प्रयागराज, 22 दिसंबर (आईएएनएस)। आस्था की नगरी प्रयागराज में लगने वाले 2025 महाकुंभ की तैयारियां अपने अंतिम चरण में चल रही हैं। वहीं, मेला क्षेत्र में शिविर लगाने से पहले सभी 13 अखाड़ों की तरफ से धर्म ध्वजा की स्थापना की जा रही है। इसी क्रम में रविवार को महानिर्वाणी अखाड़े की धर्म ध्वजा स्थापित की गई। इस अवसर पर महानिर्वाणी अखाड़ा के महंत यमुनापुरी महाराज ने आईएएनएस से खास बातचीत की।
यमुनापुरी महाराज ने बताया, “कुंभ मेला छावनी के प्रवेश से पहले धर्म ध्वजा की स्थापना होती है। इसमें सबसे पहले भूमि पूजन होता है, फिर ध्वज का पूजन किया जाता है और पंच देवों का पूजन किया जाता है। इसके बाद हवन होता है और पूरी प्रक्रिया होती है जिसमें कम से कम तीन-चार घंटे का समय लगता है। सवेरे से ही हम लोगों ने अपने शुभ मुहूर्त पर यह प्रक्रिया शुरू कर दी थी। आज के बाद यहां अग्नि प्रज्वलित हो जाएगी और पक्का भोजन, प्रसाद आदि सब शुरू हो जाएगा। देवताओं के अलावा, हमारे भगवान कपिल महामुनि जी की चरण पादुकाएं भी आ गई हैं।”
उन्होंने बताया कि यह प्रक्रिया मूल रूप से वेदों का प्रतीक है। धर्म को संभालने के लिए जब तक वेद ज्ञानी धरती पर प्रस्तुत हैं, तब तक सनातन धर्म की ध्वजा सदा फहराते रहें। यह धर्म, अर्थ और मोक्ष का भी प्रतीक होते हैं। बावन हाथ का दंड शक्ति का प्रतीक है जो बावन शक्तिपीठों और बावन मणियों का भी प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे ही मोर पंख का अपना आध्यात्मिक महत्व है।
धर्म ध्वजा के अतिरिक्त एक पर्व ध्वजा भी होती है। इस बारे में जानकारी देते हुए यमुनापुरी महाराज ने बताया कि हमारे यहां आज धर्म ध्वजा हो गई है। यहां पर्व ध्वजा भी मनाई जाती है। इसके पीछे का इतिहास यह है कि पर्व को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए भी युद्ध किया गया था और उस युद्ध में मकर संक्रांति को ही नागा संन्यासियों ने तत्कालीन शासकों के दमन को रोकने की कोशिश की थी। अंग्रेज़ों और मुस्लिमों की तरफ से उस समय पर साधुओं द्वारा प्रतिकार करने के बाद पुनः पर्व की स्थापना की गई। इसी की याद में यह मनाई जाती है।
उन्होंने आगे बताया कि हमारा यह पर्व अक्षुण्ण है। इसे खंडित नहीं किया जा सकता है। चाहे मुगलों का शासन हो, चाहे कोई भी शासन हो, कुंभ के मेले हमेशा चलते रहे हैं और धर्म ध्वजा हमेशा फहराई जाती रही। लाखों प्रतिरोधों के बावजूद भी वह किया गया। पर्व की शुरुआत में मकर संक्रांति पर प्रथम स्नान होता है। प्रथम स्रान पर भी पर्व की स्मृति में एक पर्व ध्वजा फहराई जाती है। ऐसे में हमारे यहां दो ध्वजाएं होती हैं- एक धर्म ध्वजा एक पर्व ध्वजा जो कि ब्रह्म मुहूर्त में फहराकर हम त्रिवेणी के संगम में अमृत स्नान के लिए निकल पड़ते हैं।
महंत यमुनापुरी महाराज ने महानिर्वाणी अखाड़ा की परंपरा के बारे में बताया कि यह अखाड़ा आदि गुरु शंकराचार्य के काफी वर्षों के बाद बना हैं। मठों से आए हुए साधुओं के द्वारा ही धर्म की रक्षा के लिए इन अखाड़ों की स्थापना हुई हैं। मंदिरों को बचाने के लिए, माता-बहनों पर जुल्मों को रोकने के लिए, धर्म की जो हानि के खिलाफ खड़े होने के लिए यहां के धर्म योद्धाओं के नाम से नागा संन्यासी सदा ही जाने जाते रहे हैं। अखाड़े का इतिहास बहुत गौरवपूर्ण हैं। यहां सनातन धर्म की रक्षा के लिए संन्यासियों ने 1664 में औरंगजेब की सेना को भी पछाड़ा था। हालांकि इतिहास ने अखाड़ों के साथ बहुत न्याय नहीं किया है और नागा संन्यासियों के बारे में भी बहुत कम लिखा गया है।
कुंभ के प्रयागराज में होने के महत्व पर उन्होंने कहा, हर कुंभ का अपना महत्व है किसी कुंभ की किसी से तुलना नहीं करनी चाहिए। हर कुंभ अपने आप में परिपूर्ण है। प्रयागराज में मां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। सरस्वती अदृश्य भले ही हैं लेकिन यहां उनकी उपस्थिति है। यहां स्नान का बहुत महत्व है। जो कोई भी यहां आध्यात्मिक भावना से ओतप्रोत होकर भाव श्रद्धा के साथ आएगा और डुबकी लगाएगा, उसको जो शास्त्रों में लिखा हुआ हैं, उन फलों की प्राप्ति होगी। लेकिन कुंभ की दिव्यता को अनुभव करने के लिए आपको दिव्य भाव में ही आना पड़ेगा। उस दिव्यता को देखने के लिए आपको अपने अंदर अपने मस्तिष्क में दिव्यता का भाव जागृत करना होगा। उसी तरीके से यहां साधु-संत, महात्मा और परमात्मा की कृपा आपका मार्गदर्शन अवश्य ही करेगी।
यमुनापुरी महाराज ने महाकुंभ के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे योगदान की सराहना की।