कल्याण सिंह, जिन्होंने कारसेवकों पर गोली चलाने से कर दिया था मना

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नई दिल्ली, 21 अगस्त (आईएएनएस)। साल था 1992 और तारीख थी 6 दिसंबर। कुछ कारसेवक अयोध्या में स्थित विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ़े और उन्होंने देखते ही देखते उसे जमींदोज कर दिया। उस समय उत्तर प्रदेश में सरकार कल्याण सिंह की थी। बताया जाता है कि जिस दौरान अयोध्या में ये सब घटित हो रहा था। उस दौरान मुख्यमंत्री लखनऊ स्थित अपने सरकारी आवास पर बैठे हुए धूप सेंक रहे थे।

हालांकि, तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इस घटना की जिम्मेदारी ली और उसी रोज अपने पद से इस्तीफा दे दिया। अयोध्या की घटना से पूरा देश हिल गया। लखनऊ से दिल्ली तक फोन की घंटियां बजने लगी। हर कोई जानना चाहता था कि अयोध्या में अचानक ये सब कैसे हो गया।

लेखक हेमंत शर्मा अपनी किताब “अयोध्या के चश्मदीद” में अयोध्या के घटनाक्रम को विस्तार से बताते हैं। वह अपनी किताब में कल्याण सिंह के हवाले से बताते हैं कि उन्होंने ही अधिकारियों को निर्देश दिया था “किसी भी कीमत पर कारसेवकों पर गोली नहीं चलाई जाए”।

“अयोध्या के चश्मदीद” में बताया गया है कि कल्याण सिंह ने 6 दिसंबर 1992 को हुई घटना की जिम्मेदारी ली। कल्याण सिंह कहते हैं, “मैं इसकी जिम्मेदारी खुद लेता हूं। विवादित ढांचे पर मौजूद कारसेवकों पर गोली नहीं चलाई गई तो इसकी जिम्मेदारी किसी अधिकारी की नहीं है। मैंने इस मामले में लिखित आदेश दिया था कि किसी पर भी गोली नहीं चलाई जाए।

लेखक हेमंत शर्मा की किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ के मुताबिक, 6 दिसंबर 1992 को सुबह से ही कारसेवा स्थल के पास विहिप और भाजपा नेता भाषण दे रहे थे। 6 दिसंबर 1992 की सुबह यूपी के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने दो बार फैजाबाद कमिश्नर को फोन किया था। उन्होंने पूछा था कि वहां सब ठीक है? किसी तरह की गड़बड़ी की आशंका तो नहीं है? जब विवादित ढांचा गिराए जाने की खबर कल्याण सिंह को मिली तो उन्होंने विनय कटियार के घर फोन मिला और उन्होंने आडवाणी से बात करते हुए इस्तीफा देने की बात कही। लेकिन, आडवाणी ने उन्हें इस्तीफा देने से मना कर दिया था।

अयोध्या की घटना के बाद उनकी छवि एक हिंदुत्ववादी नेता के रूप में उभरी। कल्याण सिंह को शिक्षा के क्षेत्र में किए गए काम के लिए भी याद किया जाता है। कल्याण सिंह की सरकार नकल अध्यादेश लाई थी। इस कानून का उद्देश्य प्रदेश के स्कूल और विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में सामूहिक नकल की प्रथा को रोकना था। यह गैर-जमानती था और इसके तहत पुलिस को जांच करने के लिए परीक्षा परिसर में जाने की इजाजत भी थी। हालांकि, 1993 में नकल अध्यादेश को रद्द कर दिया गया।

कल्याण सिंह 1997 में यूपी के दोबारा मुख्यमंत्री बने। लेकिन, वह महज दो साल ही इस पद पर रहे। वह राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल भी रहे। कल्याण सिंह को प्यार से लोग ‘बाबूजी’ बुलाते थे।

कल्याण सिंह का भाजपा से भी मोहभंग हुआ था। आपसी मतभेदों के कारण उन्होंने भाजपा छोड़ दी और अपनी खुद की पार्टी बना ली थी। हालांकि, जनवरी 2004 में वह भाजपा में वापस आ गए थे। लेकिन, भाजपा में उपेक्षा और अपमान का हवाला देते हुए 2009 को पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।

सितंबर 2019 में उन पर विवादित ढांचे को ध्वस्त करने की आपराधिक साजिश के लिए मुकदमा चलाया गया। उन्हें 2020 में केंद्रीय जांच ब्यूरो की एक विशेष अदालत ने बरी कर दिया था। 21 अगस्त 2021 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में उनका निधन हो गया। इसके एक साल बाद, 2022 में उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।