सरकारी शिष्टमंडल के चयन में सरकार ने तोड़ी संसदीय परंपराएं : पृथ्वीराज चव्हाण

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मुंबई, 19 मई (आईएएनएस)। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने सरकार की ओर से भेजे जा रहे सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को लेकर तीखा हमला बोला है। उन्होंने इसे संसदीय परंपराओं और शिष्टाचार का अपमान करार देते हुए कहा कि सरकार ने पहले विपक्षी दलों से नाम मांगे और फिर उनकी सिफारिशों की अनदेखी कर मनमाना रवैया अपनाया।

चव्हाण ने कहा, “देखिए इस डेलिगेशन का उद्देश्य क्या था? उद्देश्य यह था कि देश के सभी राजनीतिक दल इस मुद्दे पर एक हैं और सभी मिलकर विदेशों में जाकर सारी दुनिया के सामने आपकी बात रखेंगे। अगर यह उद्देश्य सफल नहीं होता तो मैं समझता हूं की गलती किसकी है, यह तो सोचना पड़ेगा। देखिए दो परंपराएं हैं। संसदीय शिष्टमंडल की अलग परंपरा होती है लेकिन ये संसदीय शिष्टमंडल नहीं है, ये सरकारी शिष्टमंडल है। सरकारी डेलिगेशन है, क्योंकि इसमें कई सारे लोग सांसद नहीं है। कुछ पूर्व सरकारी अधिकारी हैं। सरकार का फैसला सही है। लेकिन यह संसद की डेलिगेशन नहीं है ऐसे में पार्लियामेंट्री डेलिगेशन के नियम लागू नहीं होने चाहिए। सरकारी शिष्टमंडल में प्रतिनिधियों का चयन सरकार का अधिकार है, लेकिन संसदीय परंपराओं का पालन करते हुए पहले विपक्ष से नाम मांगना और फिर उनके पत्र की अवहेलना करना गलत है।”

कांग्रेस नेता चव्हाण ने कहा, “संसदीय शिष्टमंडल में सभी दलों से नाम मांगे जाते हैं और सहमति से प्रतिनिधि चुने जाते हैं। सरकार ने कांग्रेस से नाम पूछे, हमने पत्र भेजा, लेकिन उसका अपमान किया गया। यह संसदीय परंपरा और शिष्टाचार का उल्लंघन है। सरकार को शुरू से स्पष्ट करना चाहिए था कि यह सरकारी शिष्टमंडल है, ताकि कोई विवाद न होता। राष्ट्रीय हितों के लिए विपक्ष हमेशा साथ देता, बशर्ते की प्रक्रिया पारदर्शी होती।”

भाजपा नेताओं के बयान की पृथ्वीराज चव्हाण ने निंदा की। उन्होंने कहा, “ऐसे बयान देने वाले नेताओं को सत्ता में रहने का कोई हक नहीं। उनकी जवाबदेही तय होनी चाहिए, जो उन्हें संरक्षण दे रहे हैं। ऐसे नेताओं पर कार्रवाई करनी चाहिए।”

पृथ्वीराज चव्हाण ने सरकार पर संसद सत्र से बचने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “मेरे ख्याल से कई सारे मुद्दे हैं, जिसपर चर्चा संसद में होनी चाहिए। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए या संसद सत्र आयोजित हो, जैसा कि 1962, 1965, 1971 और 1999 के युद्धों के दौरान हुआ था। जब सभी सांसदों ने मिलकर राष्ट्रीय हित में प्रस्ताव पारित किए थे। सरकार को एक वक्तव्य जारी करना चाहिए, किस आधार पर उन्होंने यह फैसला लिया है और अगर विपक्ष कुछ कहता है तो उसे सुनना चाहिए।”