पूर्व सैनिकों के लिए गेम-चेंजर साबित हुआ ओआरओपी : रक्षा मंत्रालय

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नई दिल्ली, 7 नवंबर (आईएएनएस)। भारतीय सैन्य कर्मियों के लिए लागू की गई ‘वन रैंक, वन पेंशन’ (ओआरओपी) योजना ने 10 साल पूरे कर लिए हैं। रक्षा मंत्रालय का मानना है कि योजना लाखों पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों के लिए गेम-चेंजर साबित हुई है। ओआरओपी से यह सुनिश्चित हुआ है कि सेवानिवृत्ति के बाद के सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों के साथ आजीवन सम्मानजनक व्यवहार किया जाएगा।

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ‘वन रैंक, वन पेंशन’ एक सरल, लेकिन गहन विचार है। एक ही रैंक और समान सेवा अवधि के साथ सेवानिवृत्त होने वाले सैन्य कर्मियों को समान पेंशन मिलनी चाहिए, भले ही उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख कुछ भी हो। यह सिद्धांत मुद्रास्फीति, वेतनमान में बदलाव और समय के साथ सेवा शर्तों की बदलती प्रकृति के कारण पूर्व सैनिकों को मिलने वाले पेंशन लाभों में असमानता को दूर करता है।

पेंशन लाभों में लंबे समय से चली आ रही असमानताओं को दूर करने के लिए एक ऐतिहासिक कदम में भारत ने ‘वन रैंक वन पेंशन’ (ओआरओपी) योजना शुरू की थी।

रक्षा मंत्रालय का कहना है कि यह एक ऐसा निर्णय था, जिसने सैन्य कर्मियों का जीवन बदल दिया। वर्षों से, सेना के दिग्गजों ने न केवल युद्ध के मैदान पर, बल्कि सेवा के बाद के जीवन में भी समान मान्यता के लिए संघर्ष किया था – खासकर जब पेंशन लाभ की बात आती है। ओआरओपी की शुरुआत के साथ, सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक साहसिक कदम उठाया कि जिन सैनिकों ने अटूट समर्पण के साथ देश की सेवा की है, उनके साथ उचित व्यवहार किया जाएगा। ओआरओपी ने 2024 में 10 साल पूरे कर लिए हैं, इसलिए यह प्रतिबिंबित करना आवश्यक है कि इस योजना ने सशस्त्र बल समुदाय को कितना बड़ा लाभ पहुंचाया है।

इस पहल ने न केवल वर्तमान और पूर्व सेवानिवृत्त लोगों के बीच पेंशन अंतर को पाट दिया है, बल्कि सैन्य दिग्गजों की भलाई के लिए देश के समर्पण को भी मजबूत किया है। पेंशन संबंधी लाभों में समता और निष्पक्षता लाकर, ओआरओपी ने भारत सरकार और उसके सैन्य कर्मियों के बीच संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

रक्षा मंत्रालय का कहना है कि इस पहल ने उन लोगों के बलिदान और सेवा का सम्मान करने की एक महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता को चिह्नित किया, जिन्होंने देश की रक्षा की थी। उन्हें वह सम्मान और वित्तीय सुरक्षा देने का वादा किया था, जिसके वे हकदार थे।