सुप्रीम कोर्ट का आदेश, सारंडा वन के 314 वर्ग किमी क्षेत्र को वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी घोषित करे झारखंड सरकार

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रांची/नई दिल्ली, 13 नवंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के सारंडा वन के 31,468 हेक्टेयर यानी 314 वर्ग किमी क्षेत्र को ‘वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी’ (वन्यप्राणी अभयारण्य) घोषित करने का आदेश दिया है। चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की पीठ ने गुरुवार को इससे संबंधित मामले में सुनवाई के बाद फैसला सुनाया। कोर्ट ने राज्य सरकार को चार हफ्ते के अंदर इस आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सारंडा क्षेत्र देश के सबसे समृद्ध वनों में से एक है और यहां की जैव विविधता तथा हाथियों के आवागमन के प्राकृतिक मार्गों को सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार से कहा कि वह वाइल्डलाइफ (प्रोटेक्शन) एक्ट, 1972 के तहत तय प्रक्रिया के अनुसार सैंक्चुअरी की अधिसूचना जारी करे। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से 31468.25 हेक्टेयर के बदले 24941.68 हेक्टेयर के सैंक्चुअरी घोषित करने का अनुरोध किया गया था, लेकिन अदालत ने इसे अस्वीकार कर दिया।

अदालत ने वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सारंडा क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है और यहां खनन गतिविधियों का दबाव लगातार बढ़ रहा है। यदि इस क्षेत्र को संरक्षित नहीं किया गया तो इसका दीर्घकालिक प्रभाव राज्य और देश दोनों के पर्यावरण पर पड़ेगा। राज्य सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया कि प्रस्तावित सैंक्चुअरी क्षेत्र में कई गांव और खनन पट्टे मौजूद हैं, जिससे अधिसूचना जारी करने में व्यावहारिक कठिनाई आ रही है।

इस पर कोर्ट ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासी और स्थानीय समुदायों के मौजूदा अधिकार पहले से ही सुरक्षित हैं, इसलिए सैंक्चुअरी की घोषणा से उनके अधिकारों पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि राज्य चाहे तो वन्यजीव बोर्ड की सिफारिश के आधार पर अतिरिक्त क्षेत्र शामिल कर सकता है, लेकिन पहले से निर्धारित 31,468 हेक्टेयर क्षेत्र की अधिसूचना में और देरी नहीं होनी चाहिए।

अदालत ने राज्य के मुख्य सचिव को इस संबंध में शीघ्र कार्रवाई करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि देश के किसी भी राष्ट्रीय उद्यान या वन्यजीव अभयारण्य के भीतर तथा ऐसे उद्यान या अभयारण्य की सीमा से एक किलोमीटर के दायरे में किसी भी प्रकार की खनन गतिविधि नहीं की जाएगी।

अदालत ने कहा कि यह प्रतिबंध पर्यावरण संरक्षण, वन्यजीवों की सुरक्षा और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है। इस क्षेत्र को ‘इको-सेंसिटिव जोन’ माना जाएगा, और इसके भीतर किसी भी खनन कार्य, निर्माण या व्यावसायिक गतिविधि की अनुमति नहीं दी जाएगी, जब तक कि इसके लिए केंद्र और संबंधित राज्य सरकार से पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त न हो। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय देशभर के सभी राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों पर समान रूप से लागू होगा।