नई दिल्ली, 22 दिसंबर (आईएएनएस)। आत्मनिर्भर भारत के तहत रक्षा उत्पादन क्षमताओं को नई मजबूती मिलने जा रही है। इसके लिए भारत की इंडिया ऑप्टेल लिमिटेड (आईओएल) ने सैफरन इक्लेट्रॉनिक्स एंड डिफेंस के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। सैफरन इक्लेट्रॉनिक्स एंड डिफेंस एक फ्रांसीसी कंपनी है। यह कंपनी रक्षा उपकरणों, सैन्य विमानन, और रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखती है।
यह समझौता भारत में दो अत्याधुनिक, उच्च-प्रेसिजन और युद्ध-परीक्षित सैन्य प्रणालियों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करता है। भारत में इनके निर्माण से देश की तकनीकी व सैन्य आत्मनिर्भरता को बल मिलेगा। इंडिया ऑप्टेल लिमिटेड एक डिफेंस पीएसयू व मिनी महारत्न कंपनी है।
रक्षा मंत्रालय के अनुसार सैफरन अपने दो प्रमुख और युद्ध-परीक्षित सिस्टम भारत में निर्माण के लिए तकनीक स्थानांतरित करेगा। इनमें से एक सिग्मा 30 एन नेविगेशन सिस्टम है और दूसरा सीएम 3-एमआर डायरेक्ट फायरिंग साइट है। सिग्मा 30 एन डिजिटल रिंग लेजर नेविगेशन सिस्टम एक अत्यधिक सटीक नेविगेशन प्रणाली है। इसका उपयोग आर्टिलरी गन, एयर डिफेंस सिस्टम, मिसाइलों व राडार में होता है। इसकी विशेषता की बात करें तो यह सभी मौसमों में उच्च विश्वसनीयता, लंबी दूरी पर भी लक्ष्य साधने की सफलता को बढ़ाने व युद्ध परिस्थितियों में उत्कृष्ट स्थिरता प्रदान करती है।
सीएम 3-एमआर डायरेक्ट फायरिंग साइट एक आधुनिक डायरेक्ट फायरिंग साइट है। इसका उपयोग आर्टिलरी गन, एंटी-ड्रोन और लक्ष्य भेदी प्रणालियों में होता है। इसकी विशेषता की बात करें तो यह सटीक लक्ष्य अधिग्रहण में सक्षम है। यह तीव्र प्रतिक्रिया समय देती है और इसमें इलेक्ट्रॉनिक फायर-कंट्रोल क्षमता है। नए समझौते के तहत भारत में इनका निर्माण और संपूर्ण लाइफ-साइकिल सपोर्ट होगा। इस साझेदारी के तहत आईओएल इन प्रणालियों का स्थानीय उत्पादन व अंतिम असेंबली करेगा। परीक्षण और गुणवत्ता नियंत्रण व सेना को डिलीवरी की जाएगी।
संपूर्ण लाइफ-साइकिल सपोर्ट यानी रखरखाव, स्पेयर पार्ट, अपग्रेड आदि की जिम्मेदारियां भी आईओएल निभाएगा। इन सभी चरणों के भारत में होने से देश की सामरिक स्वावलंबन क्षमता मजबूत होगी और प्रणाली की उपलब्धता में तेजी आएगी। यह भारतीय रक्षा विनिर्माण में बड़ा कदम साबित होगा।
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक यह सहयोग कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है। वहीं इससे मेक-इन-इंडिया और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा मिलेगा। स्थानीय निर्माण से विदेशी निर्भरता कम होगी और उन्नत तकनीकों की उपलब्धता बढ़ेगी। भूमि-आधारित रक्षा प्रणालियों की क्षमता में वृद्धि होगी। आर्टिलरी, एयर डिफेंस और एंटी-ड्रोन प्रणालियों की सटीकता और प्रतिक्रिया क्षमता में बड़ा सुधार होगा। साथ ही तकनीकी कौशल और उद्योग क्षमता का विकास होगा। आईओएल के इंजीनियरों और तकनीशियनों को अत्याधुनिक नेविगेशन व फायर-कंट्रोल तकनीकों पर प्रशिक्षण और अनुभव भी प्राप्त होगा।
स्थानीय निर्माण के कारण इन प्रणालियों की उपलब्धता, रखरखाव और आधुनिकीकरण तेजी से संभव होगा, जिससे भारतीय सेना की युद्ध-तत्परता मजबूत होगी। दरअसल, यह एक रणनीतिक महत्व वाला समझौता है।
बता दें कि सैफरन कंपनी को दुनिया में उच्च-श्रेणी के इनर्शियल नेविगेशन और फायर-कंट्रोल सिस्टम के लिए जाना जाता है, वहीं समझौते आईओएल का ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा उपकरणों में लंबा अनुभव रहा है। अब दोनों की विशेषज्ञता मिलकर एक मजबूत, उन्नत और स्वदेशी उत्पादन पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करेगी, जिससे भविष्य में और भी कई रक्षा प्रणालियों का देश में निर्माण संभव हो सकेगा। समझौते पर आईओएल के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक तुषार त्रिपाठी और सैफरन इक्लेट्रॉनिक्स एंड डिफेंस में डिफेंस ग्लोबल बिजनेस यूनिट के प्रमुख अलेक्जेंडर जिगलर ने हस्ताक्षर किए।
यह कार्यक्रम रक्षा उत्पादन सचिव संजीव कुमार की उपस्थिति में नई दिल्ली में आयोजित किया गया। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक यह सहयोग जनवरी 2024 में हस्ताक्षरित पूर्व एमओयू पर आधारित है, और अब यह अगले चरण में प्रवेश कर रहा है, जहां तकनीक का ट्रांसफर ऑफ प्रोडक्शन औपचारिक रूप से शुरू होगा।

