भोपाल : 16 नवंबर/ स्वराज्य विद्यापीठ के संचालकों द्वारा जारी रविवारीय गोष्ठी श्रृंखला के क्रम में 10 नवंबर की शाम को ‘भक्तिकालीन संत कवयित्रियों का जीवन संघर्ष’ विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया । उक्त विषय के वक्ता सुभाष राय रहे । सुभाष राय बहुचर्चित कवि, सम्पादक और चिंतक हैं । यह आयोजन स्वराज्य विद्यापीठ में किया गया.
गोष्ठी के विषय की प्रस्तावना देते हुए प्रोफ़ेसर बसंत कुमार त्रिपाठी ने बताया कि हम लोग उस दौर के केवल मीराबाई या ज्यादा से ज्यादा अक्क महादेवी को जानते हैं जबकि अगर अध्ययन किया जाये तो पता चलता है उस समय की उन कवयित्रियों की संख्या बहुत ज्यादा है जिन्होंने कई संघर्षों का सामना करते हुए अपनी पहचान बनाई । इसके बाद उन्होंने वक्ता सुभाष राय का परिचय देते हुए उन्हे वक्तव्य के लिये आमंत्रित किया
विषय के वक्ता सुभाष राय ने वक्तव्य देते हुए कहा – 12 वीं शताब्दी में सिर्फ शूद्र ही नारकीय जीवन नही जी रहे थे उस समय स्त्रियों की भी दशा कमोबेश वैसी ही थी । स्त्रियाँ अपने ऊपर हो रहे भयंकर शोषण को चुपचाप झेलने को अभ्यस्त थी उनके एक बड़े भाग ने इसे अपनी नियति मान ली थी लेकिन बहुत स्त्रियां ऐसी भी थी जिन्होंने उस समय इन दमघोंटू व्यवस्थाओं का विरोध किया उनमें से बहुत सारी मार दी गईं बाकी स्त्रियों ने अपनी सक्रियता से अपने जीवन और विरोध दोनों को जिंदा रखा और बाद में उनकी प्रसिद्धि बढ़ती चली गई ।
उन्होंने आगे कहा कि उन्हें आंडाल जैसा साहस और किसी भी स्त्री में देखने को नही मिला । आंडाल को अनाथ रूप में विष्णु दत्त अपने घर ले जाते हैं। आंडाल ने अपने जीवन में सारी परम्पराओं को धता बताते हुए उनका विरोध किया । यहाँ तक उनके पिता जो माला विष्णु को पहनाने के लिए बनाते थे वह आंडाल खुद पहन लेती थी जिसके बारे में उनके पिता को भी नही पता होता था। आंडाल ने असम्भव कल्पनाओं को हासिल किया जो उनके ऊपर लिखी गई कविताओं और गाथाओं में वर्णित है ।
उन्होंने कहा कि भक्ति आंदोलन तमिलनाडु से शुरू होकर कर्नाटक तक आता है । उस समय संवाद की परंपरा थी आज के समय में तो आप सवाल नहीं पूछ सकते हैं इसकी तुलना में वो समय संवाद, तर्क, विचार से भरा हुआ था। एक अन्य कवयित्री मुक्ताबाई के बारे में उन्होंने बताया कि मुक्ताबाई के पिता ने शादी शुदा होते हुए भी सन्यास ले लिया जिस कारण उन्हें अपमानित किया गया जिससे दुःखी होकर मुक्ताबाई के पिता ने आत्महत्या कर ली। उन्होंने इसके अलावा उस समय की और भी साहसिक महिला कवियों के जीवन का उल्लेख किया जिसमें उन्हें तरह -तरह के कष्ट उठाने पड़े लेकिन उन्होंने उन कष्टों का बड़ी हिम्मत से सामना किया और उस पर अपने विचारों की, अपने आंदोलन की श्रेष्ठता स्थापित की। उन्होंने आगे कहा कि भक्तिकाल ईश्वर के प्रति प्रेम का नही बल्कि ईश्वर के नाम पर मानवता के प्रति प्रेम का आख्यान है।
वक्तव्य के साथ ही सुभाष राय ने आये हुए लोगों के प्रश्नों पर अपनी बात भी रखी. कार्यक्रम का संचालन डॉ० स्वप्निल श्रीवास्तव ने किया। कार्यक्रम में हरीशचंद्र पांडे, नलिन रंजन सिंह, ,शालिनी सिंह, विशाल श्रीवास्तव, विवेक निराला, रमाशंकर सिंह, अनिता, वसुंधरा पांडे, आभा खरे, सीमा सिंह, संध्या नवोदिता, समीना खान, ज्ञान प्रकाश चौबे, शालू शुक्ला, अजय गौतम, सलमान खयाल, मुकेश यादव, नूर आलम, माधव महेश, कु०सबिता,अरुण कुमार श्रीवास्तव, अशोक कुमार, विवेक कुमार तिवारी, शिवांगी गोयल, अंशु सिंह, वसुंधरा पाण्डेय, विशाल श्रीवास्तव, अनुराग मिश्र,अनुराग तिवारी, अरविंद शर्मा, रंजीत कुमार, कंचन सिंह, पवन कुमार वर्मा, आर्यन मिश्रा, दीपक सिंह, अंशुमान यादव, दिनेश पांडे, संदीप, मानवेन्द्र यादव, अमरनाथ यादव, रचित राज,आशुतोष प्रसिद्ध, प्रतीक ओझा तथा अन्य गणमान्य उपस्थित रहे.