीने बाद ही 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की नाथूराम गोडसे ने दिल्ली में गोली मारकर हत्या कर दी। उनकी मृत्यु ना सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए शोक लेकर आई। उनके निधन पर जवाहर लाल नेहरू ने कहा था, “हमारे जीवन से प्रकाश चला गया है और हर जगह अंधेरा छा गया है।”