भागलपुर, 10 जुलाई (आईएएनएस)। बिहार के गौरवशाली भौगोलिक संकेत (जीआई) उत्पाद अब राष्ट्रीय डिजिटल मंच ‘ई-नाम’ प्लेटफॉर्म पर चमकेंगे। बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर की पहल से किसानों को अब राष्ट्रीय मंच मिलेगा और उत्पादों को बेहतर मूल्य मिल सकेगा।
बताया गया कि भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा ई-नाम प्लेटफॉर्म पर सात नए उत्पादों को शामिल करने की ऐतिहासिक स्वीकृति दी गई है, जिनमें बिहार के चार विशिष्ट जीआई टैग प्राप्त उत्पाद कतरनी चावल, जर्दालू आम, शाही लीची और मगही पान प्रमुख हैं। इससे इन उत्पादों की डिजिटल बोली, पारदर्शी मूल्य निर्धारण और व्यापक बाजार पहुंच सुनिश्चित होगी।
बता दें कि बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर ने इन जीआई उत्पादों के प्रमाणीकरण, वैज्ञानिक मानकीकरण और मूल्य संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह ने इसे बिहार के किसानों के लिए आत्मनिर्भरता की दिशा में “परिवर्तनकारी पहल” बताया।
उन्होंने कहा, “ई-नाम में बिहार के विशिष्ट जीआई उत्पादों की उपस्थिति न केवल उनके ब्रांड मूल्य को बढ़ाएगी, बल्कि किसानों को प्रतिस्पर्धी मूल्य और राष्ट्रीय बाजार की पहुंच भी प्रदान करेगी। यह बिहार को ‘एग्री-इनोवेशन और ब्रांडिंग के राष्ट्रीय केंद्र’ के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक मील का पत्थर है।”
विश्वविद्यालय के निदेशक अनुसंधान डॉ. अनिल कुमार सिंह ने बताया, “कतरनी चावल, जर्दालू आम और मगही पान के लिए विश्वविद्यालय की शोध इकाइयों ने प्रमाणीकरण, संरक्षण, उत्पादन तकनीक और ‘पैकेज ऑफ प्रैक्टिस’ विकसित किए हैं। ई-नाम में इनका प्रवेश विश्वविद्यालय की शोध से विपणन तक की यात्रा को दर्शाता है। इससे किसानों की आय में प्रत्यक्ष वृद्धि संभव होगी।”
उल्लेखनीय है कि बिहार के चार जीआई उत्पादों में शामिल कतरनी चावल का मुख्य उत्पादन भागलपुर, बांका और मुंगेर जिले में प्रमुखता से होता है। यह विशेष प्रकार का चावल सुगंधित, पोषक और सुपाच्य होता है। इसी तरह बिहार के भागलपुर का जर्दालू आम विशिष्ट सुगंध एवं स्वाद के लिए प्रसिद्ध है।
इसके अलावा मुजफ्फरपुर की पहचान शाही लीची से होती है। यह भारत की पहली जीआई लीची है, जिसकी वैश्विक निर्यात की मांग है। मगही पान का मुख्य उत्पादन मुख्य रूप से नालंदा, नवादा और गया में होता है। पान की इस पत्ती की विशेषता मुलायम, कम रेशेदार और पारंपरिक महत्व से युक्त होना है।