
रानी शर्मा
एक अकेली लड़की और उसके पीछे दर्जनों भगवा गमछा लहराते लड़कों की फौज, जो उसके हिजाब पहनने पर विरोध जताते हुए जय श्रीराम के नारे लगाते हुए चल रहे हैं. क्या यही भगवान राम का चरित्र था ? कल्पना कीजिए आपकी अपनी बेटी कभी किसी स्कूल-कॉलेज, मार्केट या कहीं अकेले किसी कार्यक्रम में जा रही है । चेहरे पर दुपट्टा या हिजाब पहनी है या धूल से बचने के लिए मास्क लगाकर चल रही है और उसके पीछे कुछ लड़के नारेबाजी करते हुए उसको परेशान करते हुए चल रहे हैं. बस कल्पना कीजिए कि उस समय आपको कैसा महसूस होगा ? आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे और आप उन लड़कों को सबक सिखाने के लिए दौड़ पड़ेंगे ।
कर्नाटक में कॉलेज जाती हुई जिस छात्रा के पीछे दर्जनों लड़के राम का नाम लेते हुए गुंडागर्दी करते हुए चल रहे थे और उसके हिजाब पहनने का विरोध कर रहे थे, इससे शर्मनाक घटना हमारे देश के लिए और क्या हो सकती है ?
एक अकेली लड़की दर्जनों लड़कों के सामने हिम्मत से सिर उठाते हुए चल रही थी। इस घटना से दो बातें सामने आती है एक यह कि हमारे देश की कोई भी बेटी अब कमजोर नहीं है, वह कमजोर दिमाग के अंध भक्ति में डूबे मूर्ख लड़कों का सामना करने में सक्षम हो रही हैं, दूसरी बात यह कि जो लड़के एक लड़की के पीछे जिस तरह से भय का माहौल बनाते हुए चल रहे थे क्या इनकी संवेदना इतनी शून्य हो चुकी हैं कि इनमें से किसी को भी इस लड़की में अपनी बहन या बेटी या अपनी मित्र नज़र नहीं आई।
आप विचार कीजिये कि यह घटना मात्र एक घटना नहीं है बल्कि हमारे समाज के एक वर्ग का नया रूप है, जो इस समय उभर कर सामने आया है इससे स्पष्ट है कि देश का कुछ युवा वर्ग अपनी सोचने समझने की शक्ति खोते हुए अंध भक्तों की तरह कुछ भी शर्मनाक कर गुजरने की हद तक जाने के लिए तैयार होता जा रहा है ।
एक ओर जबकि हमारे देश में बेटियों-महिलाओं को घर से बाहर निकलने और उन्हें उच्च शिक्षा दिलाने के लिए हमारे कई पूर्वजों ने लंबी लड़ाई सामाजिक बदलाव की लड़ी है, जिसके बाद बेटियां चांद तक जाने की जिद पूरी कर पाई हैं, ऐसे में इस देश में जो फांसीवादी माहौल पिछले 8 साल में भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद धीरे धीरे बनता जा रहा है, वह वाकई बहुत भयानक और समाज को तोड़ने वाला साबित होने जा रहा है। इस समाज में आज जिस मुकाम पर बेटियां पहुंची हैं वह एक बहुत लंबी संघर्ष की दास्तान है, ऐसे में समय-समय पर इस तरह की जो भी घटनाएं सामने आती हैं वह कहीं ना कहीं हमारी बेटियों का मनोबल तोड़ने की असफल कोशिश हैं। सब जानते हैं कि आज भी इस पितृसत्तात्मक समाज में बड़े पैमाने पर बेटियों को दिल और दिमाग से उनको आगे बढ़ने की अपने सपनों को साकार करने की आजादी कई माता-पिता चाह कर भी समाज के डर से नहीं दे पा रहे हैं, जो बेटियां बहुत ऊंचाइयों पर गई हैं वह आंकड़ा बहुत कम है।
हाल ही में सामने आई कर्नाटक जैसी घटनाओं का हमारे समाज के जागरूक संवेदनशील सभी इंसानों को पुरजोर विरोध करना होगा क्योंकि अगर आज हम चुप रहे तो कल फाँसीवादी ताकतें ओर ताकतवर होकर उभर कर सामने आएंगी, वास्तव में समाज के चंद मुट्ठी भर लोग अपनी सत्ता कायम रखने के लिए नौजवान पीढ़ी की ऊर्जा का गलत इस्तेमाल करने से नहीं चूक रहे हैं, ये लोग नौजवानों की ऊर्जा का उपयोग देश के विकास में ना करके सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए उनके अंदर नफरत- हिंसा के बीच बो रहे हैं, जिसके लिए यह समाज ओर आने वाली पीढ़ी उनको कभी माफ नहीं कर पाएगी।
वास्तव में हमारे भारत देश में पिछले 8 साल से जो बर्बादी का दौर चल रहा है उससे जनता का ध्यान हटाने के लिये समय-समय पर कुछ इस तरह की घटनाओं को योजना बनाकर अंजाम दिया जाता है ताकि जनता बेकार के मुद्दों में उलझी रहे ओर बाजिव सवाल न उठा पाए । सरकार की इस पॉलिसी को बारीकी से समझने की जरूरत है।
वास्तव में इस दुनिया में हर इंसान का आना और दुनिया को छोड़ कर जाना एक जैसा ही होता है, किसी को नहीं पता कि किसको -कितना लंबा जीवन जीना है, जब हमारे हाथ में हमारे दुनिया में आने और जाने तक का नियंत्रण नहीं है फिर क्यों मुट्ठी भर चंद लोग इस समाज में नफरत हिंसा की आग फैलाने का काम कर रहे हैं ? यह निहायती निंदनीय और शर्मनाक कृत्य है। हमें समाज को विकास के रास्ते पर आगे ले जाने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों का विकास और सम्मान करने की जरूरत है। दोनों की योग्यताओं को निखारने के लिए समान वातावरण देने की जरूरत है, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है ,स्त्री क्या पहनेगी? क्या खाएगी ? कैसे रहेगी? कैसे बोलेगी? यह सब अभी भी हमारे पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले समाज के ठेकेदार तय करना चाहते हैं हालांकि अब उनकी कोशिशें नाकाम साबित होने लगी हैं, ऐसे में समय-समय पर कर्नाटक जैसी ही स्त्री को दबाने की घटनाएं सामने आती रहती हैं, जो ठेकेदारों की मानसिकता को उजागर कर देती हैं लेकिन यह देश और इसमें रहने वाले बहुत बड़ी संख्या में स्त्री पुरुष अब जागरूक हो चुके हैं जो ऐसी मानसिकता के ठेकेदारों को जवाब देने में सक्षम है क्योंकि हम सबको मिलकर एक ऐसे समाज का निर्माण करना है, जिसमें स्त्री-पुरूष समानता -प्रेम और खुशी के साथ रह पाए, इस सपने को पूरा करने के लिए चंद विकृत मानसिकता के लोगों को जवाब देने के साथ ही उनकी मानसिकता को परिवर्तित करने के प्रयास भी करने होंगे।