बीएचयू : 108 वर्ष में पहली बार उद्योग जगत को हस्तांतरित की गई कृषि प्रौद्योगिकी

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नई दिल्ली, 1 दिसंबर (आईएएनएस)। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने एचयूएम 27 नामक मूंग दाल की नई किस्म विकसित की है। इसकी उपज गेहूं और धान की बुवाई के बीच के खाली समय में हासिल की जा सकती है। यह किसानों को तीन फसलों का लाभ दे सकती है। यह किस्म उच्च तापमान व कम पानी में 1 हेक्टेयर में लगभग 18 कुंतल पैदवार दे सकती है।

खास बात यह है कि दाल की यह किस्म उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में वसंत व ग्रीष्मकालीन मौसम में खेती के लिए उपयुक्त है। इस ऐतिहासिक उपलब्धि के तहत विश्वविद्यालय द्वारा विकसित कृषि प्रौद्योगिकी उद्योग जगत को हस्तांतरित की गई है। यूं तो कृषि अनुसंधान में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के नाम कई उपलब्धियां दर्ज हैं, लेकिन विश्वविद्यालय का कहना है कि उनके 108 वर्ष के इतिहास में यह प्रथम अवसर है जब इस कृषि प्रौद्योगिकी को उद्योग जगत को हस्तांतरित किया गया है। सामान्य लोगों के हितों से जुड़ी रिसर्च का लाभ समाज तक पहुंचाने के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय निरंतर आगे बढ़ रहा है।

इसी कड़ी में विश्वविद्यालय ने मूंग की उच्च गुणवत्ता वाली इस किस्म की प्रौद्योगिकी हस्तांतरित की है। बीएचयू स्थित कृषि विज्ञान संस्थान के आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा यह मूंग दाल की नई उच्च उत्पादकता वाली किस्म विकसित की गई है। एचयूएम 27 (मालवीय जनक्रांति) नामक इस मूंग दाल की किस्म की तकनीक को प्रयोग हेतु स्टार एग्री-सीड्स प्रा. लि., श्रीगंगानगर, राजस्थान, को लाइसेंस प्रदान किया गया है।

विश्वविद्यालय के केंद्रीय कार्यालय में सोमवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा स्टार एग्री-सीड्स प्राइवेट लिमिटेड के बीच इस आशय के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी की उपस्थिति में कुलसचिव प्रो. अरुण कुमार सिंह तथा स्टार एग्री सीड्स में रिसर्च एंड डेवलपमेंट के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह ने हस्ताक्षर किए। इस दौरान एमओयू का आदान-प्रदान भी किया गया। विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुसार एमओयू के तहत कृषि विज्ञान संस्थान के जेनेटिक्स एवं पादप प्रजनन विभाग के वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुमार सिंह के शोध समूह द्वारा अगले पांच वर्षों तक इस किस्म के बीजों की आपूर्ति की जाएगी।

इस अवसर पर कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि तकनीक जब समाज तक पहुंचेगी तभी पता चलेगा कि शोध की दिशा क्या होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि समाज तक इस तकनीक को पहुंचाने में उद्योग जगत की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होंने विश्वास प्रकट किया कि भविष्य में और अधिक उद्योग साझीदार बीएचयू द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए आगे आएंगे। पहली बार कृषि के क्षेत्र में तकनीक हस्तांतरण के लिए कुलपति ने कृषि विज्ञान संस्थान को शुभकामनाएं प्रेषित कीं। स्टार एग्री-सीड्स से डॉ. ज्ञानेन्द्र सिंह ने कहा कि बीएचयू द्वारा नई किस्मों को विकसित किया जा रहा है और उनकी संस्था इन किस्मों को किसानों तक पहुंचाने का काम करेगी।

उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित उच्च गुणवत्ता के बीजों को किसानों तक पहुंचाकर उनके कल्याण और कृषि के विकास के लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं। विश्वविद्यालय के डॉ. अनिल कुमार सिंह ने बताया कि गेहूँ और धान की बुवाई के बीच के खाली समय में यह किस्म की पैदावार की जा सकती है। इससे किसानों को तीन फसलों का लाभ मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि यह किस्म उच्च तापमान में कम सिंचाई के साथ भी 1 हेक्टेयर में लगभग 18 कुंतल पैदवार दे सकती है। डॉ. अनिल ने बताया कि मूंग की यह किस्म उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में वसंत/ग्रीष्मकालीन मौसम में खेती हेतु उपयुक्त है।

फसल की विशेषता के बारे में बताते हुए डॉ. अनिल ने कहा कि यह बोल्ड एवं चमकदार हरे दाने वाली किस्म है। 5 ग्राम या 100 बीज 28.9 प्रतिशत उच्च प्रोटीनयुक्त हैं। 44 सेमी तक के कम ऊंचाई के पौधे होते हैं जो 62 से 76 दिन की कम अवधि में ही परिपक्व हो जाते हैं। बौद्धिक संपदा अधिकार एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रकोष्ठ के समन्वयक प्रो. बिरंची सरमा ने बताया कि यह किस्म वर्ष 2023 में भारत सरकार की केंद्रीय उप-समिति, नई दिल्ली, द्वारा जारी की गई थी। ग्रीष्मकालीन बुवाई के लिए उपयुक्त मूंग की किस्मों की देशभर में अधिक मांग है, और एयूएम 27 किसानों की पहली पसंद बन रही है। उन्होंने बताया कि बीएचयू द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी को समाज तक ले जाने के लिए प्रकोष्ठ निरंतर प्रगति कर रहा है।