ऑपरेशन सिंदूर : पाकिस्तान में कुछ तो बड़ा हुआ है? तभी सूखा वहां के निजाम का गला

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नई दिल्ली, 13 मई (आईएएनएस)। देश के नाम संदेश में सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी ने जो कुछ कहा, उसके बाद दुनिया के तमाम बड़े मीडिया संस्थानों ने उनकी कही बातों को प्रमुखता से अखबार के पहले पन्ने पर जगह दी। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में जिन बातों का जिक्र किया, उसमें से दो प्रमुख बातें पाकिस्तान के पसीने छुड़ाने के लिए काफी थी। पहला यह कि भारत किसी भी तरह के परमाणु हमले की धमकी से डरने वाला नहीं है और दूसरा आतंक तथा आतंक को समर्थन देने वाली सरकार को अलग-अलग करके नहीं देखा जाएगा।

ऐसे में देश के नाम संबोधन के दौरान पीएम मोदी के हाव-भाव से साफ समझ में आ रहा था कि पाकिस्तान में इस दौरान कुछ तो बड़ा हुआ है, जिसने उसकी आवाम और सरकार दोनों को हिलाकर रख दिया।

दरअसल, इसको ऐसे समझा जा सकता है कि जब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर तीनों सेना के डीजीएमओ ने प्रेस को संबोधित किया तो उनका आत्मविश्वास बता रहा था कि पाकिस्तानी सेना को भारतीय सेना ने कितनी गहरी चोट दी है।

पीएम मोदी ने भी कहा था कि पाकिस्तान की तैयारी सीमा पर हमले की थी, लेकिन भारत ने पाकिस्तान के सीने पर हमला कर दिया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में आतंक के अड्डों पर भारत की मिसाइलों ने, भारत के ड्रोन ने हमला बोला तो आतंकी संगठनों की इमारतें ही नहीं, बल्कि उनका हौसला भी थर्रा गया। भारत की आक्रामक कार्रवाई के बाद पाकिस्तान बचने के रास्ते खोजने लगा। पाकिस्तान दुनियाभर में तनाव कम करने के लिए गुहार लगाने लगा और फिर मजबूर होकर 10 मई की दोपहर को पाकिस्तानी सेना के डीजीएमओ ने हमारे डीजीएमओ से संपर्क किया।

पीएम मोदी ने पाकिस्तान के लिए यह भी साफ संदेश दे दिया कि टेरर, ट्रेड और टॉक एक साथ नहीं चल सकते। पीएम ने यह भी कहा कि हम भारत और अपने नागरिकों को किसी भी खतरे से बचाने के लिए लगातार निर्णायक कदम उठाते रहेंगे। सीजफायर को लेकर भी उन्होंने कहा कि हमने अपनी जवाबी कार्रवाई को केवल स्थगित किया है। हम आने वाले दिनों में पाकिस्तान के हर कदम को कसौटी पर नापेंगे कि वह क्या रवैया अपनाता है।

पीएम मोदी ने इसके साथ ही राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि भारत पर आतंकी हमला हुआ तो मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। हम अपने तरीके से अपनी शर्तों पर जवाब देकर रहेंगे। हर उस जगह पर जाकर कठोर कार्रवाई करेंगे, जहां से आतंकी जड़ें निकलती है। इसके साथ ही पीएम मोदी ने कहा कि भारत कोई भी न्यूक्लियर ब्लैकमेल नहीं सहेगा। न्यूक्लियर ब्लैकमेल की आड़ में पनप रहे आतंकी ठिकानों पर भारत सटीक और निर्णायक प्रहार करेगा। इसके साथ ही हम आतंकी सरपरस्त सरकार और आतंकी आकाओं को अलग-अलग नहीं देखेंगे।

यानी साफ और स्पष्ट शब्दों में पीएम मोदी का संदेश दुनिया को पहुंच गया था और यही वजह रही कि पीएम मोदी की कही हर बात विदेशी मीडिया की सुर्खियां बन गई।

अब ऐसे में क्यों कहा जा रहा है कि पाकिस्तान में कुछ तो बड़ा हुआ था, जिसके कारण वहां के निजाम का गला सूखा। इसको एक बार समझने की कोशिश करते हैं। 10 मई को जब सीजफायर की घोषणा हुई तो इसके बाद भारत के अंदर आम जनता जो पाकिस्तान और पाकिस्तान में पल रहे आतंकियों को लेकर मन में गुस्सा पाले बैठी थी, उनको सरकार के इस फैसले पर भरोसा नहीं हो रहा था। जनता के साथ-साथ भारत के विपक्षी दलों की भी प्रतिक्रिया से साफ लग रहा था कि वह सरकार के फैसले से खुश नहीं हैं।

जले पर नमक का काम अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस पोस्ट ने कर दिया, जो सीजफायर की घोषणा के लिए भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री के बयान से पहले आ गया था। राजनीतिक दलों के नेता और देश की जनता सोचने लगी कि भारत और पाकिस्तान के बीच जारी संघर्ष की मध्यस्थता आखिर डोनाल्ड ट्रंप को क्यों करनी पड़ी, क्या हम इतने कमजोर हो गए हैं कि अब पाकिस्तान जैसे देश से उलझने पर सीजफायर के लिए हमें अमेरिका से संदेश लेना पड़ेगा।

