हमारी सेना में घुसपैठ की कोशिश में थी मिशनरियों की कट्टर मानसिकता, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक : वीएचपी

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नई दिल्ली, 26 नवंबर (आईएएनएस)। सशस्त्र बलों में धार्मिक आचरण से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ईसाई अफसर की याचिका खारिज कर दी। ईसाई अधिकारी ने याचिका में सिख रेजीमेंट के नियमों का पालन करने से इनकार किया था। इस पूरे मामले में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने बुधवार को अपनी प्रतिक्रिया दी।

वीएचपी प्रवक्ता विनोद बंसल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “मिशनरियों की कट्टर मानसिकता हमारी सेना में भी घुसपैठ करने की तैयारी में थी, किंतु उस पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने समय पर रोक लगा दी। सेना के जिस रेजीमेंट का अधिकारी, वह उसी रेजीमेंट के नियमों को पालने से सिर्फ इसलिए इंकार करने लगा क्योंकि कि ईसाइयत उसे ऐसा करने से मना करती है।”

उन्होंने लिखा, विभिन्न न्यायालयों से होता हुआ जब मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा तो मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने कहा कि ‘गुरुद्वारा सबसे पंथनिरपेक्ष स्थानों में से एक है…’ उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 25 अनिवार्य धार्मिक परंपराओं की रक्षा करता है लेकिन हर भावना की नहीं। ईसाई धर्म में मंदिर प्रवेश करना कहां वर्जित है? पीठ ने कहा कि अधिकारी ने एक स्थानीय पादरी की सलाह को भी नजरअंदाज कर दिया जिसने कथित तौर पर कहा था कि सर्वधर्म स्थल में प्रवेश करना ईसाई धर्म का उल्लंघन नहीं होता।”

बंसल ने लिखा, “एक बार एक वरिष्ठ ईसाई न्यायाधीश ने भी स्वधर्म का हवाला देकर एक सरकारी सार्वजनिक कार्यक्रम में जाने से मना कर दिया था जिसकी संपूर्ण देश ने निंदा की थी। आज ये गुरुद्वारा प्रवेश से मना कर रहे हैं, कल ये ‘भारत माता की जय’ और वंदे मातरम् से और परसों कहेंगे कि सामने शत्रु एक ईसाई सैन्यकर्मी है इसलिए हम हथियार नहीं उठाएंगे!!”

उन्होंने सवाल करते हुए पूछा, “ईसाई मिशनरियों द्वारा फैलाई गई मजहबी कट्टरता देश को आखिरकार कहां तक लेकर जाएगी? मिशनरियों द्वारा बोया गया यह सांप्रदायिक जहर क्या हमारी वीर सेना की रेजिमेंट में भी घुसपैठ की कोशिश में है? मामला बेहद विचारणीय और चिंताजनक है। राष्ट्र सर्वोपरि की भावना को जो नहीं मानता वह सेना में तो रहने लायक कम से कम नहीं है।”