अंतर्राष्ट्रीय हकलाहट जागरूकता दिवस, हॉलीवुड की बड़ी स्टार मर्लिन मुनरो भी थी इसकी शिकार

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नई दिल्ली, 22 अक्टूबर (आईएएनएस)। रोमन सम्राट क्लॉडियस, ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल, हॉलीवुड आइकन मर्लिन मुनरो और जेम्स अर्ल जोन्स (जिनकी आवाज को दुनिया डार्थ वाडर की आवाज के रूप में पहचानती है) में एक बाद समान है- ये सभी हकलाते थे। लेकिन अपनी कमजोरी को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया और बड़ी खूबसूरती से इस पर जीत हासिल की। इंटरनेशनल स्टटरिंग अवेयरनेस डे यानि अंतर्राष्ट्रीय हकलाहट जागरूकता दिवस यही तो बताता है। हर साल 22 अक्टूबर को इसे सेलिब्रेट किया जाता है।

हकलाहट एक ऐसी समस्या है जो किसी भी पब्लिक फोरम पर आपको बोलने से रोकती है। हकलाने वाला शख्स कॉन्फिडेंट नहीं रहता और इसे नियंत्रित करने में कई साल गुजार देता है। यही कारण थे कि जागरूकता फैलाने के लिए इसे मनाया जाने लगा। आखिर कब, कैसे और क्यों इसे मनाने की जरूरत महसूस की गई?

अंतरराष्ट्रीय हकलाहट जागरूकता दिवस पहली बार 1998 में मनाया गया। दरअसल लोग हकलाहट की समस्या से जूझ रहे लोगों का मजाक उड़ाते थे। तो इसे कुछ संगठनों ने गंभीर मुद्दा मानते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने का फैसला लिया। अंतरराष्ट्रीय स्टटरिंग एसोसिएशन , इंटरनेशनल फलूएन्सी एसोसिएशन और यूरोपियन लीग ऑफ स्टटरिंग एसोसिएशन ने मिलकर एक अभियान के तौर पर शुरुआत की।

वैसे, हकलाना सहस्राब्दियों से रुचि का विषय रहा। कहा जाता है कि प्राचीन यूनानी राजनेता और डेमोस्थनीज भी हकलाते थे। डेमोस्थनीज, जो ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में रहते थे, हकलाए बिना बोल नहीं सकते थे और अक्सर उनके साथी जमकर मजाक भी उड़ाते थे। जिसके कारण उन्होंने अपनी स्थिति को नियंत्रण में लाने का दृढ़ निश्चय किया।

खासकर इसलिए क्योंकि वह एक बेहद बुद्धिमान व्यक्ति थे, जिनके पास एथेंस की राजनीतिक स्थिति के बारे में कहने के लिए बहुत कुछ था। उन्होंने जो रणनीति अपनाई, उनमें से एक थी मुंह में कंकड़ रखकर इतनी ऊंची आवाज में बोलने की प्रैक्टिस करना जिससे लहरों के ऊपर से भी उनकी आवाज सुनी जा सके। काफी मेहनत के बाद, वह सफल भी हुए।

प्राचीन और मध्यकाल में, हकलाने के लिए अक्सर हर्बल उपचार की सलाह दी जाती थी। जैसे घोंघे के खोल से पानी पीना, और सबसे अंधविश्वासी लोगों का मानना ​​था कि यह स्थिति शिशु को बहुत अधिक गुदगुदाने या उसे आईने में खुद को देखने देने से होती है।

18वीं और 19वीं शताब्दी में हकलाने वाले व्यक्ति की बोली को ठीक करने के लिए कई तरह की खतरनाक सर्जरी की जाती थी, जिसमें जीभ या होठों पर छोटे-छोटे चीरे लगाने से लेकर टॉन्सिल को हटाना शामिल था, लेकिन इनमें से कोई भी उतना सफल नहीं हुआ।

तो इन दिनों कैसे उपाय किए जाते हैं। आजकल, कई तरह की फ्लूएंसी शेपिंग थेरेपी दी जाती है जो हकलाने वाले व्यक्ति को अपने होठों, जबड़े और जीभ पर अधिक नियंत्रण रखने में मदद करती है। हकलाने वाले व्यक्ति के तनाव और चिंता के स्तर को कम करने से भी बोली में काफी सुधार देखा जाता है।

लेकिन सबसे अच्छा तरीका जो विशेषज्ञ मानते हैं वो ये कि हकलाने वाले शख्स के ‘अपने’ यानि परिवार और करीबी मित्र उस पर भरोसा करें तो काफी हद तक झिझक से छुटकारा मिल सकता है।