हिन्दू मंदिरों पर हमले के खिलाफ कनाडा की संसद में याचिका, अर्जी पर अब तक 6000 से ज्यादा हस्ताक्षर

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 टोरंटो

कनाडा के कई मंदिरों में पिछले एक साल के अंदर तोड़फोड़ की श्रृंखलाबद्ध घटनाओं से चिंतित सांसदों ने औपचारिक रूप से 'हिंदूफोबिया' को मान्यता देने के लिए वहां की संसद के निचले सदन 'हाउस ऑफ कॉमन्स' के समक्ष दायर एक याचिका को अपना समर्थन दिया है। इस याचिका पर कनाडाई सांसदों का समर्थन बढ़ता जा रहा है। शनिवार की शाम तक इस अर्जी पर 6000 से अधिक हस्ताक्षर हो चुके थे, जो सभी श्रेणियों में खुली याचिकाओं में सबसे बड़ी संख्या है।

सांसद मेलिसा लैंस्टमैन द्वारा प्रायोजित याचिका 19 जुलाई को हस्ताक्षर के लिए खोली गई थी। यह 17 अक्टूबर तक सक्रिय रहेगी।  इस याचिका का समर्थन करने वाले मंदिरों में ब्रिटिश कोलंबिया के सरे का लक्ष्मी नारायण मंदिर भी शामिल है। इस मंदिर के गेट पर 12 अगस्त को खालिस्तान समर्थकों ने भारत विरोधी और खालिस्तान समर्थक पोस्टर चिपकाए थे। मंदिर के अध्यक्ष सतीश कुमार ने कहा कि वे हिंदू समर्थक ऐसी पहलों का समर्थन करेंगे। मंदिर को निशाना बनाए जाने के बाद से वह याचिका के लिए चलाए जा रहे हस्ताक्षर अभियान में  "अधिक सक्रिय" हो गए हैं।

इस याचिका के समर्थन में ब्रैम्पटन का त्रिवेणी मंदिर भी शामिल है। मंदिर ने आयोजित ड्राइव में लैंट्समैन और याचिका के समर्थकों की मेजबानी की है। मंदिर के आध्यात्मिक नेता युधिष्ठिर धनराज ने कहा कि उनका समर्थन मंदिरों पर "बर्बरता के हमलों की श्रृंखला" से उपजा है।  उन्होंने कहा, “हम इस बारे में कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं। हम नहीं जानते कि क्या यह (याचिका) समस्या का समाधान कर सकती है, लेकिन यह हमारी मदद जरूर कर सकती है।"

लैंट्समैन, जो कनाडा के निचले सदन में प्रमुख विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी के उप नेता भी हैं, ने 15 अगस्त को मंदिर में कहा , "हम इस सरकार से कार्रवाई करने के लिए कहना चाहते हैं क्योंकि इस देश में किसी को भी किसी भी तरह की प्रथा का अभ्यास करने से डरना नहीं चाहिए।" उन्होंने कहा, "लोग अपने विश्वास और परंपरा के मुताबिक मंदिर जाते हैं या स्कूल जाते हैं या वे अपना व्यवसाय चलाते हैं ।”

ग्रेटर टोरंटो एरिया या मार्खम के जीटीए शहर में सनातन मंदिर सांस्कृतिक केंद्र के आजीवन ट्रस्टी चिमनभाई पटेल ने कहा कि बर्बरता की घटनाओं की श्रृंखला महत्वपूर्ण है क्योंकि "लोग थोड़ा डर रहे हैं।" उन्होंने आगे कहा कि हालांकि उनका मंदिर अब तक निशाना बनाए जाने से बचा हुआ है, लेकिन वे सुरक्षा उपायों और याचिका के साथ सक्रिय हो रहे हैं। उन्होंने कहा, "हमें नहीं पता कि क्या पता अगली बार हम पर हमले हों।"

इस हस्ताक्षर अभियान में केवल भारतीय मूल की मंडलियों वाले मंदिर ही शामिल नहीं हैं बल्कि ब्रैम्पटन का पशुपतिनाथ मंदिर जो नेपाली-कनाडाई समुदाय की सेवा करता है, भी इस कोशिश में शामिल हो गया है। इसके प्रवक्ता चिंता उप्रेती ने कहा, ''जाहिर तौर पर, हिंदू मंदिरों पर लोगों के एक अलग समूह द्वारा हमला किया जा रहा है। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि हमारी संस्कृति और धर्म हमारे जीवन का हिस्सा हैं। टोरंटो का श्री जैन मंदिर भी इस अभियान में शामिल हो गया है क्योंकि इसके अध्यक्ष अहिमेंद्र जैन बढ़ती "नफरत और अपराध" के कारण खुद को "असुरक्षित" महसूस कर रहे हैं।

कनाडाई ऑर्गेनाइजेशन फॉर हिंदू हेरिटेज एजुकेशन (णधफफआ) द्वारा पेश याचिका में सदन से हिंदू-विरोधी पूर्वाग्रह और भेदभाव का वर्णन करने के लिए मानवाधिकार संहिता की शब्दावली में हिंदूफोबिया को एक शब्द के रूप में मान्यता देने, हिंदूफोबिया को इनकार के रूप में परिभाषित करने का आह्वान किया गया है। उनका तर्क है कि यह कोशिश हिंदुओं, हिंदू धर्म, या हिंदुत्व के खिलाफ अस्वीकृति, पूर्वाग्रह या निंदा और जागरूकता बढ़ाने और प्रणालीगत और संस्थागत हिंदूफोबिया को संबोधित करने के लिए है।

याचिका की प्रक्रिया 14 जुलाई को ब्रैम्पटन के श्रीभगवद गीता पार्क में साइनेज को तोड़े जाने के कुछ ही दिनों बाद शुरू हुई थी। पिछले साल जुलाई से अब तक कनाडा में मंदिरों को निशाना बनाए जाने की कम से कम सात घटनाएं सामने आई हैं।