46 साल बाद भी नहीं मिला न्याय, संभल दंगे के पीड़ितों ने बयां की कहानी

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संभल, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश का संभल जिला इन दिनों कई कारणों से सुर्खियों में है। पहले मस्जिद में सर्वे के दौरान हुई हिंसा और फिर दशकों से बंद पड़े मंदिर को लेकर विवाद, लेकिन अब संभल का एक पुराना मामला चर्चा में है, जिसका जिक्र हाल ही में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में किया था।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा में 1978 के संभल दंगे का काला अध्याय उजागर किया। उन्होंने संभल के अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की पीड़ा का उल्लेख करते हुए बताया कि यह दंगे हिंदू समाज के लिए एक बहुत ही दर्दनाक और भयावह अनुभव थे। उन्होंने उस मंदिर का भी जिक्र किया, जो इन दंगों के बाद से बंद पड़ा था। हिंदू पक्ष का दावा है कि इस मंदिर में ताला 1978 के दंगों के बाद लगा था, जब पूरे क्षेत्र में दंगे भड़के थे और लोग अपनी जान बचाने के लिए संभल से पलायन कर गए थे।

आईएएनएस से बात करते हुए, संभल दंगों के दो पीड़ितों ने अपनी दर्दनाक कहानी बयां की। देवेंद्र रस्तोगी ने बताया कि उस समय कई लोगों की जान गई थी। दुकानों में आग लगा दी गई थी और इलाके में जबरदस्त हिंसा फैली थी। उन्होंने बताया कि उस वक्त कांग्रेस की सरकार की लापरवाही के कारण पुलिस बल की पर्याप्त तैनाती नहीं की गई थी। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा दंगों के दोषियों पर कार्रवाई की बात को सराहा और कहा कि जिन लोगों के परिवारों ने अपने प्रियजनों को खोया है, उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए।

रस्तोगी ने आगे कहा कि हम अपनी छतों पर थे और हर तरफ आग लगी हुई थी। 50 से ज्यादा दुकानें जलकर राख हो गई थी। एक शख्स ने ताड़ के पेड़ पर चढ़कर अपनी जान बचाई थी। उस दौरान करीब एक महीने का कर्फ्यू लगा था।

किरण गर्ग ने भी 1978 के दंगों को याद करते हुए बताया कि वह 1972 में शादी के बाद अपने घर में रहती थीं, जो इसी मंदिर के पास था। उस समय उनके घर के आसपास अधिकांश मुस्लिम आबादी थी और कुछ ही हिंदू परिवार रहते थे। दंगों के दौरान उन्होंने महसूस किया कि यह वक्त संभल छोड़ने का था। कर्फ्यू के दौरान पूरे शहर में भय का माहौल था। यदि योगी आदित्यनाथ ने दंगों के दोषियों पर कार्रवाई की बात की है, तो यह एक सकारात्मक कदम है और इस पर अमल होना चाहिए।