जन्मदिन विशेष: संघ हृदय में बसा और जनसंघ ने जिनकी सोच से आकार लिया, अंत्योदय के कल्याण का संकल्प साधे जो चल पड़े

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नई दिल्ली, 24 सितंबर (आईएएनएस)। भारतीय राजनीति में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने ऐसी विचारधारा स्थापित की जिसके सहारे ना सिर्फ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता में आई, समाज के अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए कई योजनाओं को भी लागू किया गया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्म के साथ ही उनके शिखर पुरुष बनने की यात्रा की शुरुआत हो गई थी।

उत्तर प्रदेश की पवित्र ब्रजभूमि मथुरा में नगला चंद्रभान नामक गांव में 25 सितंबर 1916 को पैदा हुए दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ी। बचपन में एक ज्योतिषी ने उनकी जन्म कुंडली देखी और भविष्यवाणी कर दी कि आगे चलकर यह बालक एक महान विद्वान और विचारक बनेगा, एक महान राजनेता और सेवक के रूप में काम करेगा।

ज्योतिषी ने यह भी भविष्यवाणी की थी कि यह बालक विवाह नहीं करेगा। दीनदयाल उपाध्याय पढ़ने में काफी अच्छे थे। उन्होंने कई स्वर्ण पदक और छात्रवृति भी अर्जित की। समय गुजरा और पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने राजनीति की तरफ कदम बढ़ा दिया। आगरा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सेवा के दौरान उनका परिचय नानाजी देशमुख और भाउ जुगडे से हुआ।

इसी समय उनकी बहन बीमार हो गई और इलाज के लिए आगरा पहुंची। दुर्भाग्य से उनकी बहन का निधन हो गया। इस कारण दीनदयाल उपाध्याय एमए की परीक्षा नहीं दे सके, उनकी छात्रवृति भी समाप्त हो गई। लेकिन, चाची के कहने पर उन्होंने एक सरकारी प्रतियोगिता परीक्षा दी और प्रथम स्थान प्राप्त किया। इस परीक्षा से जुड़ा एक खास वाकया है।

इस परीक्षा में दीनदयाल उपाध्याय धोती और कुर्ता पहने हुए थे और टोपी लगा रखी थी। दूसरे परीक्षार्थी आधुनिक कपड़े पहने हुए थे। साथियों ने मजाक में दीनदयाल उपाध्याय को ‘पंडित जी’ कहकर पुकारना शुरू किया। आगे चलकर अपने लाखों प्रशंसकों और अनुयायियों के लिए दीनदयाल उपाध्याय ‘पंडितजी’ के नाम से लोकप्रिय हो गए।

दीनदयाल उपाध्याय साल 1953 से 1968 तक भारतीय जनसंघ के नेता रहे। एक गंभीर दार्शनिक एवं गहन चिंतक होने के साथ-साथ वह एक ऐसे समर्पित संगठनकर्ता और नेता थे, जिन्होंने सार्वजनिक जीवन में व्यक्तिगत शुचिता एवं गरिमा के उच्चतम आयाम स्थापित किए। भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के समय से ही वह इसके वैचारिक मार्गदर्शक और नैतिक प्रेरणा-स्रोत रहे हैं।

साल 1950 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया और देश में एक वैकल्पिक राजनीतिक मंच के सृजन के लिए गोलवलकर से आदर्शवादी और देशभक्त नौजवानों को उपलब्ध कराने के लिए सहायता मांगी। इस राजनीतिक घटनाक्रम में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उन्होंने 21 सितंबर 1951 को उत्तर प्रदेश में एक राजनीतिक सम्मेलन का सफल आयोजन किया। इसी सम्मेलन में देश में एक नए राजनीतिक दल भारतीय जनसंघ की राज्य इकाई की स्थापना हुई। इसके एक माह के बाद 21 अक्टूबर 1951 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने भारतीय जनसंघ के प्रथम अखिल भारतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की थी।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय में संगठन का अद्वितीय और अद्भुत कौशल था। समय बीतने के साथ भारतीय जनसंघ की विकास यात्रा में वह ऐतिहासिक दिन भी आया, जब साल 1968 में इस महान नेता को दल के अध्यक्ष के पद पर प्रतिष्ठित किया गया। अपने उत्तरदायित्व के निर्वहन और जनसंघ के देशभक्ति का संदेश लेकर दीनदयाल ने दक्षिण भारत की यात्रा की।

दीनदयाल उपाध्याय ने अपनी विचारधारा का जो बीजारोपण किया था, वह आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी में भी दिखी। उनका 11 फरवरी 1968 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन में रहस्यमय परिस्थितियों में निधन हो गया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के निधन के बाद भी उनकी विचारधारा भाजपा की हर सरकार में दिखती है।

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला का कहना है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय राजनीति में कांग्रेस के ठीक सामने अपनी विचारधारा को स्थापित किया। एक विचारधारा गांधी जी की थी, जिनकी विचारधारा को उनके जीवन काल में ही त्याग दिया गया। गांधीजी ने स्वदेशी, ग्राम स्वराज, लघु उद्योग की बात की। जवाहरलाल नेहरू ने तीनों को त्याग दिया।

उन्होंने आगे कहा, “भाजपा ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की विचारधारा को पिछले पांच दशकों में समृद्ध किया है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में गांवों को शहरों से सड़क के जरिए जोड़ा गया। हर व्यक्ति का पेट भरने का काम किया गया। पीएम नरेंद्र मोदी ने अंत्योदय कल्याण के लिए कई काम किए। हर गरीब को मकान, एलपीजी, शौचालय, बिजली, हर घर नल से जल दिया।

उन्होंने कहा कि हमने दशकों तक सत्ता से बाहर रहकर संघर्ष किया, जब हम सत्ता में आए तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सिद्धांतों को आत्मसात करके अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाया। कांग्रेस पार्टी ने गांधी दर्शन को सत्ता प्राप्ति का साधन बनाया, सेवा करने का नहीं। हमने दीनदयाल उपाध्याय की विचारधारा ‘भारत पहले’ को अपनी विदेश नीति के केंद्र में रखा है।