हिंदी के मशहूर कवि कुंवर नारायण, जिनकी कविताएं दिखाती हैं समाज को आईना

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नई दिल्ली, 18 सितंबर (आईएएनएस)। कहते हैं कि एक कवि होना आसान होता है, लेकिन उसकी साख को बरकरार रखना किसी चुनौती से कम नहीं। अगर आपको एक कवि को नजदीक से जानना है तो हिंदी के मशहूर कवि कुंवर नारायण द्वारा लिखी पक्तियां, “कविता यथार्थ को नजदीक से देखती, मगर दूर की सोचती है”, एक कवि की सोच कैसी हो सकती है, ये उस भाव से रू-ब-रू कराती है।

कुंवर नारायण की कविताएं न केवल समाज को आईना दिखाने का काम करती हैं बल्कि जीवन जीने की सीख भी देती है। वह धर्म पर तो लिखते ही थे, साथ ही वह भाषा के महत्व को भी बताते थे। कुंवर नारायण लिखते हैं, ‘भाषा का बहुस्तरीय होना उसकी जागरूकता की निशानी है’, उनके लिखने का यही अंदाजा हिंदी के कवियों में उन्हें सर्वश्रेष्ठ बनाता है।

19 सितंबर, 1927 को यूपी के फैजाबाद में पैदा हुए कुंवर नारायण ने खुद को हिंदी के मशहूर कवि के तौर पर स्थापित किया। कुंवर नारायण एक समृद्ध परिवार से तालुल्क रखते थे। उन पर आचार्य नरेंद्र देव, आचार्य कृपलानी और राम मनोहर लोहिया जैसी महान शख्सियतों का काफी प्रभाव पड़ा। यहीं से उनकी रूची साहित्य में बढ़ी और इसके बाद उनकी काव्य यात्रा का ‘चक्रव्यूह’ से आगाज हुआ। उन्होंने अपनी लेखनी के जरिए हिंदी के पाठकों में एक नई तरह की समझ पैदा की।

उनकी कविताओं में परंपरा, मानवीय आशा-निराशा और सुख-दुख का समागम देखने को मिल जाता है। इसका सीधा सा उदाहरण उनकी लिखी कविता में नजर आता है, जिसमें वह लिखते हैं, “जीवन-बोध, केवल वस्तुगत नहीं, चेतना-सापेक्ष होता है, और साहित्य की निगाह दोनों पर रहती है।”

जितना वह कविताओं में रूची रखते थे, उतनी ही उन्हें इतिहास, पुरातत्व, सिनेमा, कला, क्लासिकल साहित्य, आधुनिक चिंतन, समकालीन विश्व साहित्य, संस्कृति में थी। उन्हें फिल्में और नाटक देखने का भी शौक था। उनकी लिखी कविता “कोई भी कला सबसे पहले रचनात्मकता का अनुभव है, रचनात्मकता ही एक कला का प्रमुख विषय होता है” में वो भाव दिख जाता है।

यही नहीं, वह उन प्रमुख कवियों में शामिल हैं, जिनकी कविताओं को अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तीसरा सप्तक’ में शामिल किया गया था। हिंदी साहित्य में योगदान के लिए कुंवर नारायण को साल 1995 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और साल 2008 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें साल 2009 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया।

‘चक्रव्यूह’ (1956), ‘परिवेश: हम तुम’ (1961), ‘अपने सामने’ (1979), ‘कोई दूसरा नहीं’ (1993), ‘इन दिनों’ (2002), ‘हाशिए का गवाह’ (2009) जैसे कविता-संग्रह लिखने वाले कुंवर नारायण का 15 नवंबर 2017 को लखनऊ में निधन हो गया।