कुम्भ में आस्था का अपमान और सरकार की जिम्मेदारी

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रानी शर्मा
प्राचीन काल से कुम्भ महोत्सव भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का प्रतीक रहा है। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, मोक्ष और आध्यात्मिक उत्थान का पर्व है। परंतु, आधुनिक समय में यह पवित्र आयोजन सरकार और कुछ व्यापारिक संस्थानों के लिए एक व्यवसायिक मंच बन गया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बार महाकुम्भ को एक ‘इवेंट’ का रूप दे दिया, पर शायद यह नहीं सोचा था कि इसका दुष्परिणाम आस्था की नीलामी के रूप में सामने आएगा।

आस्था की नीलामी और मानवीय पतन

जिस संगम में ऋषि-मुनियों ने आत्मशुद्धि की परंपरा स्थापित की थी, उसी संगम में स्नान करने वाली श्रद्धालु महिलाओं की अर्धनग्न तस्वीरें अब इंटरनेट पर बेची जा रही हैं। यह घटना केवल महिलाओं की गरिमा का अपमान नहीं, बल्कि संपूर्ण भारतीय संस्कृति पर एक कलंक है। यह सोचने का विषय है कि धर्म और संस्कृति के नाम पर पैसा कमाने की इस होड़ में मानवता कितनी गिर चुकी है।

तकनीक का दुरुपयोग और सरकार की विफलता

आज के डिजिटल युग में जहां सरकारें तकनीक का प्रयोग सुरक्षा और सुव्यवस्था के लिए करती हैं, वहीं कुम्भ में इस तकनीक का दुरुपयोग कर महिलाओं के स्नान के दृश्य चोरी-छिपे कैद किए गए और उन्हें ‘डार्क वेब’ के माध्यम से बेचा गया। यह साइबर अपराधी केवल व्यक्तिगत लालच में नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था को बाजार में बदलने की एक गहरी साजिश में लिप्त हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासन की लापरवाही इस बात का प्रमाण है कि इतनी भारी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद भी यह अपराधी कैसे अपने मंसूबों में कामयाब हुए?

धर्म को पर्यटन में बदलने की होड़

सरकार और प्रशासन ने कुम्भ को पर्यटन का केंद्र बना दिया, जिससे होटल, लॉज, परिवहन, विज्ञापन, मीडिया, और टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में भारी कमाई हुई। लेकिन इस पूरे आयोजन के पीछे असली श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास की क्या कीमत रही? धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना गलत नहीं है, परंतु जब धर्म व्यापार का साधन बन जाए और आध्यात्मिकता की जगह बाजारवाद हावी हो जाए, तब समाज को आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है।

मुख्यमंत्री और प्रशासन की जवाबदेही

योगी सरकार ने इस कुम्भ के जरिए करोड़ों रुपये कमाए, लेकिन जब आस्था की अस्मिता पर हमला हुआ, तब सरकार निष्क्रिय बनी रही। आईटी सेल और डिजिटल सुरक्षा का दावा करने वाली सरकार क्या अब इन वायरल हो चुकी तस्वीरों और वीडियो को हटाने में सक्षम होगी? क्या उन श्रद्धालु महिलाओं की गरिमा को वापस लौटाया जा सकता है जिनकी तस्वीरें सार्वजनिक हो चुकी हैं? यह एक गंभीर प्रश्न है जिस पर सरकार को जवाब देना चाहिए।

धार्मिक आयोजनों की पवित्रता को बनाए रखने की आवश्यकता

यह पहली बार नहीं है जब किसी धार्मिक आयोजन को व्यावसायिक रंग देने की कोशिश की गई है, परंतु इस बार यह बहुत ही शर्मनाक स्थिति में परिवर्तित हो गया है। पहले के समय में गृहस्थ आश्रम से मुक्त बुजुर्ग ही कुम्भ स्नान के लिए जाते थे, लेकिन इस बार इसे एक ऐसे इवेंट में बदला गया कि छोटे बच्चे, युवा, महिलाएं और बुजुर्ग सभी इसमें खींचे चले आए। सरकार को यह समझना होगा कि धार्मिक आयोजनों को उद्योग में तब्दील करना न केवल आस्था का अपमान है, बल्कि समाज में नैतिक पतन की जड़ें भी गहरी करता है।

अब समय आ गया है कि सरकारें इस तरह के धार्मिक आयोजनों को व्यावसायिक लाभ का साधन न बनाएं और आस्था को मात्र एक ‘टूरिज्म प्रोडक्ट’ की तरह बेचना बंद करें। समाज को भी चाहिए कि वह अपनी धार्मिक मान्यताओं की रक्षा स्वयं करे और लालच तथा दिखावे के इस मायाजाल से बचे।

लेखिका खरी न्यूज़ की सम्पादक हैं.