नई दिल्ली, 26 नवंबर (आईएएनएस)। भारत में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ाने के लिए बड़े स्तर पर वर्कर हाउसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता है। इससे कई पक्षकारों को बेहतर समन्वय आदि के लाभ प्राप्त होंगे और काफी अच्छे रिटर्न प्राप्त हो सकते हैं। यह जानकारी मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में दी गई।
नई दिल्ली स्थित फाउंडेशन फॉर इकोनॉमिक डेवलपमेंट ने बड़े पैमाने पर, रोजगार-गहन मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ाने के लिए वर्कर हाउसिंग की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
रिपोर्ट में कहा गया कि आज एक राष्ट्र के रूप में हमारी सबसे बड़ी अनिवार्यता अच्छी नौकरियां पैदा करना है, जो हमारे कार्यबल को कम उत्पादकता, कम वेतन वाले काम से बाहर निकलने में मदद करेगी। मैन्युफैक्चरिंग ही एकमात्र क्षेत्र है, जो निरंतर आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक दर पर अपेक्षाकृत अकुशल श्रम को अवशोषित कर सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, मैन्युफैक्चरिंग और सेवाओं में नौकरियां कृषि कार्य की तुलना में तीन-छह गुना अधिक उत्पादक हैं। ये नौकरियां बड़े औद्योगिक क्लस्टर में पाए जाने की संभावना है, जो संबंधित उद्योगों को एक जगह पर एकत्रित होने की अनुमति देती हैं और इससे स्केल करने में मदद मिलती हैं।
इस तरह के क्लस्टर में श्रमिकों की आवश्यकता आसपास के कस्बों और गांवों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले श्रम की तुलना में काफी अधिक है।
रिपोर्ट में बताया गया कि वर्कर हाउसिंग का प्रबंधन वर्तमान में अनौपचारिक रूप से किया जाता है। अक्सर श्रमिक अनधिकृत मलिन बस्तियों या बहुमंजिला बस्तियों रहते हैं।
रिपोर्ट में जोनिंग नियमों की सिफारिश की गई है, जहां मिश्रित भूमि जोनिंग को बिना किसी प्रतिबंध के सभी क्षेत्रों में वर्कर हाउसिंग के निर्माण की अनुमति देने के लिए लागू किया जाना चाहिए।
रिपोर्ट के अनुसार, वर्कर हाउसिंग को जीएसटी का भुगतान करने से छूट दी जानी चाहिए और भूमि की लागत कम करने के लिए संपत्ति कर, बिजली और पानी का शुल्क आवासीय दरों पर लिया जाना चाहिए।
रिपोर्ट में योजनाओं के रूप में सरकार से वित्तीय सहायता की भी सिफारिश की गई है।