मुंबई, 19 मार्च (आईएएनएस)। भारत में इन दिनों लोकसभा चुनाव को लेकर डाइनिंग टेबल, चाय-पान की दुकान, गली-नुक्कड़, चौक-चौराहे पर राजनेताओं के जीत और हार के कयास लगाए जा रहे हैं। इस बीच इन मुद्दों में अब आईपीएल की भी एंट्री हो चुकी है, क्योंकि शक्रवार यानी 22 मार्च से दुनिया की सबसे मशहूर टी20 लीगों में शुमार आईपीएल का आगाज होने वाला है, लेकिन चुनाव क्रिकेट के लिए भी मुसीबत बन सकता है इसका एहसास 2009 में ही हो गया था।
भारतीय क्रिकेट फैंस वर्षों से जानते हैं कि देश में हर पांच साल में होने वाले लोकसभा चुनाव सरकार के भाग्य का फैसला करते हैं। साल 2009 में उन्हें पहली बार एहसास हुआ कि चुनाव का असर क्रिकेट टूर्नामेंट पर भी पड़ सकता है।
साल 2009 में आईपीएल का दूसरा संस्करण लोकसभा चुनावों के कारण संकट में पड़ गया। फिर, बीसीसीआई को इसे भारत से बाहर शिफ्ट करना पड़ा जिसके बाद दक्षिण अफ्रीका में पूरा टूर्नामेंट खेला गया।
हालांकि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड गर्व से खुद को एक निजी स्वतंत्र संस्था घोषित करता है जो केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता नहीं मांगता है। इसलिए उसका तर्क है कि वह सरकार द्वारा शासित नहीं है और इसलिए उसे इसकी अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
बीसीसीआई ने इसे आरटीआई के दायरे में लाने के सरकार के कदम का विरोध करते हुए या शासन सुधारों का प्रबंधन करने के लिए दबाव डालते समय अदालतों में कई बार इस तर्क का सहारा लिया था।
हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसी बड़े टूर्नामेंट के आयोजन से जुड़ा एक बड़ा पहलू है और वो सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। जिसके लिए बीसीसीआई पूरी तरह से केंद्र और राज्य सरकारों पर निर्भर है।
सरकार, पुलिस के माध्यम से, सुरक्षा का प्रबंधन करती है और स्टेडियम में और उसके आसपास खिलाड़ियों की सुरक्षा, यातायात प्रबंधन और भीड़ नियंत्रण सुनिश्चित करती है।
एक मेगा इवेंट के आयोजन के ये सभी पहलू सरकार और बीसीसीआई के अधिकार क्षेत्र में हैं, जिसने एक बार प्रोफेशनल सुरक्षा गार्ड के माध्यम से कम से कम स्टेडियम के अंदर चीजों को प्रबंधित करने के बारे में सोचा था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि प्राइवेट सुरक्षा गार्ड के पास ऐसा करने का अधिकार नहीं था।
इसकी वजह यह है कि आईपीएल का शेड्यूल चुनावों के साथ क्लैश करने से प्रभावित हुआ है। खासकर जब वे लोकसभा चुनावों से टकराते हैं, जो हर पांच साल में मार्च और जून के बीच आयोजित होते हैं। वहीं, बीसीसीआई के पास भी इसको शिफ्ट करने का ऑपशन नहीं है क्योंकि आईपीएल के लिए अंतर्राष्ट्रीय कैलेंडर में यही विंडो होती है।
इस प्रकार, लोकसभा चुनाव बीसीसीआई के लिए हमेशा एक बड़ी चुनौती रहा है, जिससे आईपीएल गवर्निंग काउंसिल को काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है।
यहां समझें कैसे लोकसभा चुनाव आईपीएल गवर्निंग काउंसिल के लिए एक ‘बुरा सपना’ साबित हुआ है।
2009: बहु-चरणीय चुनावों के साथ तारीखों के टकराव के कारण तत्कालीन केंद्र सरकार ने सुरक्षा प्रदान करने से इनकार कर दिया। फिर उस समय के आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी ने पूरे टूर्नामेंट को भारत से बाहर दक्षिण अफ्रीका शिफ्ट करने का फैसला लिया।
इस आयोजन के बाद भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों देशों में सवाल उठाए गए थे, क्योंकि आरोप लगाया जा रहा था कि क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका को कार्यक्रम आयोजित करने के लिए अपने स्थानों को बीसीसीआई के अधीन करने के लिए मोटी रकम खर्च की गई थी।
2014: टूर्नामेंट का एक हिस्सा यूएई में आयोजित किया गया था क्योंकि केंद्र सरकार ने फिर से चुनावों के कारण सुरक्षा प्रदान करने से इनकार कर दिया था।
फिर, 16 अप्रैल से शुरू होने वाले पहले 20 मैच यूएई में अबू धाबी, दुबई और शारजाह के तीन अलग-अलग स्टेडियमों में आयोजित किए गए। इसके बाद 2 मई से टूर्नामेंट भारत में खेला गया।
2019: लोकसभा चुनावों के बावजूद, पूरा आईपीएल भारत में आयोजित किया गया था। हालांकि विभिन्न स्थानों पर चुनाव की तारीखों के साथ टकराव से बचने के लिए बीसीसीआई को मैचों के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी।
2024 – आईपीएल गवर्निंग काउंसिल ने पहले चरण में केवल 20 मैचों की तारीखें जारी की। शेष दूसरे चरण की तारीखों की घोषणा जल्द ही की जाएगी।
कुछ दिन पहले तक अटकलें लगाई जा रही थीं कि बीसीसीआई को एक बार फिर से आईपीएल को विदेश में ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। यहां तक कि कुछ फ्रेंचाइजी ने अपने खिलाड़ियों के पासपोर्ट इकट्ठा करना भी शुरू कर दिया था, ताकि अगर आईपीएल को बाहर ले जाया जाए तो टीमें इसका पालन कर सकें। बताया जा रहा था कि यूएई सबसे संभावित वेन्यू है।
हालांकि, बीसीसीआई ने ऐसी सभी बातों को खारिज किया। साथ ही ये भी ऐलान किया कि पूरा टूर्नामेंट भारत में ही खेला जाएगा।
अब जब भारत के चुनाव आयोग द्वारा मतदान की तारीखों की घोषणा कर दी गई है, तो एनसीसीआई अब चुनाव की तारीखों के आसपास दूसरे चरण की तैयारियों पर काम कर रहा है।
बेशक इस सीजन में बीसीसीआई की टेंशन कम हो गई है, लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि लोकसभा चुनाव आईपीएल के इतिहास में फिर चुनौतियां लेकर नहीं आएंगे।