नई दिल्ली, 12 नवंबर (आईएएनएस)। यह कहानी है लेखनी के तेज और प्रखर विचारधारा के जीवंत साक्ष्य माने गए, गजानन माधव मुक्तिबोध की। वे आधुनिक हिंदी कविता और समीक्षा के सर्वाधिक चर्चित व्यक्तित्व थे। प्रगतिवाद के प्रखर और मौलिक चिंतक आलोचकों में मुक्तिबोध का नाम सर्वाधिक प्रमुख है। समाज को नई दिशा देने वाली कालजयी रचनाओं के जरिए उन्होंने हमेशा जागरूक और प्रेरित किया। उनकी रचनाएं आज भी सभी के मार्गदर्शन का स्रोत हैं।
गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म 13 नवंबर 1917 को मध्य प्रदेश के श्योपुर में हुआ था। उनके पिता माधव राव एक निर्भीक व्यक्तित्व के पुलिस अधिकारी थे। उनकी मां पार्वती मुक्तिबोध हिंदी वातावरण में पलीं एक समृद्ध परिवार की धार्मिक, स्वाभिमानी और भावुक महिला थीं।
गजानन माधव लेखन में ही नहीं, जीवन में भी प्रगतिशील सोच के पक्षधर रहे। यही कारण है कि माता-पिता की असहमति के बावजूद प्रेम विवाह किया। 1939 में उन्होंने शांता से शादी की थी।
उनकी शिक्षा का कोई एक आधार केंद्र नहीं है। पिता का अक्सर तबादला हुआ करता था और इसलिए मुक्तिबोध की पढ़ाई में बाधा पड़ती रहती थी। आखिर में नागपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने हिंदी में एमए किया। इसी दौर में कविताएं लिखने का शौक बढ़ने लगा था। उनकी प्रेमचंद व हरिनारायण आप्टे के उपन्यासों में गहरी दिलचस्पी थी।
लेखन के साथ पढ़ाई के जरिए उन्होंने कमाई का एक जरिया भी खोजा। मुक्तिबोध ने 20 साल की उम्र में बड़नगर मिडिल स्कूल से मास्टरी शुरू की। इसके बाद दौलतगंज (उज्जैन), शुजालपुर, इंदौर, कलकत्ता, बंबई, बंगलौर, वाराणसी, जबलपुर और नागपुर जैसे शहरों में जाकर पढ़ाने लगे थे। आखिर में दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव में प्राध्यापक नियुक्त होकर जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का उपहार हिंदी जगत को दिया।
अध्ययन-अध्यापन, लेखन व पत्रकारिता के साथ-साथ आकाशवाणी व राजनीति की व्यस्तता के बीच सतत संघर्ष व जुझारू व्यक्तित्व का परिचय देते हुए मुक्तिबोध ने आधुनिक हिंदी कविता व समीक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी युग का सूत्रपात किया।
वे कहानीकार भी थे और समीक्षक भी। उनकी कविताओं में बावड़ी, पुराने कुएं, वीरान खंडहर, पठार, बरगद आदि अनेक शब्द बार-बार आते हैं। वे अपनी लम्बी कविताओं के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने निबंध, कहानियां और समीक्षाएं भी लिखीं। प्रगतिशील कविता और नई कविता के बीच उनकी कलम की भूमिका अहम और अविस्मरणीय रही।
लंबी कविताएं लिखने वाले मुक्तिबोध तारसप्तक के पहले कवि थे। उस समय के कवि श्रीकांत वर्मा ने ‘चांद का मुंह टेढ़ा है’ काव्य संग्रह के प्रथम संस्करण में लिखा, “किसी और कवि की कविताएं उनका इतिहास न हों, गजानन माधव मुक्तिबोध की कविताएं अवश्य उनका इतिहास हैं। जो इन कविताओं को समझेंगे, उन्हें मुक्तिबोध को किसी और रूप में समझने की जरूरत नहीं पड़ेगी।”
इसी तरह शमशेर बहादुर सिंह का कहना था, “किसी ने गजानन माधव मुक्तिबोध की एक बरगद से तुलना की है, जो अवश्य ही उनकी एक प्रिय इमेज है। मगर यह बरगद नहीं, चट्टान है।”
हालांकि, लगभग 47 साल की उम्र में मुक्तिबोध को गंभीर बीमारी ने जकड़ लिया और वो उससे बाहर नहीं निकल पाए। आखिरकार, लंबी बीमारी के बाद कवि मुक्तिबोध का 11 सितंबर 1964 को निधन हो गया।

