पटना, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। बिहार के सिवान जिले की जीरादेई विधानसभा ने देश को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसा महामानव दिया। सिवान जिले का एक छोटा सा कस्बा जीरादेई, जहां 3 दिसंबर 1884 को डॉ. प्रसाद का जन्म हुआ था। वे 1946 में संविधान सभा के निर्वाचित अध्यक्ष भी रहे थे, और आज भी जीरादेई का नाम राष्ट्रीय गौरव के साथ लिया जाता है।
इसी धरती से एक और चर्चित नाम जुड़ा है मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव, जिन्हें दुनिया नटवरलाल के नाम से जानती है। दिलचस्प बात यह है कि डॉ. प्रसाद और नटवरलाल दोनों मध्यमवर्गीय कायस्थ परिवारों से थे। दोनों ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और वकालत की, लेकिन उनकी राहें बिल्कुल अलग रहीं।
एक तरफ जहां डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने देश की आजादी और राष्ट्रनिर्माण में अपना योगदान दिया। वहीं, नटवरलाल ठगी के कारनामों से कुख्यात हुआ। संसद भवन, लाल किला और ताजमहल जैसे प्रतिष्ठित स्मारकों को बेचने जैसी अविश्वसनीय घटनाओं के कारण वह एक किंवदंती बन गया।
जीरादेई का नाम मोहम्मद शहाबुद्दीन से भी गहराई से जुड़ा है, जो एक समय बिहार की अपराध और राजनीति के घालमेल का चेहरा बन गए थे। 1990 और 1995 में शहाबुद्दीन ने जीरादेई विधानसभा सीट जीती और बाद में 1996 से 2009 तक चार बार सिवान से सांसद रहे। लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में वे राजद के प्रभावशाली लेकिन विवादास्पद नेता के रूप में उभरे, जिनकी 2005 में गिरफ्तारी राजनीतिक जीवन के अंत की शुरुआत साबित हुई।
1957 में स्थापित जीरादेई विधानसभा क्षेत्र में वर्तमान में जीरादेई, नौतन और मैरवा प्रखंड शामिल हैं। यह सीट सिवान लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। अब तक इस क्षेत्र में 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें राजनीतिक उतार-चढ़ाव की एक लंबी कहानी दर्ज है। राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो कांग्रेस पार्टी ने यहां पांच बार जीत दर्ज की है और 1985 में उसकी आखिरी जीत हुई थी।
इसके अलावा, निर्दलीय उम्मीदवारों, जनता दल, जदयू और राजद ने दो-दो बार जीत हासिल की है, जबकि स्वतंत्र पार्टी, जनता पार्टी, भाजपा और सीपीआई(एमएल) ने एक-एक बार यह सीट जीती है। दिलचस्प रूप से, पिछले दो दशकों में किसी भी उम्मीदवार को लगातार दो बार जीत नहीं मिली, जिससे यह स्पष्ट होता है कि जीरादेई के मतदाता हर चुनाव में बदलाव की तलाश में रहते हैं।
राजद नेतृत्व वाले महागठबंधन ने इस सीट पर दो बार जीत हासिल की है। पहली बार 2015 में जदयू और 2020 में सीपीआई(एमएल) के उम्मीदवार की जीत इसी गठबंधन के तहत हुई थी। यह दर्शाता है कि जीरादेई में राजनीतिक वफादारी की बजाय उम्मीदवार की छवि और जातीय समीकरण अधिक मायने रखते हैं।
2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, जीरादेई विधानसभा क्षेत्र की कुल जनसंख्या 4,85,397 है, जिसमें 2,50,685 पुरुष और 2,34,712 महिलाएं शामिल हैं। वहीं, कुल मतदाताओं की संख्या 2,83,758 है, जिनमें 1,48,271 पुरुष, 1,35,475 महिलाएं और 12 थर्ड जेंडर मतदाता हैं। यह सीट मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्र है, जहां 93.61 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में और मात्र 6.4 फीसदी शहरी इलाकों में निवास करती है। कायस्थ, भूमिहार, यादव और राजपूत समुदाय भी प्रभावशाली माने जाते हैं। यही मिश्रित सामाजिक संरचना इस सीट को हर चुनाव में प्रतिस्पर्धी बनाती है।