मुंबई, 2 दिसंबर (आईएएनएस)। इंडियन फिल्म प्रोजेक्ट (आईएफपी) हर साल कलाकारों, फिल्ममेकर्स और क्रिएटर्स को एक ही मंच पर लाता है। यह आयोजन केवल फिल्मों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कला, थिएटर, संगीत और साहित्य जैसी विविध रचनात्मक गतिविधियों को भी प्रोत्साहित करता है। इस साल दर्शकों की संख्या ने इस आयोजन को बेहद खास बना दिया।
इस बार ‘आईएफपी’ का सबसे चर्चित सेशन ‘बिहाइंड द सीन: मैं एक्टर नहीं हूं’ था, जिसमें बॉलीवुड अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी और फिल्ममेकर-लेखक आदित्य कृपलानी मंच पर एक साथ आए। जब ये दोनों कलाकार मंच पर पहुंचे, तो दर्शकों ने जोरदार तालियों के साथ उनका स्वागत किया। इस सेशन में नवाजुद्दीन ने अभिनय के अनुभव, थिएटर और फिल्मों में काम करने के दृष्टिकोण और करियर की चुनौतियों के बारे में बात की।
नवाजुद्दीन ने अपने सेशन में सबसे पहले फिल्मों और थिएटर के बीच के अंतर पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, ”फिल्मों में कैमरा केवल आपकी हरकतों और छोटे-छोटे व्यवहार को पकड़ता है, जबकि थिएटर में आपको हर भावना, हर भाव और हर क्रिया को पूरी तरह से व्यक्त करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, अगर आप हाथ में गिलास पकड़े और उसे हिलाएं, तो फिल्म में कैमरा सिर्फ उस क्रिया को दिखाएगा, लेकिन स्टेज पर आपको उस क्रिया को बोलकर, दिखाकर और पूरी तरह निभाकर पेश करना होता है।”
उन्होंने कहा, ”यही वजह है कि मैंने हमेशा थिएटर को अपने लिए बेहद महत्वपूर्ण माना है।”
अभिनेता ने कहा, ”थिएटर केवल अभिनय का माध्यम नहीं है, बल्कि यह खुद को समझने और अपनी सीमाओं को पहचानने का एक तरीका भी है। भारत में थिएटर के कई अलग-अलग रूप हैं और हर कलाकार को इन सभी रूपों का अनुभव करना चाहिए। यह अनुभव ही कलाकारों को अधिक संवेदनशील और वास्तविक बनाते हैं, जो उनके अभिनय में साफ दिखाई देते हैं।”
इस अवसर पर नवाजुद्दीन ने अपनी पसंदीदा फिल्मों में से एक ‘बैंडिट क्वीन’ के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा, “यह फिल्म मेरे लिए बेहद खास है, क्योंकि इस फिल्म के अधिकांश कलाकार थिएटर से आए थे।”
फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ 1994 में रिलीज हुई थी। यह फूलन देवी के जीवन पर आधारित थी। इस फिल्म का निर्देशन शेखर कपूर ने किया था और इसमें सीमा बिस्वास ने मुख्य भूमिका निभाई थी। यह फिल्म माला सेन की किताब ‘इंडियाज बैंडिट क्वीन: द ट्रू स्टोरी ऑफ फूलन देवी’ पर आधारित थी।

