बालाघाट : 10 दिसंबर/ संयुक्त क्रांति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक किशोर समरीते द्वारा राममंदिर–बाबरी मस्जिद विवाद की पुनः सुनवाई की मांग को लेकर लिखे गए पत्र पर केंद्र सरकार ने संज्ञान लिया है। समरीते द्वारा 2 अक्टूबर 2025 को माननीय मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय को संबोधित पत्र के संबंध में भारत सरकार के मंत्रिमंडल सचिवालय ने आई.डी. सं. MISC./1/13/2025-मंत्रि… दिनांक 25 नवंबर 2025 को उन्हें पत्र भेजकर प्राप्ति और कार्रवाई का संकेत दिया है।
क्या लिखा था पूर्व विधायक समरीते ने?
अपने पत्र में समरीते ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ द्वारा दिए गए राममंदिर–बाबरी मस्जिद मामले के फैसले पर कई आपत्तियाँ दर्ज कराते हुए कहा कि:
निर्णय आदर्श न्याय के सिद्धांत के अनुरूप नहीं है।
एएसआई, लिब्राहन आयोग और सीबीआई की रिपोर्टों में अंतर होने के बावजूद उन्हें निर्णय का आधार नहीं बनाया गया।
उन्हें यह फैसला “एक गांव की पंचायत जैसे निर्णय” के समान प्रतीत होता है।
चूँकि यह सिविल वाद था, इसलिए जिस पक्ष का उत्तराधिकार सिद्ध है, भूमि उसी को सौंपी जानी चाहिए थी।
समरीते ने कहा कि फैसले में राममंदिर और बाबरी मस्जिद के लिए दो अलग-अलग भूमि को बाँटकर दिया गया, जबकि “यदि भूमि मंदिर की है तो पूरी मंदिर को मिले, और यदि मस्जिद की है तो पूरी तरह मस्जिद को मिले” — यह आदर्श न्याय सिद्धांत का पालन होता।
समरीते ने बताया-1885 में दायर हुआ था पहला वाद
पूर्व विधायक ने अपने पत्र में ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए लिखा है कि—
राममंदिर से जुड़े विवाद में निर्मोही अखाड़ा तथा रामलला पक्ष की ओर से
और हिंदू महासभा की ओर से महंत रघुवीर दास द्वारा
1885 में पहली बार मुकदमा दायर किया गया था, जिसमें विवादित स्थान पर मंदिर के ताले खोलने की मांग की गई थी।
दोनों पक्षों के प्रमुख वकीलों का भी किया उल्लेख
समरीते ने अपने पत्र में सुप्रीम कोर्ट में चली अंतिम सुनवाई के प्रमुख वकीलों का भी उल्लेख किया है—
हिंदू पक्ष: के. परासरन (प्रधान वकील), विकास सिंह
मुस्लिम पक्ष: राजीव धवन (प्रधान वकील), ज़फ़रयाब जिलानी
जिलानी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से पेश हुए थे।
केंद्र ने भेजा उत्तर
पूर्व विधायक समरीते को मंत्रिमंडल सचिवालय द्वारा भेजे गए पत्र में यह उल्लेख है कि उनका आवेदन प्राप्त हुआ है और इसे संबंधित प्रक्रिया के तहत दर्ज किया गया है। समरीते ने उम्मीद जताई है कि सर्वोच्च न्यायालय उनके द्वारा सुझाए गए आधारों पर क्यूरेटिव पिटीशन के माध्यम से पुनः सुनवाई पर विचार करेगा।


