पाकिस्तान-चीन रक्षा संबंध: दक्षिण एशिया में बदलता सैन्य संतुलन और बढ़ते सुरक्षा खतरे

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मस्कट, 11 अगस्त (आईएएनएस)। पाकिस्तान-चीन के बीच बढ़ता रक्षा गठबंधन दक्षिण एशिया में सैन्य संतुलन को गहराई से बदल रहा है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक सुरक्षा ढांचे पर गंभीर खतरे मंडरा रहे हैं। एक रिपोर्ट में सोमवार को यह दावा किया गया। यह गठबंधन केवल हथियारों की खरीद-फरोख्त तक सीमित नहीं है, बल्कि पाकिस्तान को चीन के दक्षिण एशिया और उससे आगे के सामरिक सैन्य प्रभाव संचालन का अहम केंद्र बना रहा है।

रिपोर्ट में स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के हवाले से बताया गया है कि पिछले पांच वर्षों में पाकिस्तान के 81 प्रतिशत हथियार आयात चीन से हुए, जो पहले पश्चिमी और चीनी आपूर्तिकर्ताओं के बीच संतुलित नीति से एक बड़ा बदलाव है।

2015 से चीन ने पाकिस्तान को 8.2 अरब डॉलर के हथियार बेचे हैं, जबकि 2020-2024 के दौरान पाकिस्तान ने चीन के कुल हथियार निर्यात का 63 प्रतिशत हिस्सा खरीदा। पहले 2000 के दशक के अंत में अमेरिका और चीन, दोनों पाकिस्तान के हथियार आयात में एक-तिहाई योगदान देते थे, लेकिन हाल के वर्षों में पाकिस्तान ने अमेरिकी हथियार खरीदना लगभग बंद कर दिया और चीन पर निर्भरता बढ़ा दी। यह बदलाव अमेरिकी सैन्य सहायता कार्यक्रमों के रद्द होने के बाद तेज हुआ।

रिपोर्ट के अनुसार, लड़ाकू विमान से लेकर गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट तक के संयुक्त उत्पादन प्रोजेक्ट्स ने दोनों देशों के रक्षा उद्योगों के तकनीकी एकीकरण को गहरा किया है। इस सहयोग ने खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान को भी बढ़ावा दिया है, जिसमें पाकिस्तान ने चीन को अमेरिकी और पश्चिमी सैन्य तकनीक तक पहुंच उपलब्ध कराई, जिसे चीन ने रिवर्स-इंजीनियरिंग के जरिए विकसित किया।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि पाकिस्तान की बढ़ी हुई सैन्य क्षमता का असर भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता से आगे बढ़कर पूरे क्षेत्र में हथियारों की होड़ को तेज कर सकता है। साथ ही, पारंपरिक हथियार सहयोग के साथ-साथ परमाणु सहयोग को लेकर भी चिंताएं बढ़ी हैं। चीन द्वारा पाकिस्तान की परमाणु हथियार क्षमता बढ़ाने में मदद और तकनीक हस्तांतरण की अनौपचारिक रिपोर्टों ने दक्षिण एशिया में अस्थिरता और मध्य पूर्व तक असर पड़ने की आशंका को बल दिया है।

रिपोर्ट के अनुसार, यह गठबंधन न केवल दक्षिण एशिया बल्कि व्यापक हिंद-प्रशांत सुरक्षा समीकरण को प्रभावित कर रहा है और पश्चिमी देशों के हथियार निर्यात पैटर्न को चुनौती दे रहा है। इसके दीर्घकालिक अस्थिरकारी प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल सुरक्षा चिंताओं और दीर्घकालिक रणनीतिक प्रतिस्पर्धा, दोनों पर व्यापक नीति प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।