नई दिल्ली, 28 फरवरी (आईएएनएस)। दिल्ली विधानसभा में शुक्रवार को पेश कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली की तत्कालीन आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने केंद्र की योजनाओं को लागू करने में सुस्ती दिखाई, जिसके कारण लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं का समुचित लाभ नहीं मिल सका। एक तरफ केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई राशि का बड़ा हिस्सा खाते में बेकार पड़ा रहा और दूसरी तरफ पंजीकृत गर्भवती महिलाओं में 40 प्रतिशत को आयरन और फोलिक एसिड जैसी बुनियादी दवाइयां भी नहीं मिल सकीं।
दिल्ली की ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना और स्वास्थ्य सेवाओं का प्रबंधन’ पर कैग की इस रिपोर्ट में अप्रैल 2016 से सितंबर 2022 तक की स्थिति की समीक्षा की गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अवधि में प्रसव पूर्व देखभाल के लिए 48,97,249 महिलाओं ने पंजीकरण कराया था। इनमें से मात्र 29,25,840 को आयरन और फोलिक एसिड की 100 गोलियां मिली थीं, जो कुल पंजीकरण का 59.74 प्रतिशत है। इसी प्रकार मात्र 34.89 फीसदी महिलाओं को गर्भावस्था में लगने वाला टिटनेस का पहला टीका और 28.10 फीसदी महिलाओं को टिटनेस का दूसरा टीका लगाया गया।
कैग ने अपनी टिप्पणी में कहा है, “विभाग एएनसी के लिए पंजीकृत गर्भवती महिलाओं का पता लगाने और यह सुनिश्चित करने में सक्षम नहीं था कि क्या उन सभी को सही समय अंतराल पर निर्धारित मात्रा में एएनसी जांच, टीटी (टिटनेस) और आईएफए (आयरन फोलिक एसिड) टेबलेट प्राप्त हुए थे।”
इसके जवाब में दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग ने एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा कि इस कमी का कारण “दो या अधिक सुविधाओं पर प्रसव पूर्व देखभाल के लिए गर्भवती महिलाओं का एक से ज्यादा पंजीकरण” था।
कैग ने सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि सभी पंजीकृत गर्भवती महिलाओं को संपूर्ण प्रसव देखभाल मिले और प्रसवोत्तर देखभाल की जाए। साथ ही सभी गर्भवती महिलाओं को टिटनेस का टीका और आयरन तथा फोलिक एसिड की गोलियां उपलब्ध कराई जाएं।
कैग ने पाया कि अप्रैल 2016 से सितंबर 2022 के दौरान एएनसी जांच के लिए पंजीकृत 48.97 लाख गर्भवती महिलाओं में से 17.72 लाख (36.18 प्रतिशत) और 9.26 लाख (18.91 प्रतिशत) का क्रमशः एचआईवी और एसटीआई/आरटीआई के लिए परीक्षण किया गया। इस दौरान एचआईवी से पीड़ित गर्भवती माताओं के 7,720 मामले सामने आए। गर्भवती महिलाओं का परीक्षण न होने के कारण ऐसे और भी मामले पकड़ में आने से बच जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
इसके अलावा अप्रैल 2017 से सितंबर 2022 के दौरान दर्ज किए गए संस्थागत प्रसवों के 15.94 लाख मामलों में से 6.46 लाख (40.54 प्रतिशत) मामलों में प्रसूता को प्रसव के 48 घंटे के भीतर छुट्टी दे दी गई, जबकि राष्ट्रीय ग्रामीण मिशन के दिशा-निर्देशों के अनुसार, प्रसव के बाद पहले 48 घंटे सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। इस प्रकार माता और नवजात की प्रसव के 48 घंटे के दौरान चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित नहीं की जा सकी।
स्वास्थ्य विभाग ने अपने जवाब में कहा कि अस्पतालों में बिस्तरों की कमी के कारण ऐसा करना पड़ा क्योंकि प्रति बिस्तर नवजात और माताओं की संख्या दो तक पहुंच गई थी, जिससे संक्रमण का जोखिम बढ़ गया था।
आयरन और फोलिक एसिड की गोलियां नहीं मिलने का असर सीधे-सीधे नवजात के स्वास्थ्य पर पड़ा। रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में अप्रैल 2016 से सितंबर 2022 के बीच पैदा हुए बच्चों में से 22.10 प्रतिशत कम वजन वाले बच्चों की श्रेणी में थे यानी उनका वजन 2.5 किलोग्राम से कम था। जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों का राष्ट्रीय औसत 12.4 प्रतिशत है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जननी सुरक्षा योजना के तहत दिल्ली में बीपीएल परिवार की माताओं को 600 रुपये की नकद सहायता स्वीकार्य थी। लेकिन, 2016-21 के दौरान 94 हजार के लक्ष्य की तुलना में केवल 50,975 (54 प्रतिशत) महिलाओं को सहायता राशि दी गई। इसके स्वीकृत बजट का केवल 51 प्रतिशत खर्च किया गया।
कैग ने यह भी पाया कि जिन योजना के लिए जिन महिलाओं की पहचान की गई, उनमें से भी काफी कम को सहायता राशि प्रदान की गई और विभाग ने इसके बारे में कैग के प्रश्न के उत्तर में कोई कारण भी नहीं बताया है। कैग ने इसके लिए 2018-19 से 2020-21 के बीच दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पश्चिम और नई दिल्ली जिलों के आंकड़े दिए हैं।
अव्यवस्था का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत पंजीकृत महिलाओं में से मात्र 46 प्रतिशत की हीमोग्लोबिन जांच, 12 प्रतिशत के रक्त समूह की जांच, 18 प्रतिशत के मूत्र एल्बुमिन की जांच और 46 प्रतिशत की एचआईवी जांच की गई।