भोपाल : 06 नवंबर/ राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित सांस्कृतिक पत्रिका ‘रंग संवाद’ के उत्सवधर्मी कला परंपरा पर केन्द्रित विशेषांक का विमोचन प्रख्यात निबंधकार नर्मदाप्रसाद उपाध्याय तथा साहित्यकार-शिक्षाविद संतोष चौबे ने किया। इस अवसर पर पत्रिका के संपादक-कला समीक्षक विनय उपाध्याय भी उपस्थित थे।
टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र, आरएनटीयू द्वारा प्रकाशित ‘रंग संवाद’ के इस बहुरंगी अंक के मुख्य आवरण पर जनजातीय चित्रांकन है जिसे प्रसिद्ध गोंड कलाकार पद्मश्री दुर्गाबाई व्याम ने उकेरा है। आवरण आकल्पन मुदित श्रीवास्तव ने किया है। शब्द संयोजन अमीन उद्दीन शेख का है। मंगल की कामना से महकते भारतीय संस्कृति की मटियारे रंगो महक से समृद्ध रचना-आलेखों के साथ इस संस्करण में नर्मदाप्रसाद उपाध्याय, अशोक भौमिक, सूर्यकांत नागर, मुरलीधर चांदनीवाला, वासुदेव मूर्ति, गिरिजाशंकर, शम्पा शाह, बिंदु जुनेजा, अनुलता राज नायर, आशुतोष दुबे, उत्पल बैनर्जी, स्वरांगी साने, राजेश गनोदवाले, श्वेतांबरा, संदीप नाईक, दिनेश पाठक, दीपक पगारे, गौतम काले, अपूर्वा बैनर्जी, सुनील अवसरकर सहित दो दर्जन से भी अधिक चिंतक, लेखक और कला समालोचक शामिल हैं।
‘रंग संवाद’ में दीयों की रौशनी का झरना है जिन्हें हस्तमुद्राआएँ अपने आँचल में समा लेना चाहती हैं। ऐसे चेहरे हैं जिनमें देव चरित बोल उठते हैं और असीम की तलाश में निकल जाते हैं। कामोद के सुर हैं जिन्हें कोई कोरस गायिका अपनी भीनी आवाज में गा रही है। इन पन्नों पर ताल सा जीवन है। लता सी जिजीविषा है। संवेदनाओं की सुनहरी धूप है। सप्तपर्णी की सतरंगी छाँव है। कुछ यादें हैं। कुछ सपने हैं। कुछ बातें हैं। रुपहली दुनिया के रोचक किस्से हैं। कुछ मुलाकातें हैं। इच्छाओं के पेड़ हैं। आनंद है। आनंद का उत्सव है। उत्सवों के मौसम हैं। भीतर के पन्नों पर सुखनन्दी, अनुपम पाल और अंतिम अंतिम पृष्ठ पर रामीबेन नागेश के चित्र रौशन हैं। इन सबके बीच देश भर की सांस्कृतिक गतिविधियों का कोलाज है।