गठबंधन राजनीति के प्रबल पैरोकार थे सीताराम येचुरी, जानें कैसा रहा उनका सियासी सफर

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नई दिल्ली, 12 सितंबर (आईएएनएस)। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी का गुरुवार को 72 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। निमोनिया के इलाज के लिए 19 अगस्त को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उन्‍हें भर्ती कराया गया था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली।

12 अगस्त, 1952 को चेन्नई में एक तेलुगु भाषी परिवार में जन्मे सीताराम येचुरी जेएनयू में शिक्षा प्राप्त करने के दौरान छात्र राजनीति से जुड़े। उन्होंने मार्क्सवादी सिद्धांतों को अपनाया और सीपीआई (एम) की छात्र शाखा स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के सदस्य बने। उनके नाम तीन बार जेएनयू छात्रसंघ का अध्यक्ष बनने का रिकॉर्ड दर्ज है।

आपातकाल के दौरान अपनी गिरफ्तारी देने वाले येचुरी बाद में एसएफआई के अखिल भारतीय अध्यक्ष बने। उन्होंने अपने सहयोगी प्रकाश करात के साथ मिलकर जेएनयू को अभेद्य वामपंथी गढ़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे 32 साल की उम्र में सीपीआई (एम) की केंद्रीय समिति के सदस्य और 40 साल की उम्र में पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य बने।

भारतीय राजनीति में सबसे सम्मानित शख्सियत में शुमार येचुरी औपचारिक रूप से 1975 में सीपीआई(एम) में शामिल हुए और जल्दी ही पार्टी में तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते गए। पार्टी के मुखर प्रवक्ता के तौर पर उन्होंने ख्याति अर्जित की। उन्होंने मजदूरों के अधिकारों, भूमि सुधारों और धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर पुरजोर तरीके से पब्लिक फोरम पर पार्टी का पक्ष रखा। 1984 में वे सीपीआई (एम) की केंद्रीय समिति के लिए चुने गए और स्थायी आमंत्रित सदस्य बन गए। उन्होंने 2015 में सीपीआई(एम) के महासचिव के रूप में प्रकाश करात का जगह लिया और 2018 और 2022 में दो बार इस पद के लिए फिर से चुने गए।

तीन दशक से अधिक समय तक सीपीएम की शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था पोलित ब्यूरो के सदस्य रहे येचुरी 2005 से 2017 तक पश्चिम बंगाल से दो बार राज्यसभा के सांसद रहे। बतौर राज्यसभा सदस्य उन्होंने संसद में चर्चाओं और लोकतांत्रिक परंपराओं को समृद्ध बनाने का काम किया। इसकी वजह से उन्होंने राजनीतिक विरोधियों का भी सम्मान अर्जित किया। गठबंधन की सरकार के दौर में समावेशी विचारों को अपनाते हुए मार्क्सवाद के सिद्धांतों के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता को बरकरार रखा।

कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत के शागिर्दी में सियासत का ककहरा सीखने वाले सीताराम येचुरी गठबंधन युग की सरकारों में अहम भूमिका निभाई थी। वीपी सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार के दौरान और फिर 1996-97 की संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान सीपीआई (एम) ने बाहर से समर्थन दिया था, इसका अहम किरदार येचुरी को माना जाता है। गठबंधन राजनीति के प्रबल समर्थक येचुरी ने अन्य वामपंथी और धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ गठबंधन सरकार को आकार और बौद्धिक स्तर पर विचार देने का काम किया।

दिल्ली लुटियंस के पॉलिटिकल स्पेक्ट्रम में अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराने वाले येचुरी के सभी दलों में मित्र थे। येचुरी का राजनीतिक कौशल तब सुर्खियां बनी, जब वामपंथी दलों ने पहली यूपीए सरकार का समर्थन किया और नीति-निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाई। अपने सियासी सफर में येचुरी अपनी विनम्रता, ईमानदारी और सादगी भरे जीवन से भारत के सियासी फलक पर अपनी एक अलग छवि बनाई।