नई दिल्ली, 17 जून (आईएएनएस)। रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर स्विट्जरलैंड में दो दिवसीय ‘यूक्रेन शांति सम्मेलन’ का आयोजन किया गया, जिसमें 90 से अधिक देशों ने हिस्सा लिया। लेकिन चीन और रूस ने इससे दूरी बनाकर रखी। सम्मेलन में युद्धग्रस्त देश में शांति स्थापित करने की दिशा में रूपरेखा तैयार की गई। इस पर विदेश मामलों के जानकार दिनेश कुमार पांडे ने टिप्पणी की है।
दिनेश कुमार पांडे ने बताया, “रूस भी यूक्रेन में शांति स्थापित करने के लिए तैयार है, लेकिन उसने इसके लिए दो शर्तें रखीं हैं। रूस ने कहा है कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल होने की अपनी जिद छोड़ दे तो शांति का मार्ग प्रशस्त होने की संभावना हो सकती है। रूस ने अपनी दूसरी शर्त में कहा है कि युद्ध के दौरान जिन क्षेत्रों में रूसी सैनिकों ने अपना कब्जा कर लिया है, उसे अब यूक्रेन को नहीं सौंपा जाएगा। यूक्रेन सहित अन्य यूरोपीय देश चाहते हैं कि दोनों ही देशों में पूर्ण रूप से शांति बहाली हो, लेकिन रूस द्वारा रखी गई शर्तों ने पूरी स्थिति को पेचीदा बना दिया है।”
उन्होंने कहा, “यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की इस सम्मेलन को अपने लिए सफलता के रूप में रेखांकित कर रहे हैं। दरअसल, इजरायल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध शुरू होने की वजह से समस्त विश्व का ध्यान रूस और यूक्रेन से हट गया था, लेकिन इस समिट के बाद वापस सभी का ध्यान इन दोनों देशों की ओर गया है, जिसे जेलेंस्की अपने लिए एक बड़ी उपलब्धि के रूप में विश्व समुदाय के बीच में प्रस्तुत कर रहे हैं। उनका मानना है कि इस समिट की वजह से ही वापस सभी देशों का ध्यान रूस-यूक्रेन की ओर लौटा है। जी-7 बैठक में शिरकत करने इटली पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से मुलाकात हुई थी। मुलाकात के दौरान यह तय हुआ था कि भारत यूक्रेन में शांति स्थापित करने की दिशा में हस्तक्षेप करेगा।”
उन्होंने आगे कहा, “ध्यान देने वाली बात है कि भारत भी लगातार रूस और यूक्रेन के बीच होने वाली हर गतिविधियों पर नजर बनाए हुए है। वहीं, भारत ने खुलकर इस संबंध में जी-7 में अपनी बात रखी। पहले यह माना जा रहा था कि भारत इस मामले में रूस का साथ देगा और यूक्रेन के हितों को नजरअंदाज करेगा, लेकिन इस समिट के जरिए भारत ने अपनी तटस्थता की पुष्टि की। मगर यह कह पाना मुश्किल है कि आने वाले दिनों में दोनों देशों की स्थिति कैसी रहेगी”?