सीताकांत महापात्र : आईएएस की नौकरी के साथ जारी रखी साहित्य की सेवा

0
8

नई दिल्ली, 16 सितंबर (आईएएनएस)। “तुम मुझे शब्द दो, मैं तुम्हें नीरवता दूंगा, दीक्षा गुरु बनकर, शांत बैठने का मंत्र सिखाऊंगा”। इस कविता को शब्दों में पिरोने का काम किया, उड़िया के मशहूर साहित्यकार सीताकांत महापात्र ने, जिनकी कलम में ऐसा जादू था कि वह गंभीर सामाजिक विषयों को भी सरल शब्दों में खूबसूरती के साथ बयां कर देते थे।

चाहे “आज फिर दीवाली” हो या “हाथ बढ़ाते ही स्वर्ग मिलेगा पता न था” या फिर “तुमको छूने पर” – इन कविताओं के माध्यम से उन्होंने समाज को छूने वाले मुद्दों को अपनी लेखनी में पिरोया। एक कुशल साहित्यकार होने के साथ ही उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में भी अपनी सेवाएं दीं।

कवि, निबंधकार और अनुवादक के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले सीताकांत महापात्र का जन्म 17 सितंबर 1937 को हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में अपनी पढ़ाई पूरी की। इसी दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय पत्रिका के संपादक के रूप में भी काम किया। यहीं पर उन्होंने अंग्रेजी और उड़िया में कविताएं लिखनी शुरू की। बाद में उन्होंने अपनी मातृभाषा में ही कविता लिखने का फैसला किया।

सीताकांत अपनी कविता ‘देखो, मुझे गलत न समझना’ में “धूप गई, अब तारे निकले। फिर भी मैं बैठा रहा उस सुनसान, अधडूबी अधटूटी नाव की मुंडेर पर…” पंक्तियों में उन्होंने उगते हुए सूरज और ढलती हुई शाम को बहुत खूबसूरती के साथ बयां किया है। एक और कविता “आज फिर दीवाली” में उन्होंने लिखा है – “आज फिर दीवाली और तुम नहीं, फैल रहा निसंग अंधेरा। तुम्हारी सांसों की तरह, कर रही प्रतीक्षा कौतुहली पवन।” इसमें वह विरह के भाव को अभिव्यक्त करते हैं।

सीताकांत महापात्र के करियर की बात करें तो उन्होंने 1961 से 1995 तक भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में सेवाएं दीं। वह ओडिशा (तब उड़ीसा) सरकार के गृह सचिव, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सचिव, और यूनेस्को के सांस्कृतिक विकास के विश्व दशक के अध्यक्ष रहे। इस दौरान वह अपने भावों को शब्दों में पिरोते रहे, जिसने उन्हें साहित्य के क्षेत्र में अलग पहचान दिलाई।

उनकी कविताओं का संग्रह कई भाषाओं में प्रकाशित हुआ। उन्होंने 15 से अधिक कविता संग्रह, पांच निबंध संग्रह समेत 30 से अधिक रचनाएं लिखीं। शब्दर आकाश (1971) (यानी शब्दों का आकाश), समुद्र (1977) और अनेक शर्त (1981) उनकी प्रमुख रचनाओं में हैं।

साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें 1993 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साल 2003 में उन्हें पद्म भूषण से नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें उड़ीसा साहित्य अकादमी पुरस्कार और सरला पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।