नई दिल्ली, 1 दिसंबर (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले चुनाव आयोग (ईसीआई) ने हलफनामा दाखिल किया है।
हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा कि बड़े पैमाने पर वोटर डिलीशन का दावा बेहद बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है और इनका इस्तेमाल निहित राजनीतिक हितों के लिए किया जा रहा है।
चुनाव आयोग ने कहा कि एसआईआर पूरी तरह संवैधानिक, नियमित और दशकों से चली आ रही प्रक्रिया का हिस्सा है। 24 जून और 27 अक्टूबर 2025 के आदेश वैध हैं। साफ-सुथरी और सटीक मतदाता सूची तैयार करना संवैधानिक दायित्व है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने टीएन शेषन केस (1995) में भी मान्यता दी थी।
चुनाव आयोग ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 324 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धाराएं 15, 21 और 23 आयोग को विशेष गहन पुनरीक्षण का अधिकार देती हैं।
बिहार के बाद अब देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर कराया जा रहा है। एसआईआर के माध्यम से मतदाता सूची नए सिरे से अपडेट की जा रही है। इस क्रम में जहां नए वोटर के नाम मतदाता सूची में शामिल किए जा रहे हैं, वहीं मृतक, दूसरी जगह जाकर बसने वाले वोटर और अवैध रूप से देश के विभिन्न राज्यों में आकर बसे बाहरी मतदाताओं के नाम लिस्ट से हटाए जा रहे हैं।
वहीं, सोमवार को संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन विपक्ष मतदाता सूची की एसआईआर प्रक्रिया पर चर्चा की मांग पर अड़ा रहा। संसद के बाहर भी सरकार को घेरने की पूरी कोशिश की जा रही है। विपक्षी सांसदों ने आरोप लगाए कि सरकार पूरी संवैधानिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक मूल्यों को खत्म करने में जुटी है।
तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि सरकार ने देश में नीति और गणतंत्र को खत्म कर दिया है। पहले जनता तय करती थी कि कौन सरकार बनाएगा, लेकिन आज के समय में चुनाव आयोग के जरिए सरकार तय कर रही है कि कौन-कौन मतदाता बनेगा।
बिहार के पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव ने आईएनएस से बातचीत में कहा कि सरकार पूरी संवैधानिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक मूल्यों को खत्म करने में जुटी है। देश में गणतंत्र के बचने की उम्मीद नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार डरे नहीं, विपक्ष का सामना करे।




