वक्फ जैसा मनमाना सुझाव चर्चों के मामले में न्यायाधीश द्वारा नहीं दिया गया : आलोक कुमार

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नई दिल्ली, 19 नवंबर (आईएएनएस)। मद्रास हाई कोर्ट ने अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में देश के चर्चों पर एक टिप्पणी में चर्च की संपत्तियों को वक्फ बोर्ड के समान एक वैधानिक निकाय द्वारा शासित किए जाने की बात कही थी। मद्रास हाईकोर्ट की इस टिप्पणी पर काउंसिल ऑफ चर्च इन इंडिया (एनसीसीआई) और कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) ने चिंता व्यक्त की है। इस पर विश्व हिंदू परिषद के नेता आलोक कुमार ने मद्रास हाई कोर्ट की इस टिप्पणी को वक्फ बोर्ड से अलग बताया।

उन्होंने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, “मैंने वह टिप्पणी देखी है, जिसमें न्यायाधीश ने इस बात की चिंता व्यक्त की है कि कई ईसाई संस्थानों से संबंधित मुद्दे लगातार अदालतों में आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ स्थानों पर तो यह एक नियमित प्रक्रिया बन गई है कि हर चुनाव के बाद, चाहे वह स्कूल की कमेटी का हो या अस्पताल की कमेटी का, अदालत में मामला दायर कर दिया जाता है। इसके अलावा, उन्होंने यह भी बताया कि इन मामलों का खर्च भी ईसाई संस्थानों के फंड से ही किया जाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “न्यायाधीश ने यह सुझाव दिया कि एक ऐसी नियामक संस्था (रेगुलेटरी बॉडी) बनाई जाए, जो इन सभी मुद्दों को देखे, संस्थानों के आपसी विवादों का समाधान करे, और अदालतों में इन मामलों की आवक कम हो। यह विषय भविष्य में और गहरे विचार-विमर्श का हिस्सा बनेगा। मैंने देखा है कि दो ईसाई संगठनों ने इस सुझाव का विरोध भी किया है। मुझे लगता है कि इस पर सभी पक्षों से परामर्श करने के बाद एक उचित और प्रभावी तंत्र सामने आएगा। हालांकि, इसे मौजूदा समय के बोर्ड से तुलना करना उचित नहीं होगा, क्योंकि वक्फ बोर्ड को तो यह अधिकार है कि वह किसी जमीन पर अपना दावा कर सकता है, बिना मालिक को नोटिस दिए, और एक साल बाद वह भूमि वक्फ की संपत्ति बन जाती है। ऐसा कोई मनमाना अधिकार न्यायाधीश द्वारा ईसाई संस्थानों के लिए नहीं सुझाया है। उन्होंने केवल एक नियामक संस्था बनाने का सुझाव दिया है, और इस पर विचार किया जाना चाहिए।”

बता दें कि इस मामले में अदालत ने कहा था, “हिंदुओं और मुसलमानों के धर्म की बंदोबस्ती वैधानिक नियमों के अधीन है। इन संस्थानों के मामलों पर एकमात्र निगरानी सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 92 के तहत मुकदमे के माध्यम से होती है। संस्थानों को अधिक जवाबदेह बनाने के लिए मामलों को विनियमित करने के लिए एक वैधानिक बोर्ड होना चाहिए।”

इसके साथ ही अदालत ने गृह मंत्रालय और तमिलनाडु सरकार को भी इस मामले में पक्षकार बनाया है।