हरा जल और हरे पर्वत ही सोने-चांदी के पहाड़ हैं : सतत विकास की ओर चीन का क्रांतिकारी दृष्टिकोण

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बीजिंग, 16 मार्च (आईएएनएस)। ‘हरे जल और हरे पहाड़ ही सोने और चांदी के पहाड़ हैं’ की अवधारणा, जिसे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने प्रस्तुत किया था, न केवल चीन बल्कि पूरे विश्व के लिए पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास के संतुलन को दर्शाने वाली एक महत्वपूर्ण विचारधारा है। यह सिद्धांत सतत विकास और हरित अर्थव्यवस्था (ग्रीन इकॉनमी) को बढ़ावा देने में एक निर्णायक भूमिका निभाता है।

शी जिनपिंग 15 अगस्त 2005 को च च्यांग प्रांत के तत्कालीन पार्टी सचिव के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों का निरीक्षण करते हुए यू गांव गए थे। यू गांव के पार्टी सचिव बाओ शिनमिन से उन्होंने कहा, “आपने खदानें बंद कर दी हैं; इस तरह से बहाल किए गए साफ पानी और हरे पहाड़ अब सोने और चांदी के पहाड़ हैं।”

तब यू गांव को सिर्फ़ गंदे और बदबूदार सुअर पालन वाले शहर के रूप में जाना जाता था। नदी प्रदूषित थी और पहाड़ पर हीटिंग और आश्रय के लिए लकड़ी नहीं थी। लोग गरीब थे और उनके पास पर्याप्त खाना नहीं था। इस सिद्धांत का पालन करते हुए, उन्होंने एक योजना पर अमल किया, पहाड़ों पर बांस के जंगल फिर से उगाए। सूअरों को वहां से हटाया गया और अंगूर के पौधे लगाए गए। नदी को साफ किया गया और उचित जल उपचार और स्वच्छता की व्यवस्था की गई।

आज, यू गांव समृद्ध है और एक पर्यटक स्थल भी बन गया है, जहां कई लोग मॉडल इको-फ्रेंडली समुदाय को देखने के लिए आते हैं। तब से, दो पहाड़ों की अवधारणा एक छोटे से पहाड़ी गांव से पूरे देश में फैल गई है, और शी जिनपिंग की पारिस्थितिक सभ्यता के विचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है।

साल 2013 में कजाकिस्तान की यात्रा के दौरान, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पहली बार पर्यावरण के अनुकूल विकास नीति के अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट किया। उन्होंने घोषणा की: “हम न केवल सोने के पहाड़ चाहते हैं, बल्कि हरे पहाड़ भी चाहते हैं। अगर हमें दोनों में से किसी एक को चुनना पड़े, तो हम सोने की बजाय हरे पहाड़ को प्राथमिकता देंगे। और वैसे भी, हरे पहाड़ खुद सोने के पहाड़ हैं।” साल 2013 से, यह “दो पहाड़” सिद्धांत के रूप में जाना जाता है, जो पर्यावरण के प्रति चीन के राष्ट्रपति का प्रेम और सम्मान दर्शाता है।

पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास का समन्वय

यह विचारधारा इस बात पर बल देती है कि आर्थिक प्रगति को पर्यावरण की कीमत पर नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि पर्यावरणीय संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करके समृद्धि प्राप्त की जानी चाहिए। चीन ने इस सिद्धांत के तहत पारंपरिक संसाधन-आधारित विकास मॉडल को त्यागते हुए नवीकरणीय ऊर्जा, हरित प्रौद्योगिकी, और पर्यावरण-अनुकूल नीतियों को अपनाने पर ध्यान केंद्रित किया है।

शी जिनपिंग द्वारा प्रस्तुत यह विचार पारंपरिक औद्योगिक विकास से हरित विकास की ओर परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करता है। चीन ने कार्बन उत्सर्जन को कम करने, स्वच्छ ऊर्जा को अपनाने, और सतत शहरीकरण को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए हैं। जैसे नवीकरणीय ऊर्जा: चीन ने सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्व किया है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित होने के साथ-साथ प्रदूषण भी कम हुआ है।

ग्रीन टेक्नोलॉजी और स्मार्ट शहर: आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग से स्मार्ट और पर्यावरण-अनुकूल शहरों का विकास किया जा रहा है, जिससे संसाधनों का कुशल उपयोग हो रहा है।

इस सिद्धांत के तहत चीन ने कड़े पर्यावरणीय कानूनों को लागू किया है, औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए नए नियम बनाए हैं, और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और जल संरक्षण परियोजनाएं शुरू की हैं। “ग्रीन वॉटर एंड ग्रीन माउंटेन्स” की अवधारणा न केवल चीन तक सीमित है, बल्कि यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी सहायक है। चीन अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर हरित विकास और कार्बन तटस्थता (नेट-ज़ीरो एमिशन) को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

राष्ट्रपति शी जिनपिंग का यह सिद्धांत पारंपरिक विकास मॉडल से हरित विकास की ओर परिवर्तन का प्रतीक है। यह न केवल चीन के सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि पूरे विश्व को यह संदेश देता है कि पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन बनाए रखते हुए समृद्धि हासिल की जा सकती है। इस विचारधारा को अपनाकर ही दुनिया जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता के क्षरण, और प्राकृतिक संसाधनों की समाप्ति जैसी वैश्विक समस्याओं का समाधान कर सकती है।

(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)