विजय लक्ष्मी पंडित : एक महिला जिसने हर भूमिका में छोड़ी अपनी अमिट छाप

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नई दिल्ली, 18 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय महिलाएं घर के अंदर हर रिश्ते और हर काम को बखूबी निभाना जानती हैं। जब यही महिलाएं घर की दहलीज़ लांघकर बाहर निकलती हैं तब भी हर भूमिका को सही से निभाती हैं। राजनीति हो, स्वतंत्रता आंदोलन हो या किसी तरह की जनक्रांति, अपने नाम के अनुरूप उस महिला को हर भूमिका में ‘विजयश्री’ मिली। उनका नाम था विजयलक्ष्मी पंडित।

विजयलक्ष्मी पंडित जवाहर लाल नेहरू की बहन थीं। वह राजनयिक, कार्यकर्ता, स्वतंत्रता सेनानी से लेकर यूएन महासभा की अध्यक्ष रहीं। उन्होंने अपने जीवन में हर भूमिका को बखूबी निभाया और अपनी अमिट छाप छोड़ी। देश की स्वतंत्रता आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ी, उनके लिए काम किया।

देश को आजादी मिलने के बाद उन्होंने लोकसभा और राज्यसभा सदस्य के रूप में काम किया। यूएन महासभा की अध्यक्ष रहीं। उन्होंने देश के लिए काम किया और अपने नाम को इतिहास में अमर बनाया।

विजयलक्ष्मी पंडित की निजी जिंदगी की अगर हम बात करें तो उन्हें एक मुस्लिम युवक से प्यार हुआ, वह उससे शादी भी करना चाहती थीं, लेकिन नेहरू परिवार को यह स्वीकार नहीं हुआ। वह मुस्लिम युवक कोई साधारण शख्स नहीं था, वह सैयद हुसैन थे। हुसैन बंगाल के प्रतिष्ठित और समृद्ध परिवार से संबंध रखते थे। विजयलक्ष्मी और हुसैन एक तो नहीं हो पाए, फिर भी हुसैन के संबंध जवाहर लाल नेहरू से अच्छे रहे।

हुसैन ने एक एडिटर के तौर पर मोतीलाल नेहरू के अखबार ‘इंडिपेंडेंट’ में भी काम किया। देखते-देखते लोग इस अखबार को पसंद करने लगे। उस अखबार की हेडिंग अक्सर चर्चा में रहती थी। विजयलक्ष्मी की उम्र उस समय 19 साल थी। वह हर रोज अखबार के दफ्तर में आती थी और वह हुसैन के प्यार में पड़ गईं। विजयलक्ष्मी ने उनसे शादी करने का प्रस्ताव अपने घर पर रखा। परिवार के लोगों के लाख समझाने पर भी वह जब नहीं मानी, तब मोतीलाल नेहरू ने हुसैन से अखबार की नौकरी और शहर छोड़ने के लिए आग्रह किया। इसके बाद वह खिलाफत आंदोलन का हिस्सा बनकर इंग्लैंड चले गए।

विजयलक्ष्मी पंडित लिखने की भी काफी शौकिन थीं। उन्होंने ‘द इवोल्यूशन ऑफ इंडिया’, ‘द स्कोप ऑफ हैप्पीनेस : ए पर्सनल मेमोयर’ और ‘प्रीज़न डेज़’ जैसी कई किताबें लिखी। महिलाओं की हक की बात जब भी कहीं आती है, विजयलक्ष्मी पंडित का नाम सबसे पहले लिया जाता है।