चार धाम में से एक द्वारका के पास ज्योतिर्लिंग रूप में विराजते हैं महादेव, नाग दोषों से मुक्ति का है यह केंद्र

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नई दिल्ली, 5 जुलाई (आईएएनएस)। शिवपुराण के अनुसार समुद्र के किनारे स्थित द्वारकापुरी के पास स्थित स्वयंभू शिवलिंग नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रमाणित है। इसको द्वादश ज्योतिर्लिंग में 10वां स्थान प्राप्त है। हालांकि इस ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त नागेश्वर नाम से तीन अन्य शिवलिंगों की भी चर्चा होती है। जिसमें महाराष्ट्र के हिंगोली जनपद में स्थित औंध नागनाथ मन्दिर, उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जनपद में स्थित जागेश्वर मन्दिर के साथ झारखंड के दुमका में स्थित बाबा बासुकीनाथ के मंदिर का भी नाम लिया जाता है। लेकिन, नागनाथ के नाम से प्रसिद्ध नागेश ज्योतिर्लिंग को शास्त्रों और पुराणों के अनुसार द्वारकापुरी के पास समुद्र के किनारे ही स्थित बताया गया है। क्योंकि द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग दारुक वन में स्थित है और अभी गुजरात में जहां नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है इस क्षेत्र को दारुक वन क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।

शिवपुराण में स्पष्ट कहा गया है कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग ‘दारुकवन’ में है, जो प्राचीन भारत में एक जंगल को इंगित करता है। ‘दारुकवन’ का उल्लेख भारतीय महाकाव्यों, जैसे काम्यकवन, द्वैतवन, दंडकवन में भी मिलता है।

शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिंग के बारे में लिखा गया है कि जो प्राणी श्रद्धापूर्वक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा, वह सारे पापों से मुक्त होकर समस्त सुखों का आनंद लेते हुए अंत में भगवान्‌ शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होगा। कोटिरुद्र संहिता में शिव को ‘दारुकावने नागेशं’ कहा गया है। नागेश्वर—नागों का ईश्वर। नागेश्वर शब्द नागों के भगवान यानी महादेव शिव को इंगित करता है। इस कारण यह मंदिर विष और विष से संबंधित रोगों से मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है। कहते हैं कि यहां द्वारकाधीश यानी स्वयं कृष्ण भगवान शिव का अभिषेक करते हैं।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के परिसर में भगवान शिव की एक बड़ी ही मनमोहक ध्यान मुद्रा में विशाल प्रतिमा बनाई गई है जिसकी वजह से मंदिर 3 किलोमीटर की दूरी से ही दिखाई देने लगता है। भगवान शिव जी की यह मूर्ति 125 फीट ऊंची तथा इसकी चौड़ाई 25 फीट है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में नागेश्वर महादेव के बारे में वर्णित है।

याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः |

सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ||

जो दक्षिण के अत्यंत रमणीय सदंग नगर में विविध भोगों से सम्पन्न होकर सुन्दर आभूषणों से भूषित हो रहे हैं, जो एकमात्र सद्भक्ति और मुक्ति को देने वाले हैं, उन प्रभु श्रीनागनाथ जी की मैं शरण में जाता हूं।

इसके साथ ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती नाग-नागिन के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए इसे नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। जिन लोगों की कुंडली में सर्प दोष होता है उन्हें यहां धातुओं से बने नाग-नागिन अर्पित करने चाहिए। मान्यता है इससे नाग दोष से छुटकारा मिल जाता है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को विशेष सुरक्षा प्रदान करने वाला ज्योतिर्लिंग माना गया है। इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से वे शत्रु भय, असुरक्षा और भय से मुक्त होते हैं। शिव पुराण के अनुसार, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से भक्तों की सभी विपत्तियाँ समाप्त होती हैं और जीवन में सकारात्मकता आती है। इसे “द्वारका का रक्षक” भी कहा जाता है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के आस-पास कई दर्शनीय स्थल हैं जो यात्रियों को आकर्षित करते हैं।

इसमें सबसे प्रमुख द्वारका धाम है, जो नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के आस-पास स्थित है, जो भगवान कृष्ण की अवतार स्थली के रूप में प्रसिद्ध है। द्वारका मंदिर, नीलांबिका मंदिर, रुक्मिणी मंदिर और द्वारकाधीश मंदिर इस शहर के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।

इसके साथ ही गोमती घाट भी यहां द्वारका के नगर में स्थित है और यहां गोमती नदी के किनारे पर श्रद्धालु बड़ी संख्या में स्नान करते हैं। इसके साथ यहां गोपी तालाब है, जो एक प्राकृतिक झील है जो द्वारका के पास स्थित है। यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जहां आप शांति और सुकून का आनंद ले सकते हैं।

यहीं बेट द्वारका स्थित है और यहां पर प्राचीन मंदिर और साहित्यिक स्थल हैं। यहां पर एक प्राचीन मंदिर है, जो भगवान कृष्ण के बालक रूप का देवालय है। यहां पर द्वारकाधीश मंदिर के समीप गुमणाम बांध के किनारे पर एक पवित्र कुंज है, जहां कृष्ण भगवान के बालक रूप के खेल का स्थल है। इसके पास ही शंकराचार्य की गुफा है, यहां आदिगुरु शंकराचार्य ने ध्यान किया था। यह भी एक आध्यात्मिक स्थल है जो यात्रियों को आकर्षित करता है।