पंचकर्म: शरीर को रीसेट करने का आयुर्वेदिक नुस्खा, तन-मन दोनों को रखे स्वस्थ

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नई दिल्ली, 14 नवंबर (आईएएनएस)। आयुर्वेद में पंचकर्म को शरीर-मन की गहरी सफाई और रीसेट करने का प्राकृतिक तरीका माना जाता है, हम आमतौर पर बाहर की सुंदरता पर ज्यादा ध्यान देते हैं, लेकिन असली चमक तब आती है जब शरीर अंदर से साफ और संतुलित होता है। पंचकर्म इसी काम में मदद करता है।

पंचकर्म शरीर में जमा अपशिष्ट, अतिरिक्त दोष और तनाव को निकालकर आपको हल्का, ताजा और ऊर्जावान महसूस कराता है। इसमें पांच मुख्य उपचार शामिल होते हैं- वमन, विरेचन, बस्ती, नस्य और रक्तमोक्षण। हर उपचार का अपना खास उद्देश्य होता है और इन्हें किसी आयुर्वेदिक विशेषज्ञ की सलाह के बाद ही करवाना चाहिए।

सबसे पहले आता है वमन, जो खासतौर पर कफ दोष को कम करने में मदद करता है। इसमें विशेष जड़ी-बूटियों के प्रयोग से शरीर कफ और अवांछित पदार्थ बाहर निकाल देता है। फिर है विरेचन, जो पित्त की गड़बड़ियों को संतुलित करने के लिए किया जाता है। यह शरीर से पित्तजन्य विषाक्त पदार्थों को निकालकर पाचन और त्वचा से जुड़े कई समस्याओं में राहत देता है।

तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण माना जाने वाला उपचार है बस्ती। इसे आयुर्वेद में आधा उपचार भी कहा गया है। इसमें औषधीय तेल या काढ़े गुदा मार्ग से दिए जाते हैं, जिससे वात दोष संतुलित होता है और शरीर को गहराई से पोषण मिलता है।

चौथा उपचार है नस्य, जिसमें औषधीय तेल या घृत की कुछ बूंदें नाक में डाली जाती हैं। यह सिर, साइनस और मानसिक शांति से जुड़े लाभों के लिए जाना जाता है। पांचवां उपचार रक्तमोक्षण है, जिसमें शरीर से थोड़ी मात्रा में दूषित रक्त निकाला जाता है ताकि रक्त शुद्ध होकर त्वचा और परिसंचरण बेहतर हो सके।

पंचकर्म की एक खास बात यह है कि यह केवल रोग होने पर ही नहीं, बल्कि पहले से भी किया जा सकता है ताकि शरीर स्वस्थ और संतुलित बना रहे। पंचकर्म के बाद आने वाला समय ‘रसायन काल’ कहा जाता है। इस समय च्यवनप्राश, अश्वगंधा, ब्राह्मी और शतावरी जैसी रसायन दवाएं अधिक प्रभावशाली मानी जाती हैं।

आयुर्वेद के अनुसार साल में कम से कम एक बार खासकर मौसम बदलने पर पंचकर्म करवाना चाहिए। यह मन, शरीर और ऊर्जा तीनों को संतुलित कर जीवन में नयापन लाता है।