भारत की जनजातीय कला : परंपराओं, मान्यताओं और जीवनशैली का जीवंत चित्रण

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नई दिल्ली, 7 नवंबर (आईएएनएस)। भारत की जनजातीय कला हमारे देश की सबसे खूबसूरत और प्राचीन कलाओं में से एक है। यह कला सिर्फ रंगों और आकृतियों का मेल नहीं है, बल्कि यह उन लोगों की जीवनशैली, परंपराओं, मान्यताओं और प्रकृति के साथ उनके गहरे संबंध को भी दिखाती है।

भारत के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाली जनजातियां अपनी-अपनी विशेष कला शैलियों के लिए जानी जाती हैं, जिनमें हर एक की अपनी पहचान और कहानी होती है।

महाराष्ट्र की वारली कला बहुत प्रसिद्ध है। यह साधारण सी दिखने वाली पर बहुत गहरी भावना वाली कला है। इसमें गोल, त्रिकोण और रेखाओं से मनुष्य, जानवर और पेड़-पौधों की आकृतियां बनाई जाती हैं। यह कला ग्रामीण जीवन, खेती-बाड़ी और त्योहारों के दृश्यों को दर्शाती है।

इसी तरह, मध्य भारत की गोंड कला भी बेहद आकर्षक होती है। इसमें चमकीले रंगों का उपयोग होता है और चित्रों में लोककथाओं व प्रकृति के प्रतीकों को दिखाया जाता है।

पूर्वी भारत की संथाल कला मिट्टी के रंगों और प्राकृतिक वस्तुओं से बनाई जाती है। इसमें जनजातीय जीवन के सरल लेकिन गहरे पहलुओं को दिखाया जाता है। बिहार की मधुबनी चित्रकला की तो बात ही निराली है। यह कला घर की दीवारों या कपड़ों पर बनाई जाती है। इसमें देवी-देवताओं, विवाह और त्योहारों के दृश्य रंग-बिरंगे रूप में उकेरे जाते हैं।

ओडिशा की पटचित्र कला भी बहुत मशहूर है। यह कपड़े या ताड़पत्र पर बनाई जाती है। इसमें पौराणिक कथाएं और भगवान जगन्नाथ के जीवन की झलक देखने को मिलती है। ओडिशा की ही एक और कला है सौरा चित्रकला, जिसमें ज्यामितीय आकृतियों के माध्यम से देवताओं और मिथकीय कथाओं को दर्शाया जाता है।

राजस्थान और मध्य प्रदेश की भील कला में लोककथाएं, प्रकृति और अनुष्ठान से जुड़े सुंदर चित्र बनाए जाते हैं। वहीं, राजस्थान की फड़ चित्रकला बड़े कपड़ों पर देवी-देवताओं और नायकों की कहानियां दिखाती है।

गुजरात और मध्य प्रदेश की पिथोरा चित्रकला आशीर्वाद और धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़ी होती है। इसे घर की दीवारों पर बनाया जाता है ताकि समृद्धि और सुख-शांति बनी रहे। दक्षिण भारत में तमिलनाडु की तोड़ा कढ़ाई अपनी सुंदर ज्यामितीय डिजाइन और प्राकृतिक रंगों की वजह से जानी जाती है।