हालांकि, तब भी विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने अपनी प्रेस वार्ता में एक भी बार अमेरिका की मध्यस्थता की बात नहीं की और साफ कह दिया कि पाकिस्तान के डीजीएमओ से भारत के डीजीएमओ की बातचीत हुई और भारत ने अपनी शर्तों पर सीजफायर करने की घोषणा की। लेकिन, ट्रंप अपनी पीठ थपथपाते नजर आए। इसके बाद फिर एक बार व्हाइट हाउस की तरफ से यह बताया गया कि पाकिस्तान और भारत के बीच सीजफायर पर अमेरिका ने दोनों देशों के साथ बातचीत की। जबकि, भारत सरकार की तरफ से ऐसी बात कभी नहीं कही गई। वहीं, जब 12 मई को पीएम मोदी के द्वारा देश के नाम संबोधन की घोषणा की गई तो उस संबोधन के ठीक पहले एक बार फिर ट्रंप ने एक ऐसा दावा किया, जो किसी के लिए पचा पाना मुश्किल था।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, “हम आपके साथ बहुत सारा व्यापार करने जा रहे हैं, चलो इसे रोकते हैं। अगर आप इसे रोकते हैं, तो हम व्यापार कर रहे हैं। अगर आप इसे नहीं रोकते हैं, तो हम कोई व्यापार नहीं करने जा रहे हैं। हम पाकिस्तान के साथ बहुत सारा व्यापार करने जा रहे हैं, हम भारत के साथ बहुत सारा व्यापार करने जा रहे हैं। हम अभी भारत के साथ बातचीत कर रहे हैं, हम जल्द ही पाकिस्तान के साथ बातचीत करने जा रहे हैं।”

उन्होंने अपनी पीठ खुद थपथपाते हुए कहा, “हमने (एक) परमाणु संघर्ष को रोका। मुझे लगता है कि यह एक बुरा परमाणु युद्ध हो सकता था। लाखों लोग मारे जा सकते थे। इसी कारण मुझे इस पर बहुत गर्व है।”

उन्होंने कहा, “मेरे प्रशासन ने भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्ण और तत्काल युद्ध विराम कराने में मदद की, मुझे लगता है कि यह स्थायी युद्धविराम था, जिससे दो राष्ट्रों के बीच एक खतरनाक संघर्ष समाप्त हुआ, जिनके पास बहुत सारे परमाणु हथियार थे और वे एक-दूसरे पर बहुत अधिक आक्रमण कर रहे थे और ऐसा लग रहा था कि यह रुकने वाला नहीं था। मुझे आपको यह बताते हुए बहुत गर्व हो रहा है कि भारत और पाकिस्तान का नेतृत्व अडिग, शक्तिशाली था, लेकिन स्थिति की गंभीरता को पूरी तरह से जानने और समझने की शक्ति, बुद्धि और धैर्य भी था।”

ट्रंप ने यह भी दावा किया कि पाकिस्तान और भारत के बीच सीजफायर की सहमति अमेरिका की मध्यस्थता से पूरी हुई।

दरअसल, इसके पीछे की एक वजह है। जिस दिन भारत-पाकिस्तान ने सीजफायर पर सहमति जताई, उसी रात पाकिस्तान की आवाम को संबोधित करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, कतर, दुबई, तुर्की के प्रमुखों का आभार जताया था कि उनके प्रयासों से यह सीजफायर संभव हो पाया। तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की जुबान कांप रही थी और उनके चेहरे पर खौफ साफ नजर आ रहा था। मतलब साफ था कि भारत की जवाबी कार्रवाई से वह खौफज़दा थे।

इसी ने अमेरिका के राष्ट्रपति को अपनी पीठ थपथपाने का मौका दे दिया। वर्तमान में जिस अमेरिका की बात इजरायल, रूस और यूक्रेन जैसे युद्ध ग्रस्त देश नहीं मान रहे हैं, वह भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की बात करके दुनिया में अपनी मुखियागिरी वाली धूमिल छवि को एक बार फिर से उभारने की कोशिश में लग गया। जबकि, सीजफायर के दिन भारत के विदेश सचिव से लेकर पीएम मोदी के देश के नाम संबोधन तक कभी भी भारत की तरफ से अमेरिका की मध्यस्थता की बात नहीं स्वीकारी गई और उलटे पीएम ने दुनिया को यह संदेश जरूर दे दिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच अब केवल और केवल आतंकवाद के खात्मे और पीओके पर बात होगी यानी बातचीत की टेबल पर भारत किसी की भी मध्यस्थता बर्दाश्त नहीं करेगा।

