1776 का वह दिन जब फोर्ट वाशिंगटन गिरा: अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम को लगा सबसे बड़ा झटका

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नई दिल्ली, 15 नवंबर (आईएएनएस)। अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के शुरुआती दिन थे। तारीख 16 नवंबर 1776 की ही था। इसी दिन ब्रिटिश और हेसियन सैनिकों ने मिलकर फोर्ट वाशिंगटन पर कब्जा कर लिया। यह घटना सिर्फ एक सैन्य हार नहीं थी, बल्कि उस दौर की सबसे कड़वी यादों में से एक बन गई, जिसने अमेरिकी सेना का मनोबल हिला दिया और युद्ध की दिशा को नई तरह से प्रभावित किया।

फोर्ट वाशिंगटन उस समय मैनहट्टन के उत्तरी हिस्से में स्थित था। इसे अमेरिकी कॉन्टिनेंटल आर्मी ने इसलिए बनाया था ताकि हडसन नदी के रास्ते ब्रिटिश नौसेना को रोका जा सके। लेकिन नवंबर 1776 तक युद्ध की स्थिति बदल चुकी थी। ब्रिटिश सेना संख्या, अनुभव और संसाधनों में बहुत आगे थी। जनरल विलियम होवे के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना के साथ जर्मनी से आए हेसियन (भाड़े के सैनिक) भी थे, जो अपनी सख्ती और अनुशासन के लिए मशहूर थे।

अमेरिकी सेना में उस समय दो राय थीं। जनरल जॉर्ज वॉशिंगटन चाहते थे कि फोर्ट को खाली कर दिया जाए ताकि सैनिक बचाए जा सकें, लेकिन जनरल नाथनियल ग्रीन का मानना था कि किले को बचाया जा सकता है। इसी उलझन और देरी ने स्थिति को और कठिन बना दिया।

16 नवंबर की सुबह ब्रिटिश और हेसियन सैनिक चार दिशाओं से फोर्ट पर टूट पड़े। अमेरिकियों ने जमकर मुकाबला किया, लेकिन उनकी संख्या कम थी और हथियार भी पर्याप्त नहीं थे। लड़ाई कई घंटों तक चली, और आखिरकार अमेरिकी कमांडर रॉबर्ट मैगॉ ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस लड़ाई में लगभग 2,800 अमेरिकी सैनिक बंदी बनाए गए, जो उस समय का एक बड़ा झटका था।

इस हार के बाद ब्रिटिशों ने पूरे मैनहट्टन पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। यह घटना वॉशिंगटन के लिए कठिन क्षण था। उन्हें अपनी पहली बड़ी गलती के रूप में इसका दर्द सालों तक रहा। कई इतिहासकारों का मानना है कि अगर फोर्ट वाशिंगटन को समय रहते खाली कर दिया जाता, तो कॉन्टिनेंटल आर्मी की ताकत अधिक समय तक टिक सकती थी।

फोर्ट वाशिंगटन का पतन अमेरिकी स्वतंत्रता संघर्ष की उन घटनाओं में से एक है जिसने आजादी की कठिन डगर का एहसास कराया। लेकिन यही पराजय बाद में अमेरिकी रणनीति को और मजबूत बनाने का कारण भी बनी। हार के कुछ हफ्तों बाद ही वॉशिंगटन ने ट्रेंटन में एक अप्रत्याशित जीत हासिल की और संघर्ष को नई ऊर्जा दी।