मीना काकोदकर के लेखों में झलकती है ‘मां की ममता’, राष्ट्रीय स्तर पर बजाया कोंकणी भाषा का डंका

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नई दिल्ली, 28 सितंबर (आईएएनएस)। ‘मां की मौत के दो दिन गुजरे थे। उसकी याद में मुझे बार-बार रोना आ रहा था। पिताजी दिन-रात सिर पर हाथ रखे कोने में बैठे रहते। उन्हें देख कर तो मुझे मां की याद और भी सताती थी।‘ ये किस्सा है ‘ओरे चुरुंगन मेरे’ किताब का, जिसे लिखा था कोंकणी भाषा की जानी-मानी लेखिकाओं में से एक मीना काकोदकर ने। वह जिस ढंग से कहानी को बयां करती थीं, मानों ऐसा लगता था कि सब कुछ आंखों के सामने ही चल रहा है। वह शब्दों को भावनाएं देती थीं, जो दर्शकों के दिलों को छू जाता था।

कोंकणी लेखिका मीना काकोदकर ने अपनी अधिकतर कहानियां बच्चों के लिए लिखीं, जिसकी वजह से उनके काम को काफी सराहा गया है। उन्हें कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया, इनमें से एक साहित्य अकादमी पुरस्कार भी शामिल है।

दादी-नानी की कहानियां तो आपने कई बार सुनी होगी, जैसे वो हमें अपने शब्दों की जादुई दुनिया में कहीं दूर लेकर जाती थीं, ठीक वैसे ही मीना काकोदकर भी अपने कलम के जादू से एक अलग दुनिया बनाती थीं। उनकी अधिकांश कहानियां बच्चों की रुचि पर आधारित होती थीं।

‘मां के साथ उसके बच्चे का खास रिश्ता’, इसे उन्होंने अपनी लेखनी में पिरोया और उसे दुनिया के सामने रखा। उनके बारे में कहा जाता था कि उनकी लेखनी में ममता झलकती है। उनकी कहानियों में मां की ममता, बच्चे का भिलकता मन और पिता का छाया, जैसे जीवन के तमाम पहलुओं को एक कहानी का रूप दिया गया था।

मीना काकोदकर का जन्‍म 29 सितंबर 1944 को गोवा में पोलोलम नामक स्थान पर हुआ। उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में अपना अहम योगदान दिया। उन्होंने कोंकणी भाषा में ‘डोगर चन्वला’, ‘सपन फुलां’ (कहानी संग्रह), ‘सत्कान्तलों जादूगर’ (बाल नाटक) जैसी प्रमुख रचनाओं को लिखा।

इसके अलावा उन्होंने प्रदर्शन कला और संस्कृति को बढ़ावा देने में सक्रिय रूप से भूमिका निभाई। बता दें कि वह एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में गोवा एनिमल वेलफेयर ट्रस्ट की ट्रस्टी भी हैं।

साहित्य में योगदान के लिए साल 1991 में मीना काकोदकर को ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। इसके अलावा कहानी पुरस्कार (1993 और 2003), गोवा सरकार यशोदामिनी पुरस्कार (2002), गोवा राज्य पुरस्कार (2007), रंग सम्मान पुरस्कार (2008), गोवा राज्य पुरस्कार (2008 -09), पद्म बिनानी वात्सल्य पुरस्कार (2011) से भी नवाजा गया। मीना काकोदकर को साल 2011 में 20वें अखिल भारतीय कोंकणी साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष भी चुना गया।