इधर, भारतीय सेना के डीजीएमओ की प्रेस वार्ता के दौरान भारतीय वायुसेना के वायु संचालन महानिदेशक एयर मार्शल एके भारती ने रामचरित मानस की चौपाई- ‘बिनय न माने जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति, बोले राम सकोप तब भय बिनु होई न प्रीति’, पढ़ी तो संदेश साफ चला गया कि पाकिस्तान आखिर क्यों सीजफायर के लिए गिड़गिड़ाने लगा था।

एके भारती से जब पूछा गया कि क्या किराना हिल्स पर भारतीय सेना ने हमला बोला था, जहां कथित तौर पर पाकिस्तान के परमाणु हथियार रखे हैं तो इसका जवाब देते समय उनके चेहरे की मुस्कान से साफ पता चल रहा था कि बस इसी वजह से पाकिस्तान ने दुनिया के कई देशों के सामने जाकर अपने आपको बचाने की गुहार लगाई।

एके भारती ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, “हमें यह बताने के लिए शुक्रिया कि किराना हिल्स में कुछ परमाणु इंस्टॉलेशंस हैं। हमें इसके बारे में नहीं पता था।” फिर इसके बाद उन्होंने संजीदगी से बताया, “हमने किराना हिल्स पर हमला नहीं किया है, जो कुछ भी वहां है। मैंने कल अपनी ब्रीफिंग में इस बारे में जानकारी नहीं दी थी।”

जबकि, भारतीय सेना के हमले में रावलपिंडी के पास स्थित नूर खान मिलिट्री बेस जहां पाकिस्तानी आर्मी का हेडक्वार्टर है और इसके पास ही पाकिस्तान ने अपने परमाणु हथियारों को सुरक्षित रखा है। भारतीय सेना की तरफ से नूर खान एयरबेस की तबाही और सटीक निशाने ने पाकिस्तान की सरकार और सेना को अंदर तक हिला दिया। पाकिस्तान को लग गया कि वह भारत में तबाही मचा पाए या नहीं, लेकिन उसकी तबाही जरूर हो जाएगी। फिर क्या था पाकिस्तान के हुक्मरानों ने दुनिया के कई देशों के हुक्मरानों के सामने फोन करके गिड़गिड़ाना शुरू किया। हालांकि इससे भी बात नहीं बनी तो अंततः पाकिस्तानी सेना के डीजीएमओ ने भारतीय सेना के डीजीएमओ को फोन किया और अपनी सेना की गुस्ताखी के लिए सशर्त माफी मांगी और सीजफायर के लिए हाथ पैर जोड़े।

पाकिस्तान की गिड़गिड़ाहट का असर अमेरिका को आपदा में अवसर जैसा लगा और उसने अपनी पीठ थपथपाने का पूरा प्रबंध कर लिया। अमेरिका के राष्ट्रपति का आनन-फानन में पोस्ट भी आ गया और भारत की तरफ से इस पर कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दी गई। मतलब भारत सरकार की तरफ से साफ इशारा था कि वह अमेरिका की इस बात को सीरियस लेते ही नहीं हैं।

अमेरिका के लिए यह आपदा में अवसर क्यों था यह समझना होगा। अमेरिका की भारत से ज्यादा पाक के सैन्य अड्डों, एयरबेस व परमाणु हथियारों में दिलचस्पी रही है। वह पहले कई बार पाक के सैन्य अड्डों व एयरबेस को इस्तेमाल करने की कोशिश करता रहा है। अफगानिस्तान, चीन जैसे देशों के दबाव के चलते पाक इससे बचता रहा है, जिसकी गूंज पाकिस्तान की संसद में कई बार सुनाई दे चुकी है। लेकिन इस बार हालात अलग दिख रहे हैं। भारत के हाथों पाक को अच्छी मार पड़ी है, जिसके बाद पाक को उसके सामने गिड़गिड़ाना पड़ा। वहीं, अमेरिका को भी पाक के कुछ सैन्य अड्डों व एयरबेस को अपने कब्जे में करने का सही मौका मिलता नजर आने लगा है।

अमेरिका पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर लंबे समय से कंट्रोल करने की कोशिश करता रहा है। ताकि वह इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर पाए। यानी अमेरिका पाक के इन परमाणु हथियारों से खुद भी खौफ में रहा है और वह इसको बैकडोर कंट्रोल करने की सोच हमेशा से रखता है। यही वजह रही कि पाकिस्तान ने जैसे ही सीजफायर करवाने के लिए अमेरिका को गिड़गिड़ाते हुए फोन किया, उसको समझ में आ गया कि यह सही मौका है जब पाकिस्तान को इन शर्तों पर समर्थन दिया जा सकता है और साथ में दुनिया के सामने एक बार फिर से अपनी चौधराई वाली धूमिल होती छवि को चमकाने का मौका मिल सकता है।

लेकिन, भारत ने जिस तरीके से हर बार अमेरिकी राष्ट्रपति के दावे पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, उससे डोनाल्ड ट्रंप का मजाक दुनिया के सामने बना और पाकिस्तान की आतंक परस्ती की पोल और भारतीय सेना के पराक्रम की वजह से उनके निजामों के गले सूखने की पुष्टि भी हो गई।