भोपाल : 26 फरवरी/ सुप्रतिष्ठित कथाकार, शिक्षाविद् तथा विचारक स्वर्गीय जगन्नाथ प्रसाद चौबे ‘वनमाली’, के रचनात्मक योगदान और स्मृति को समर्पित संस्थान वनमाली सृजन पीठ, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय एवं आईसेक्ट पब्लिकेशन के द्वारा तीन दिवसीय राष्ट्रीय वनमाली कथा सम्मान समारोह का भव्य आगाज रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय परिसर में किया गया। इस अवसर पर दस अलग-अलग श्रेणियों में रचनाकारों को वनमाली कथा सम्मानों से अलंकृत किया गया जिसमें ‘वनमाली कथाशीर्ष सम्मान’ से सुप्रसिद्ध लेखिका स्व. उषा किरण खान (पटना) को मरणोपरांत सम्मानित किया गया। उनका पुरस्कार उनकी पौत्री लखिमा शंकर खान और दौहित्री अदिति सिंह ने ग्रहण किया। ‘वनमाली राष्ट्रीय कथा सम्मान’ से वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति (लखनऊ) को सम्मानित किया गया। इसके तहत रचनाकारों को शॉल, श्रीफल, प्रशस्ति पत्र एवं एक-एक लाख रुपये की सम्मान राशि प्रदान कर अलंकृत किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित साहित्यकार ममता कालिया उपस्थित रहीं। इसके अलावा जापान के हिंदी एवं भारतीय भाषा विद्वान पद्मश्री तोमियो मिजोकामी के आत्मीय सान्निध्य में कार्यक्रम का आयोजन हुआ और अध्यक्षता संतोष चौबे ने की।
इस अवसर पर ‘वनमाली कथा मध्यप्रदेश सम्मान’ वरिष्ठ कथाकार डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी (भोपाल) को, ‘वनमाली युवा कथा सम्मान’ युवा कथाकार आशुतोष (सागर) को, ‘वनमाली कथा आलोचना सम्मान’ आलोचक राकेश बिहारी (प्रयागराज) को, ‘वनमाली कथा पत्रिका सम्मान’ लखनऊ से प्रकाशित चर्चित पत्रिका ‘तद्भव’ को प्रदान किए गए। ‘वनमाली प्रवासी भारतीय रचनाकार सम्मान’ वरिष्ठ कथाकार तेजेन्द्र शर्मा (लंदन) को और ‘वनमाली कथेतर सम्मान’ अनिल यादव (दिल्ली) को तथा ‘वनमाली विशिष्ट कथा सम्मान’ सुश्री प्रत्यक्षा (दिल्ली) को प्रदान किया गया। इसके अलावा अरविंद मिश्र को ‘वनमाली विज्ञान कथा सम्मान’ प्रदान किया गया। सभी सम्मानित रचनाकारों को शॉल-श्रीफल प्रशस्ति पत्र एवं 51 हजार रुपये की सम्मान राशि प्रदान कर अलंकृत किया गया।
मुख्य अतिथि लेखिका ममता कालिया ने कहा कि वनमाली सृजन पीठ की विश्वसनीयता की वजह से दूर दूर से लोग आ रहे हैं, सात समुंदर पार करके भी लोग आ रहे हैं क्योंकि संतोष चौबे जी ने इसकी भव्यता को कड़ी मेहनत करके स्थापित किया है और इसे एक अंतरराष्ट्रीय संस्था का स्वरूप दिया है। वनमाली सम्मान प्रतिष्ठित सम्मानों में शामिल है। मेरे घर में कई सम्मान धूल खाते हैं परंतु वनमाली सम्मान को लेकर मैं गर्व से लोगों को बताती हूं।
पद्मश्री तोमियो मिजोकामी ने इस दौरान सम्मानित साहित्यकारों की प्रशंसा की और कहा कि मैं जापानी होने बावजूद हिंदी के सौंदर्य को समझता हूं, साहित्य को समझता हूं। मैंने हिंदी को पढ़ा है और इसकी समृद्धता देख के मन को बहुत संतुष्टता मिलती है।
वहीं विश्वरंग के निदेशक और रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने अपने वक्तव्य में सम्मानित साहित्यकारों के रचनाकर्म पर बात करते हुए उनसे जुड़े अपने अनुभवों को व्यक्त किया। इसके अलावा उन्होंने कहा कि विश्वरंग और वनमाली कथा सम्मान जैसे आयोजनों ने लेखकों के बीच में संवाद बनाया है और यह स्थापित किया है कि लेखक स्वतंत्रता के साथ काम कर सकते है। विश्वरंग और वनमाली सृजन पीठ बिना किसी बाहरी सहयोग के आज देश विदेश में कार्य कर रही हैं। दयानंद सरस्वती, टैगोर जी, विवेकानंद जैसे महान लोगों ने हम प्रेरणा ले रहे हैं विश्व को मंच मानकर कार्य कर रहे हैं।
सम्मानित साहित्यकारों में शिवमूर्ती ने कहा कि साहित्यकार कोई महामानव नहीं बल्कि आमजन की आवाज होते हैं।
इससे पहले स्वागत वक्तव्य वनमाली कथा पत्रिका के मुख्य संपादक मुकेश वर्मा ने देते हुए सभी सम्मानित साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय देते हुए सभी का स्वागत किया।
कार्यक्रम के अंत में आभार वक्तव्य रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. रजनी कांत द्वारा दिया गया।
पूर्व रंग में कबीर गायन से सजा मंच
कार्यक्रम के तहत पहले दिन की सांस्कृतिक प्रस्तुति की शुरुआत पद्मश्री प्रह्लाद सिंह टिपाण्या एवं साथियों के द्वारा कबीर गायन से हुई। पूर्व रंग में उन्होंने शुरुआत गुरु वंदना “गुरु गम का सागर तमने लाख लाख वंदन…” को पेश किया। इसके बाद ‘कोई सुनता है गुरु ज्ञानी गगन में आवाज हो गई झीनी…’, ‘लहरी अनहद उठे घट भीतर…’ की प्रस्तुति से श्रोताओं का मन मोहा। अंतिम प्रस्तुति के रूप में ‘जरा हल्के गाड़ी हांको मेरे राम गाड़ी वाले…’ से कार्यक्रम का समां बांधा। इसमें सह गायन में अशोक टिपाण्या एवं अजय टिपाण्या, हारमोनियम पर धर्मेंद्र टिपाण्या, ढोलक पर हिमांशु टिपाण्या और टिमकी पर मंगलेश मांगरोलिया रहे।
होली गीतों की प्रस्तुति
फिर शाम के सत्र में टैगोर नाट्य विद्यालय के छात्रों द्वारा होली गीत की प्रस्तुति संतोष कौशिक के निर्देशन में दी गई। इस दौरान उन्होंने ‘हां मैंने कछु न कही, मोहे कान्हां ने गारी दई…’, ‘संग नवला, संग नवला…’ गीत को पेश किया। इसके बाद ‘सजन डींग चलो…’ से सभी श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किया।
चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन
पहले दिन आईसेक्ट पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की प्रदर्शनी और वनमाली जी के जीवन पर आधारित चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया। इस प्रदर्शनी में वनमाली जी के चित्र और वनमाली कथा सम्मान के पूर्व आयोजनों की झलकियों को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है। अलंकरण सत्र के दौरान वनमाली कथा पत्रिका, वनमाली वार्ता, सहमत, सम्पूर्ण कहानियां वनमाली जी, परंपरा और आधुनिकता, स्मारिका, ब्रोशर का लोकार्पण किया गया।