क्या आप रोज ले रहे हैं फॉस्फोरस? ज्यादातर लोग नजरंदाज कर देते हैं ये बात

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नई दिल्ली, 22 दिसंबर (आईएएनएस)। जब भी सेहत की बात होती है, तो हम ज्यादातर कैल्शियम, आयरन या विटामिन्स का नाम लेते हैं। लेकिन, एक ऐसा मिनरल भी है, जो चुपचाप शरीर के हर कोने में काम करता रहता है। इसका नाम फॉस्फोरस है। अगर कैल्शियम हड्डियों की ईंट है, तो फॉस्फोरस उस ईंट को जोड़ने वाला सीमेंट है। अगर शरीर को चलाने के लिए ऊर्जा चाहिए, तो फॉस्फोरस एक पावर बैंक की तरह काम करता है।

फॉस्फोरस शरीर में कैल्शियम के बाद दूसरा सबसे ज्यादा पाया जाने वाला मिनरल है। शरीर का लगभग 85 प्रतिशत फॉस्फोरस हड्डियों और दांतों में जमा होता है, बाकी मांसपेशियों, खून और कोशिकाओं में काम करता है।

शरीर की हर हरकत, चलना, उठना, सोचना, सांस लेना, सबके लिए ऊर्जा चाहिए। यह ऊर्जा एडेनोसिन ट्राइफॉस्फेट (एटीपी) नाम के अणु से मिलती है और इस एटीपी को बनाने में फॉस्फोरस जरूरी है।

फॉस्फोरस नसों और दिमाग के लिए भी बहुत जरूरी है। दिमाग से जो संकेत शरीर के अलग-अलग हिस्सों तक जाते हैं, उन्हें सही तरीके से पहुंचाने में यह मदद करता है। यही वजह है कि फॉस्फोरस की कमी होने पर थकान, कमजोरी, चिड़चिड़ापन और ध्यान लगाने में दिक्कत हो सकती है।

अगर शरीर में फॉस्फोरस की कमी हो जाए, तो मांसपेशियां कमजोर पड़ने लगती हैं और हड्डियां नरम हो सकती हैं। बच्चों में रिकेट्स और बड़ों में ऑस्टियोमलेशिया जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

वहीं, अगर फॉस्फोरस जरूरत से ज्यादा हो जाए, तो खासकर किडनी के मरीजों में यह नुकसान कर सकता है। ज्यादा फॉस्फोरस हड्डियों से कैल्शियम खींच लेता है, जिससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।

अच्छी बात यह है कि फॉस्फोरस हमें आसानी से खाने से मिल जाता है। दालें, मूंगफली, सोयाबीन, दूध, दही, पनीर, काजू, बादाम, ओट्स और कद्दू के बीज सब फॉस्फोरस के अच्छे स्रोत हैं। प्राकृतिक भोजन से मिलने वाला फॉस्फोरस सबसे सुरक्षित माना जाता है।

आयुर्वेद में फॉस्फोरस को अलग नाम से नहीं पुकारा गया, लेकिन इसे अस्थि धातु और मज्जा धातु के पोषण से जोड़ा गया है। आयुर्वेद मानता है कि अगर पाचन अग्नि ठीक है, तो शरीर जरूरी पोषक तत्वों को खुद ही सही अवशोषित कर लेता है।