लता मंगेशकर कहती थी ‘संत की आवाज’, प्रयोग करने में थे माहिर, पहली ही फिल्म ने रचा इतिहास

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नई दिल्ली, 25 सितंबर (आईएएनएस)। ‘हमने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू’ – आंखें काली हो सकती हैं, उनमें नींद भरी हो सकती है वो गहरी हो सकती हैं लेकिन खुशबू! उस दौर में लोगों ने गुलजार की कलम पर ऐसे ही सवाल उठाए। इडंस्ट्री में ज्यादा दिन नहीं हुए थे इसलिए डरे सहमे थे लेकिन ऐसे समय में ही गाने को म्यूजिक से सजाने वाले हेमंत कुमार आगे आए। उनका आत्मविश्वास बढ़ाया , मजबूती से खड़े रहे और इसके बाद जो हुआ वो अद्भुत रहा। ये गुलजार के टॉप 10 गानों की फेहरिस्त में शामिल हो गया। तो हेमंत दा ऐसे ही प्रयोगों का नाम था। बनारस में जन्मे हेमंत मुखोपाध्याय ने अपने जीवन से लेकर गानों तक में खूब प्रयोग किए, तो आज बात उन खूबसूरत प्रयोगों की जो हिंदे सिने जगत के मील का पत्थर साबित हुए।

लंबी कद काठी, धोती कुर्ता म्यूजिक डायरेक्शन के दौरान हाथ में सिगरेट—यही पहचान थी हेमंत कुमार की। बनारस में जन्में, बंगाल में पले बढ़े दादा बांग्ला और हिंदी फिल्मों के जबरदस्त सिंगर-कंपोजर थे। अपने गानों में प्रयोग इनकी खासियत थी। कौन भूल सकता है ‘आनंद मठ’ का ‘वंदे मातरम’। राष्ट्रीय गीत जिसमें लता और हेमंत कुमार की आवाज ने आजादी के दीवानों के जुनून को बखूबी बयां किया था।

2020 में आई किताब ‘द अनफॉर्गेटेबल म्यूजिक ऑफ हेमंत कुमार’ (लेखक मानेक प्रेमचंद) में इसका जिक्र है। पहली बार हेमंत दा ने किसी हिंदी फिल्म के लिए संगीत दिया था। गीत में किया गया प्रयोग शानदार है। इसमें काउंटर मेलोडी का इस्तेमाल है यानि सिंगर का अलाप कुछ और है तो कोरस कुछ अलग ही धुन को पकड़ आगे बढ़ रहा है। एक खास बात ये कि उस दौर में मेल वॉइस के लिए कोरस में फीमेल सपोर्ट होता था लेकिन इस गीत में मेन फीमेल वॉइस को मेल कोरस का साथ मिला। लता मंगेशकर ने भी बड़ी शिद्दत से इसे गाया, मेहनत भी खूब की। खुद हेमंत दा ने अपने रेडियो शो में बताया था कि 21 टेक लिए गए थे।

प्रयोग की बात होती है तो ‘नागिन’ का जिक्र छिड़ना लाजिमी है। 1954 में रिलीज हुई। इसके गानों ने तहलका मचा दिया। कहते हैं पिक्चर लोगों पर असर नहीं डाल रही थी तो डायरेक्टर ने हजार डिस्क रेस्त्राओं और होटल में पहुंचा दिए, जिससे गानों से बात बन जाए। हुआ भी ऐसा ही। एक गाना जो लोगों की जुबान पर चढ़ा वो था ‘मन डोले मेरा तन डोले’। इसकी बीन की धुन लोगों के दिलो दिमाग पर छा गई। हेमंत दा ने खुद बताया था कि स्टूडियो में साजिंदों के बीच बीन की धुन फिट नहीं बैठती थी।

फिल्म का नाम नागिन और बीन की धुन न हो भला ऐसा कैसे हो? गायक-संगीतकार हेमंत कुमार ने इसका भी हल निकाल लिया!

हारमोनियम और कल्वायलिन के मिश्रण से फेमस नागिन धुन तैयार की। इससे जुड़ा एक किस्सा हेमंत दा ने सुनाया था। उनके सहायक थे कल्याण जी। एक बार वो नागपुर के किसी गांव में गए। वहां लोगों ने उनसे नागिन का गाना बजाने की फरमाइश की। जब उन्होंने कल्वायलिन से धुन छेड़ी तो लोग नाराज हो गए, बोले अरे ये तो मुंह से नहीं हाथ से बजा रहे हैं? हमें तो बीन सुननी है। तब कल्याणजी भाई ने उन्हें बताया कि गाना बीन बजाकर नहीं कल्वायलिन और हारमोनियम के मिश्रण से तैयार हुआ है।

हेमंत कुमार ने पहली बार प्लेबैक सिंगर के तौर पर बांग्ला निमाई संन्यास के लिए 1941 में गाना रिकॉर्ड किया था। बांग्ला के सुपर स्टार उत्तम कुमार की आवाज थे हेमंत दा। तो हिंदी सिने जगत के देव आनंद की रोमांटिक आवाज बने। इरादा (1944) में हिंदी पार्श्व गायक के रूप में पहला ब्रेक मिला था तो बांग्ला फिल्म अभ्यात्री (1947) हेमंत कुमार की संगीत निर्देशक के तौर पर पहली फिल्म थी।

जागृति के ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं’ और ‘दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल’ ने लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया। फिल्म जागृति (1954) थी। जिसने उन्हें संगीत निर्देशक के रूप में स्थापित कर दिया।

1950 के दशक में हेमंत-बेला नाम से अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू किया था, जिसका बाद में नाम बदलकर गीतांजलि प्रोडक्शंस कर दिया गया। फिल्म ‘नील आकाशेर नीचे’ (1959) इस बैनर तले बनी पहली बांग्ला फिल्म थी, जिसे राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक भी मिला।

बॉलीवुड में उनके प्रोडक्शन में बनी फिल्म बीस साल बाद (1962) ने भी सफलता के झंडे गाड़े। म्यूजिक ने अहम भूमिका निभाई थी। हॉन्टिंग म्यूजिक के सफल संगीत निर्देशक के तौर पर भी पहचाना जाने लगा। ‘कहीं दीप जले कहीं दिल’ एक बेंचमार्क बन गया। एक बात और छोटे से ब्रेक के बाद लता की बतौर प्लेबैक सिंगर ये कमबैक फिल्म भी थी।

हेमंत दा जितने सरल सहज थे उतने ही स्वाभिमानी भी। 1987 में जब उन्हें पद्म भूषण के लिए नामांकित किया गया तो विनम्रता से ठुकरा दिया। कहा कि समय निकल चुका है। इससे पहले 1970 में भी पद्म श्री के लिए न कह चुके थे।

16 जून 1920 को बनारस में जन्मे हेमंत दा का निधन 26 सितंबर 1989 को कलकत्ता के नर्सिंग होम में हुआ। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था।

हिंदी सिने जगत के गोल्डन एरा के नौ रत्नों (गायकों) में से एक थे हेमंत दा। इन नौ रत्नों में मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, किशोर कुमार, मुकेश, आशा भोंसले, तलत महमूद, मन्ना डे, गीता दत्त जैसे दिग्गज शामिल थे। इनकी बैरीटोन आवाज का जादू ही कुछ और था। संगीतकार सलिल चौधरी कहते थे कि अगर भगवान खुद आकर गाता तो हेमंत दा की ही आवाज में गाता तो लता मंगेश्कर कहती थीं, जब हेमंत कुमार गाते हैं तो लगता है मानो कोई पुजारी मंदिर में बैठकर गा रहा हो।