नई दिल्ली, 17 फरवरी (आईएएनएस)। महादेव को बेहद प्रिय जटामांसी का आयुर्वेद में भी खासा स्थान है। कई औषधीय गुणों से भरपूर जटामांसी हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है, जिनका उपयोग आयुर्वेद में कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है। जटामांसी का वैज्ञानिक नाम नार्डोस्टैचिस जटामांसी है, जिसमें अनगिनत औषधीय गुण हैं और इसके इस्तेमाल से कई रोग छूमंतर हो जाते हैं।
पंजाब स्थित बाबे के आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के बीएएमएस, एमडी डॉक्टर प्रमोद आनंद तिवारी ने जटामांसी के गुणों उसके महत्व और फायदे पर बात की। उन्होंने कहा, ” जटामांसी का आयुर्वेद में खास स्थान है। यह कई रोगों को दूर भगाने में सहायक तो होता ही है इसके साथ ही यह उन लोगों के लिए भी किसी वरदान से कम नहीं है, जो बालों के झड़ने, पतला होने या सफेद होने की समस्या से ग्रस्त हैं। जटामांसी का इस्तेमाल बालों के लिए वरदान से कम नहीं है। यह बालों को फिर से उगाने और उन्हें घना बनाने में भी फायदेमंद होता है।”
डॉक्टर ने बताया, “बालों के साथ ही यह तंत्रिका तंत्र के रोगों में भी विशेष लाभदायी होता है। मिर्गी, बेहोशी जैसे रोगों में यह विशेष रूप से लाभ देता है। यदि आप भूलने की बीमारी से परेशान हैं तो फिर जटामांसी का इस्तेमाल आपको करना चाहिए, इससे इस मर्ज में आराम मिलता है।”
जटामांसी के गुणों को बताते हुए डॉक्टर प्रमोद ने कहा, ” आज की लाइफस्टाइल काफी तनाव भरी हो गई है, परिणामस्वरुप अनिद्रा या नींद ना आने की समस्या आम सी बात बन गई है, जो कई बड़े रोगों का कारण है। ऐसे में जटामांसी का इस्तेमाल बेहद लाभदायी होता है। आपका पाचन कमजोर, धड़कन अनियंत्रित हो या रक्तचाप की शिकायत हो तो इसमें भी बेहतरी के लिए जटामांसी का इस्तेमाल होता है।”
पाचन के साथ ही श्वांस संबंधित समस्याओं के लिए भी आयुर्वेदाचार्य जटामांसी के इस्तेमाल की सलाह देते हैं। जटामांसी का तेल लगाने से ना केवल बाल बढ़ते हैं, काले और घने बनते हैं बल्कि यह त्वचा संबंधित दिक्कतों को दूर करने में भी लाभदायी होता है। ज्वर में जटामांसी का प्रयोग करने से शरीर का तापमान नियंत्रित होता है और मस्तिष्क भी शान्त रहता है।