नई दिल्ली, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)। ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’, ‘अमृतस्य नर्मदा’, ‘तीरे-तीरे नर्मदा’, ‘नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो’, उनकी पुस्तकें के शीर्षक खुद बयां करते हैं कि वो किस कदर नर्मदा से जुड़े थे। अमृतलाल वेगड़ गुजराती और हिन्दी भाषा के विख्यात साहित्यकार, चित्रकार और नर्मदा प्रेमी थे। उन्होंने नर्मदा सरंक्षण में अहम भूमिका निभाई थी और करीब 4 हजार किलोमीटर की पदयात्रा की। मां नर्मदा से उनका यह लगाव जगजाहिर था, जिसे उन्होंने अपनी लेखनी में बड़े प्यार से पिरोया।
अमृतलाल वेगड़ का जन्म 3 अक्टूबर 1928 को जबलपुर, मध्य प्रदेश में हुआ था और उन्होंने अपनी अंतिम सांस 89 वर्ष की आयु में 6 जुलाई 2018 को ली। हालांकि, आज भी वो अपनी लिखी पुस्तकों के कारण भारतीय इतिहास में अमर हैं।
गुजरात संस्कृति से ताल्लुक रखने वाले अमृतलाल हिंदी साहित्य के भी माहिर थे। नर्मदा नदी के प्रति उनकी गहरी आस्था और लगाव था और उनकी मुख्य रचनाएं भी इस पर ही केंद्रित थी। यही वजह है कि उनकी नर्मदा पर आधारित तीन मुख्य रचनाएं हिंदी, गुजराती, मराठी, बंगला, अंग्रेजी और संस्कृत में प्रकाशित हुईं।
वे उन चित्रकारों और साहित्यकारों में से थे, जिन्होंने प्रकृति को सुरक्षित रखने के लिए कई सराहनीय कार्य किए। वे गुजराती और हिंदी में साहित्य अकादमी पुरस्कार और अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हुए थे। उनकी लिखी ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’ को भी खूब सराहा गया था।
नर्मदा और सहायक नदियों की चार हजार किलोमीटर की पदयात्रा के जरिए उन्होंने इसमें समाई बेशुमार जल-जैव से दुनिया को वाकिफ कराया। उन्होंने नर्मदा की परिक्रमा दो बार पूरी की थी। अमृतलाल वेगड़ की एक अन्य हिंदी की प्रसिद्ध किताब- ‘नर्मदा की परिक्रमा’ है, जो उन्होंने नर्मदा की परिक्रमा के दौरान लिखी थी। उन्होंने इसमें नर्मदा के हर भाव और अनुभव को अपने चित्रों और साहित्य में उतारा।
उनके इस खास लगाव और कलम के जादू से ‘नर्मदा’ का उल्लेख सराहनीय था और दुनिया में इस तरह उन्हें ‘नर्मदा पुत्र’ के नाम से भी लोकप्रियता मिली।