भाप बन उड़ गए थे लोग…गीता पढ़ते थे परमाणु बम बनाने वाले ओपेनहाइमर, क्यों मिली थी सजा?

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वॉशिंगटन

परमाणु बम बनाने वाले वैज्ञानिक ओपेनहाइमर का जीवन कई उतार चढ़ावों से भरा रहा। आपको जानकर हैरानी होगी कि जापान में लाखों लोगों की जान लेने वाले बम को को बनाने वाले ओपेनहाइमर भगवद्गीता पढ़ा करते थे। हालांकि उनके हाथों जो होना था वह हो गया। बाद में वह पश्चाताप की आग में जलते रहे और परमाणु मिशन को रोकने की दुहाई देते रहे। हालांकि उनकी एक ना सुनी गई और उन्हें गद्दार घोषित कर दिया गया। उनका बाकी का जीवन किसी नरक से कम नहीं था। बता दें कि नई फिल्म ओपेनहाइमर बर्ड और शेर्विन देवारा लिखी गई उनकी जीवनी पर बनी है।

उन्होंने ओपेनहाइमर की जीवनी में लिखा है कि जब परमाणु बम का टेस्ट होने जा रहा था तब वह सांस तक नहीं ले पा रहे थे। एक रात पहले वह सोए नहीं। उन्हें जितने भयंकर विस्फोट की उम्मीद थी उससे भी कई गुना बड़ा धमाका हुआ। सूरज की चमक धुंधली हो गई। 160 किलोमीटर तक झटका महसूस किया गया। हालांकि सफल टेस्ट के बाद उनके हाव-भाव बदल गए। परमाणु बम धमाके के वक्त उनके मुंह से गीता का श्लोक निकला, मैं ही वह काल हूं जो कि संसार का नाश कर देता हूं।

गीता में 11वें अध्याय के 32वें श्लोक में भगवान् कहते हैं-
कालोस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो-
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृतः

इस जीवनी के मुताबिक परमाणु परीक्षण के बाद वह बहुत उदास रहने लगे। इस परमाणु परीक्षण के एक महीने बाद ही 6 अगस्त को हिरोशिमा में परमाणु बम गिरा गदिया गया। 6 अगस्त 1945 को मारियाना द्वीप स उड़ान भरने के बाद अमेरिकी विमान एलोना गे हिरोशिमा के ऊपर पहुंचा। सुबह के सवा आठ बजे लिटिल बॉय बम को गिरा दिया गया। बम के फटते ही आग और धुएं का गुबार आसमान की ओर ठा। आसपास का तापमान 3 हजार से 4 हजार डिग्री सेल्सियस हो गया। 10 सेकंड के अंदर ही हिरोशमी तबाह हो गया। हजारों लोक भाप बनकर उड़ गए। लोग मकानों की दीवारों में चिपक गए। बताया जाता है कि कुछ ही मिनट में 70 हजार लोगों की जान चली गई। उस वक्त जब ओपेनहाइमर को इस बात का पता चला तो वह बहुत खुश हुए। पह यह खुशी ज्यादा वक्त नहीं ठहरी। वह फिर पश्चाताप कीआग में जलने लगे।

'मेरे हाथ खून से लाल हैं'
6 अगस्त और 9 अगस्त को हिरोशिमा और नागासाकी पर बरमाणु बम गिराए गए। इसमें दो लाख लोगों की मौत हो गई और इस हमले का दंश आज की पीढ़ियां भी भुगत रही हैं। इस हमले के दो महीने बाद जब ओपेनहाइमर अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलने पहुंचे तो उन्होंने कहा. ऐसा लग रहा है कि मेरे हाथ खून से रंगे हुए हैं। राष्ट्रपति को ओपेनहाइमर की यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्हें तत्काल दफ्तर से बाहर निकाल दिया गया। राष्ट्रपति ने कहा कि मुझे बच्चों की तरह रोने वाले लोगों से मिलना अच्छा नहीं लगता। इसके बाद ओपेनहाइमर लगातार परमाणु मिशन का विरोध  ही करते रहे लेकिन अमेरिका ने 1952 तक हाइड्रोजन बम बना लिया।

हुई थी दर्दनाक मौत
ओपेनहाइमर ने सरकार का विरोध किया तो उनपर रूस का जासूस होने के आरोप लगा दिए गए। उन्हें सिक्योरिटी क्लियरेंस नहीं मिला और ब्लैकलिस्ट कर दिया गया। उन्हें अमेरिकी सरकार ने गद्दार घोषित कर दिया और इसी कलंक के साथ उन्हें बाकी की जिंदगी बितानी पड़ी।ओपेनहाइमर को गले का कैंसर हो गया था। 18 फरवरी 1967 को उनकी मौत हो गई।

ओपेनहाइमर जब 1929 में अमेरिका लौटे थे तब दर्शन की किताबें पढऩे लगे। उन्होंने भगवद्गीता भी पढ़ी थी और इससे काफी प्रभावित थे। परमाणु बम बनाते वक्त भी जब उन्हें उलझन होती थी तो गीता पढ़ते थे। वे 'कर्मण्येवाधिकारस्ते, माफलेषुकदाचन' को मानते थे। ओपेनहाइमर कला प्रेमी भी थे। हालांकि एक कलाप्रेमी वैज्ञानिक ऐसा अविष्कार दे गया जो कि मानवता के लिए हमेशा के लिए खतरा बन गया। हालांकि दूसरी ओर अगर गीता की मानें तो जो निश्चित हो चुका है वह होकर रहेगा। करने वाला तो निमित्त है। करवाने वाला सबसे ऊपर है और वह निश्चित कर चुका है कि क्या होना है।