सपा के बार-बार टिकट बदलने से कन्फ्यूजन में कार्यकर्ता

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लखनऊ, 4 अप्रैल (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की तरफ से बार-बार टिकट बदलने से कार्यकर्ताओं में कन्फ्यूजन हो रहा है। आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर यह हो चुका है। इस पर सत्ता पक्ष चुटकी भी ले रहा है।

राजनीतिक जानकार कहते हैं कि अखिलेश करीब छह लोकसभा सीटों पर टिकटों में बदलाव कर चुके हैं। चर्चा है कि वह अभी कुछ और सीटों पर बदलाव का विचार कर रहे हैं। मेरठ, मुरादाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बिजनौर, बदायूं, मिश्रिख में टिकट बदले गए। ताजा चर्चा के अनुसार कई सीटों पर असमंजस की स्थित बनी हुई है।

ताजा घटनाक्रम में मेरठ वाला मामला भी मुरादाबाद की तरह बनता जा रहा है। वहां से पहले उम्मीदवार का टिकट काट कर सरधना विधायक अतुल प्रधान को उम्मीदवार बनाया गया। लेकिन रात में सूचना आई कि उनका भी टिकट कट सकता है। उनकी जगह किसी और को उम्मीदवार बनाया जा सकता है। हालांकि अतुल प्रधान ने नामांकन कर दिया है।

बागपत में भी अमरपाल शर्मा को प्रत्याशी बनाने की चर्चा तेज है। बताया जा रहा है कि यहां दो जाट उम्मीदवार के कारण ब्राम्हण को उतारा जा रहा है। इस सीट पर इनकी संख्या ठीक ठाक है। हालांकि अभी तक पार्टी की तरफ से इन मामलों में कोई अधिकृत बयान नहीं आया है।

इसके पहले रामपुर और मुरादाबाद में ऊहापोह देखने को मिल चुका है। मुरादाबाद में डॉक्टर एसटी हसन ने अपना नामांकन कर दिया था, लेकिन बाद में पार्टी ने पूर्व विधायक रुचि वीरा को अपना अधिकृत उम्मीदवार बनाया।

रामपुर में भी आखिरी वक्त मोहिबुल्लाह नदवी को टिकट दिया गया, अब वही प्रत्याशी हैं।

ऐसे ही बदायूं से धर्मेंद्र यादव का टिकट काट कर शिवपाल को दिया गया। हालांकि बाद में आजमगढ़ से धर्मेंद्र को उतारा गया। मिश्रिख से मनोज राजवंशी की जगह संगीता राजवंशी को टिकट मिला है।

बिजनौर में पहले यशवीर को टिकट दिया, इसके बाद दीपक सैनी को टिकट दिया गया। गौतमबुद्ध नगर में भी ऐसा ही हो चुका है।

सपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम छपने की शर्त पर कहा कि सपा ने लोकसभा चुनाव में सबसे पहले अपने उम्मीदवार घोषित किए थे। लेकिन चुनाव चढ़ते ही पार्टी में टिकट कटने की बाढ़ आ गई। इससे सबसे ज्यादा कार्यकर्ता कंफ्यूज रहता है। मुरादाबाद में क्या हुआ। 2019 में जीते हुए उम्मीदवार एसटी हसन का टिकट पर्चा भरने के बाद काट दिया गया। इससे कार्यकर्ता को परेशानी भी उठानी पड़ती है। वह प्रचार के लिए निकला होता है। पता चलता कि अब दूसरे उम्मीदवार हो गए हैं। जिसका वो झंडा ढो रहे थे वह अब उस इलाके का उम्मीदवार नहीं है। यह नीति ठीक नहीं है। पहले आप सिंबल देकर तैयारी करने को कहते हैं। जब उसके पैसे प्रचार सामाग्री आदि मे खर्च हो जाते हैं, तब पता चलता है कि उसका टिकट कट गया। यह नीति ठीक नहीं है। इससे कार्यकर्ता का मनोबल टूटेगा।

इस पर भाजपा के सहयोगी और राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी ने चुटकी ली और सोशल मीडिया पर लिखा कि विपक्ष में किस्मत वालों को ही कुछ घंटों के लिए टिकट मिलता है। जिनका टिकट नहीं कटा, उनका नसीब।

भाजपा प्रवक्ता समीर सिंह कहते हैं कि सपा का जनाधार खत्म हो चुका है। अखिलेश यादव कन्फ्यूजन में हैं। टिकट बार बार बदलने से कार्यकर्ताओं में कन्फ्यूजन है। 2017 से लगातार चुनाव हार रहे हैं, इस कारण वह हताश हैं। वो उम्मीदवार तय नहीं कर पा रहे हैं। सपा को भी अहसास है कि मोदी जी एक बार भारी बहुमत से जीत रहे हैं।