पंचतृण: एक प्राकृतिक किडनी क्लींजर, जो मूत्र विकार को रखता है कोसों दूर

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नई दिल्ली, 16 अक्टूबर (आईएएनएस)। आयुर्वेद में पंचतृण एक अत्यंत प्रभावशाली और बहुपयोगी औषधि मानी जाती है, जो विशेष रूप से गर्मियों में शरीर की आंतरिक गर्मी को संतुलित कर प्राकृतिक ठंडक प्रदान करती है। इसमें पांच तृण काश, कुश, दरभ, इक्षु और शर का समावेश होता है, जो मिलकर शरीर को ठंडा रखने के साथ-साथ कई रोगों में राहत देती हैं।

पंचतृण का काढ़ा काफी फायदेमंद माना जाता है। यह काढ़ा विशेष रूप से शीतल पेय के रूप में प्रयोग किया जाता है और शरीर में पित्त दोष को संतुलित करता है। इसके सेवन से त्वचा पर होने वाले लाल दाने, जलन, और नाक से खून आना जैसी समस्याएं नियंत्रित होती हैं। यह रक्त को शुद्ध करता है और पित्तजनित विकारों को दूर करता है, जिससे त्वचा स्वच्छ और स्वस्थ बनी रहती है।

पंचतृण काढ़ा मूत्रवर्धक गुणों से भरपूर होता है, जिससे किडनी और मूत्राशय की गहराई से सफाई होती है। यह पेशाब के माध्यम से शरीर के टॉक्सिन बाहर निकालता है और सूजन को कम करता है। इसके नियमित सेवन से मूत्र पथरी बनने की संभावना कम होती है तथा पहले से मौजूद पथरी धीरे-धीरे घुलकर शरीर से बाहर निकलने लगती है।

इसके अलावा, यह काढ़ा बुखार और अत्यधिक प्यास की स्थिति में भी शरीर को राहत और ठंडक प्रदान करता है। गर्मी के दिनों में यह काढ़ा शरीर को हाइड्रेट रखता है और आंतरिक रूप से ठंडक देता है।

पंचतृण काढ़ा बनाने की विधि भी सरल है। पांचों औषधियों को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें और जब पानी आधा रह जाए तो छानकर हल्का गुनगुना सेवन करें। इसे सुबह खाली पेट और शाम को भोजन के बाद 100 मिलीलीटर की मात्रा में 7 से 10 दिन तक लिया जा सकता है। हालांकि, ठंडे मौसम में इसका सेवन सीमित मात्रा में करें और गर्भवती महिलाएं या ठंडी प्रकृति वाले व्यक्ति इसे चिकित्सकीय परामर्श के बाद ही लें।